Saturday, November 12, 2016

भगवान भरोसे


     एक बार एक भक्त के सपने में भगवान प्रकट हुए। भगवान ने उसे कहा कि तू सत्य के रास्ते पर चलने वाला है। मैं तेरे आचरण से खुश हूँ और तुझे एक वर देना चाहता हूँ। जो मन में आए, माँग ले। भक्त बड़ा ही सज्जन था। उसने सोचा कि भगवान से धन-दौलत माँगने का क्या लाभ? इसलिए कुछ ऐसा माँगना चाहिए जिससे हमेंशा के लिए ईश्वर का सान्निध्य प्राप्त हो जाए। ऐसा सोचकर उसने भगवान से कहा-मुझे और कुछ नहीं चाहिए प्रभु! बस जीवन के हर सुख-दुःख में और परीक्षाओं की घड़ी में आप मेरे साथ चलते रहें। इस पर ईश्वर "तथास्तु' कहकर अंतर्धान हो गए।
     इसके बाद उस भक्त की आँख खुल गई। वह सपने की बात भूलकर अपने दैनंदिन कार्यों में लग गया। इस तरह कई वर्ष बीत गए। इस बीच हर व्यक्ति की तरह उसके जीवन में भी अनेक विपरीत परिस्थितियां आई और उसने उनका सामना हिम्मत और पुरुषार्थ से किया।
     एक बार वह बहुत बीमार हो गया। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहां जब वह अर्धचेतन अवस्था में पड़ा था तो उसके सामने भगवान फिर प्रकट हुए। भगवान को देखते ही उसे वरदान वाली बात याद आ गई और उसने उनसे पूछा, "प्रभु! आप तो मुझे वरदान देकर गायब ही हो गए। मुझे ज़िंदगी में न जाने कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन सभी का सामना मैने अकेले ही किया। आपने मेरा कहीं भी साथ नहीं दिया।
     भक्त की बात सुनकर भगवान मुस्कराए और बोले-नहीं वत्स! मैं अपने कहे अनुसार जीवन के हर कदम पर तुम्हारे साथ था। इसका क्या प्रमाण है? भक्त ने भगवान से पूछा। इस पर भगवान ने उससे कहा-सामने की दीवार पर देखो। तुम्हारे जीवन की सारी कहानी तस्वीरों में दिखाई देगी। भक्त को सामने की दीवार पर दो व्यक्तियों के पदचिन्हों के रूप में अपने जीवन की सारी घटनाएँ दिखार्इं देने लगीं। भगवान ने कहा-पुत्र! इनमें से एक पदचिन्ह तुम्हारे हैं और दूसरे मेरे। देखो, मैं हर समय तुम्हारे साथ ही चल रहा था। उसने देखा कि बीच-बीच में केवल एक ही व्यक्ति के पदचिन्ह दिखाई दे रहे हैं। उसे याद आया कि ये पदचिन्ह उन समयों के हैं, जब वह कठिन दौर से गुज़र रहा था। उसने भगवान से कहा-प्रभु! इन पदचिन्हों को देखिए। जब जब मुझे आपकी सबसे ज़्यादा आवश्यकता थी, तब तब आप मेरे साथ नहीं थे। भक्त की बात सुनकर भगवान बोले-पुत्र! तुम मुझे अत्यंत प्रिय हो। मैने तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा। परीक्षाओं की घड़ियों में तुम्हें जो पदचिन्ह दिखाई दे रहे हैं, वे मेरे हैं। उस समय मैने तुम्हें अपनी गोद में उठाया हुआ था। इस कारण तुम्हारे पैरों के निशान वहाँ नहीं बन पाए। चूँकि तुम उस समय अपने कर्म में इतने डूब गए थे कि तुम्हें यह भान ही नहीं हुआ कि मैने तुम्हें अपनी गोद में उठा रखा है। कर्म तो तुम्हें ही करना था। इसलिए गोद में रहकर भी तुम कर्म करते रहे और तुम्हारे निष्काम कर्मों का फल मैं तुम्हें तुम्हारी सफलता के रूप में देता रहा।
     भगवान भरोसे रहने वालों के लिए यह अच्छी कहानी है। ईश्वर अपने उन्हीं भक्तों का साथ देता है जो खुद का साथ देते हैं यानी अपने कर्म करते हैं। जो कर्म नहीं करते, उनका भगवान भी साथ नहीं दे सकता। यह मानी हुई बात है। यहाँ एक सवाल यह भी उठ सकता है कि भगवान ने भक्त को जब सदा साथ चलने का वर दे दिया था तो फिर वे अपनी बात से कैसे पलट सकते थे? फिर वह भक्त चाहे कर्म करे या न करे। इसका उत्तर यह है कि भगवान ने उसे हमेशा साथ चलने का वर दिया था, साथ देने का नहीं। यदि भक्त कर्म नहीं करता तो वे उसे गोद में नहीं उठाते, सिर्फ उसके साथ चलते, फिर भले ही वह जीवन के संग्राम में असफल ही क्यों न हो जाता।
     इसलिए आप यदि चाहते हैं कि आपको जीवन में सफलता मिले, तो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी मेहनत और जोश के साथ निष्काम प्रयत्न करें। क्योंकि आपका अधिकार सिर्फ प्रयत्न करने तक ही सीमित है और फल देने का अधिकार उसका है। इसलिए आप सिर्फ अपने अधिकार का प्रयोग करें, ईश्वर भी अपने अधिकार का उपयोग करेगा यानी आपको फल देगा।

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