Tuesday, November 8, 2016

अनमने मन में नहीं रह सकता अमन


     सम्राट बिंदुसार के निधन के बाद सुसीम सहित अपने अनेक भाइयों का वध कर गद्दी पर बैठे अशोक ने अपने साम्राज्य का विस्तार जारी रखा। उसका साम्राज्य लगभग संपूर्ण भारत और पश्चिमोत्तर में हिन्दुकुश एवं ईरान की सीमा तक पहुँच चुका था। इसके बाद भी उसके मन को शांति नहीं मिली थी, क्योंकि अजेय कलिंग ने उसका आधिपत्य स्वीकार नहीं किया था। अतः उसने कलिंग पर चढ़ाई कर दी। कलिंग के वीर सैनिकों ने बहादुरी से अशोक की सेना का सामना किया, लेकिन विजय अशोक की ही हुई।
     अशोक कलिंग पर विजय पताका लहराने के लिए रवाना हुआ तो मार्ग में वीभत्स दृश्य देख उस मन उद्वेलित हो उठा। युद्ध में भारी जनसंहार हुआ था। वह जिधर भी जाता, उसे चारों ओर लाशों के ढेर दिखाई देते। हर तरफ चीत्कार मची  हुई थी। लाखों निरपराध लोग काल के गाल में समा जाने के कारण गाँव के गाँव खाली हो गए थे। यह सब अशोक से देखा नहीं गया। उसे बेचैनी होने लगी और वहीं से लौट गया। उसने युद्ध मन की शांति के लिए किया था, लेकिन इससे उसका मन और भी अशांत हो गया था। इस बीच उसकी पत्नी विदिशा हिंसा के विरोध में भिक्षुणी भी बन गई। इससे अशोक को और भी झटका लगा।
     एक दिन उसने महल के झरोखे से एक किशोर भिक्षु को जाते देखा। उसने उसे अपने पास बुलाया तो उसे पता चला कि यह तो उसका भतीजा न्याग्रोध कुमार था, जिसके पिता का वह वध कर चुका था। अशोक ने उससे पूछा- "क्या तुम मुझसे घृणा नहीं करते?' भिक्षु बोला- "नहीं, क्या मैं तुमसे इसलिए घृणा करूँ कि तुमने मेरे पिता को मार डाला। इससे क्या होगा? घृणा से किसी का हित नहीं होता। उसे प्रेम से जीतना चाहिए।' अशोक- "इतनी छोटी उम्र में तुमने यह सब कहां से सीखा?' भिक्षु- "भगवान बुद्ध के उपदेशों से। इससे अशांत मन को शांति मिलती है।' इन सब घटनाओं से उसका ह्मदय परिवर्तित हो गया और वह भी शांति के लिए बुद्ध की शरण में चला गया।
     दोस्तोे न्याग्रोध ने अशोक को शांति का सही रास्ता दिखाया। और कलिंग को जीतकर भी हार चुके, मन की शांति खो चुके अशोक को शांति का सही मार्ग मिल गया, जिसे अपनाकर ही अशोक "अशोक महान' बना। यानी अशोक इसलिए महान नहीं कहलाया कि उसने अजेय कलिंग सहित संपूर्ण भारत पर आधिपत्य स्थापित किया था। वह महान तब बना, जब उसने अपनी गलती से सबक लेकर उसे न दोहराने का प्रण किया। उसके मन की यह भ्रांति दूर हो चुकी थी कि शांति स्थापित करने के लिए युद्ध ज़रूरी है, भय का वातावरण ज़रूरी है। वह समझ चुका था कि शांति तो प्रेम और समझदारी से ही स्थापित की जा सकती है। और प्रेम से वही शांति स्थापित कर सकता है जो अपनी इच्छाओं को जीतकर मन में शांति स्थापित कर चुका हो।
      हम सभी को भी यह बात समझ में आनी चाहिए कि यदि हमारे भीतर अशांति है तो उसे बाहर ढूँढना बेकार है। शांति की शुरुआत खुद से होती है। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आपके आसपास शांति हो, आप शांति से रह सकें तो सबसे पहले अपने आपको शांतचित्त बनाना होगा तभी आप दूसरों को भी शांत रहना सिखा सकेंगे। बहुत से लोगों की आदत होती है कि वे शांति की बात तो बहुत करते हैं, दूसरों को शांत रहने की शिक्षा भी देते हैं, लेकिन सबसे ज्यादा अशांति भी वही फैलाते हैं। ऐसे लोगोंें से हम कहना चाहेंगे कि सिर्फ शांति की बातें करने से काम नहीं चलता। आपको शांति में विश्वास भी होना चाहिए। और सिर्फ शांति में विश्वास होने से भी काम नहीं चलता, आपको इसके लिए प्रयत्न भी करने होंगे। यानी शांति चाहते हो तो खुद को शांत रखना सीखो। दूसरों को अशांत रखकर शांति की कामना करोगे तो इससे और भी ज्यादा अशांति फैलेगी। कहते हैं कि अमन के लिए ज़रूरी है कि आपका मन अनमना न रहे। और अपने मन को आप ही मना सकते हैं कोई दूसरा नहीं।
     इसलिए आज कमर कस लें कि आप अपने आपसे, अपनी अशांति से युद्ध कर उसे जीतेंगे। यकीन मानिए, यदि आप इस युद्ध में जीतकर तनावों से मुक्त हो गए तो फिर आप भी अशोक बन जाएँगे यानी आपके मन में कोई शोक न होगा। और तब आपको भी महान या सफल बनने से कोई रोक नहीं पाएगा।
     अब बस! हमें भी मन की शांति के लिए ध्यान में बैठना है। चलिए, आप भी ध्यान कीजिए। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।

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