Thursday, November 17, 2016

आपके डूबने से जग नहीं डूब जाता


    नदी के किनारे एक गाँव था। वहाँ लोग त्योहारों पर आकर स्नान ध्यान करते थे। एक बार सोमवती अमावस्या के दिन वहाँ स्नान करने के लिए काफी भीड़ इकट्ठा हुई। उस दिन नदी का बहाव बहुत तेज था, इसलिए लोग किनारे पर ही स्नान कर रहें थे। इस बीच पास के ही एक गाँव से आया एक युवक नदी में गहराई के ओर जाने लगा। उसे तैरना नहीं आता था। उसे ऐसा करते देख लोगों ने समझाया कि बहाव तेज है, कहीं संतुलन बिगड़ गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं। लेकिन वह युवक उत्साही था, उसने किसी की नहीं सुनी और आगे बढ़ता गया। पानी उसके कमर के ऊपर आ चुका था। इस बीच उसने एक कदम और बढ़ाया। वहाँ एक गड्ढा था, जिससे उसका संतुलन बिगड़ गया। उसने सँभलने की कोशिश की, लेकिन उसके पैर ज़मीन पर नहीं टिक पा रहें थे। अपने आप को बचाने के लिए वह हाथ-पैर मारने लगा। जब उसकी हिम्मत जवाब देने लगी, तो वह चिल्लाने लगा- बचाओ! बचाओ! उसकी आवाज सुनकर लोगों ने देखा। इतने में वह फिर चिल्लाया- खड़े- खड़े क्या देख रहें हो। मुझे डूबने से बचाओ, वरना मैं डूबा तो जग डूबा। उसकी बात सुनकर कुछ तैराक नदी में कूदे और उसे सही-सलामत किनारे पर ले  आए।
     तब तक उसके पेट में बहुत पानी भर चुका था। उसे उलटा लिटाकर उसके पेट का पानी निकाला गया। जब वह सामान्य हो गया तो एक आदमी बोला- भाई मेरे, प्रभु की कृपा से तू बच गया, लकिन हमें यह तो बता, कि डूबते समय तू जो कह रहा था कि मै डूबा तो जग डूबा,इसका क्या मतलब है? तेरे डूबने से जग के डूबने का क्या संबंध है? युवक बोला-भैया, बड़ी सामान्य सी बात है यह तो। खुदा न ख्वास्ता, यदि मै डूब जाता तो फिर इस जग का होना न होना मेरे लिए मायने नहीं रखता। मेरे लिए जग होना तभी तक सार्थक है, जब तक मै जिंन्दा हूँ। बाद में हुआ करें जग, मेरी बला से। इसलिए ही मै कह रहा था कि मै डूबा तो जग डूबा। वाह! भई वाह!! यह सोच भी खूब है। उस युवक के नज़रिये से यदि सोचें तो उसकी बात में दम है। जब आप ही नहीं रहें तो फिर जग का रहना आपके लिए किस काम का? आपके लिए तो आपके साथ ही आपकी दुनिया भी खत्म। लेकिन हमारी दृष्टि से यह सोच गलत है। क्योंकि इस सोच में कहीं न कहीं स्वार्थ झलकता है। यानी आपको बाकी लोगों से, बाकी दुनिया से कोई लेना देना नहीं। आपको तो सिर्फ अपने से मतलब है। जब तक जिससे आपका काम चल रहा है, तब तक ही वह आपका है। काम निकल जाने के बाद उससे आपका कोई लेना-देना नहीं।
     इस प्रवृत्ति के लोग आपको बहुत मिल जाएँगे। यही प्रवृत्ति उन लोगों में अधिक जाग्रत रूप नज़र आती है जो किसी विवाद या अन्य कारण से एक संस्था को छोड़कर दूसरी संस्था में चले जाते हैं और मौका मिलने पर अपनी पूर्व संस्था की बुराई करते नहीं चूकते। क्योंकि उनकी दृष्टि में अब उस संस्था से उनका कोई लेना देना नहीं है। वह डूबती है तो डूब जाए। वे सोचते है कि उनकी बातों से उस संस्था को नुकसान होगा। लेकिन वे गलत सोचते हैं, क्योंकि ऐसी बातों से संस्था का तो कुछ नहीं बिगड़ता, बल्कि उनकी छवि जरूर बिगड़ जाती है या यूँ कहें कि डूब जाती है। उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेता। हर कोई यही सोचता है कि खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे।
     यदि आपकी भी सोच ऐसी है तो बेहतर है कि आप इस तरह डूबने से बचें। हम यह नहीं कहते कि आप अपनी पूर्व संस्था के प्रति कोई जवाबदेही रखें, क्योंकि ऐसा संभव नहीं। लेकिन ऐसा भी न करें कि जिस संस्था का उल्लेख आपने अपने बायोडाटा में किया है, उसके बारे में अनर्गल बोलें। दूसरी ओर, कई लोग इस गलतफहमी में जीते हैं कि संस्था उनसे चल रहीं है। वे नहीं रहेंगे तो संस्था भी नहीं रहेगी। यानी वहीं "हम डूबे तो जग डूबा' वाली प्रवृत्ति। ऐसे लोगों को हम कहना चाहेंगे कि संस्था से व्यक्ति होते है, व्यक्ति से संस्था नहीं। ऊँचे से ऊँचा और महत्वपूर्ण से महत्वपूर्ण व्यक्ति भी यदि संस्था छोड़कर चला जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हो सकता है इसका कुछ तात्कालिक प्रभाव नजर आए, लेकिन अंतत: कोई दूसरा उसकी जगह ले लेता है और संस्था चलती रहती है। इसलिए आपने ऐसी कोई गलतफहमी पाल रखी है तो उसे दूर कर दें, वरना यह आपको डुबो देगी।

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