Tuesday, October 4, 2016

हार मत मानो, निरंतर प्रयास करते रहो


     एक बार दो राजाओं में युद्ध छिड़ गया। आक्रमणकारी राजा की सेना का मुकाबला दूसरे राजा ने पूरे साहस के साथ किया, लेकिन दुश्मन की बड़ी सेना के सामने उसकी सेना के पाँव जल्दी उखड़ गए। पराजित राजा जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर जंगल में भाग गया। चलते-चलते जब वह थककर चूर हो गया तो एक वृक्ष के नीचे बैठ गया। निराशा ने उसे इस कदर घेर रखा था कि उम्मीद की कोई भी किरण दिखाई नहीं देती थी।
     वह सोच रहा था कि इतनी बड़ी सेना का मुकाबला नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार उसके मन में तरह-तरह के नकारात्मक विचार उठ रहे थे कि अचानक उसकी नज़र सामने के टीले पर पड़ी। उसने देखा कि एक छोटी-सी चींटी अपने से कई गुना बड़े आकार का दाना लेकर टीले पर चढ़ने का प्रयास कर रही है और असफल होकर हर बार नीचे गिर रही है। उसने देखा कि लगातार प्रयास करते-करते चींटी अंततः टीले पर चढ़ने में सफल हो ही गई और उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया। चींटी के इस आचरण से राजा को आत्मग्लानि हुई। वह सोचने लगा कि मुझसे तो यह चींटी ही श्रेष्ठ है जिसने लगातार प्रयास कर अंततः सफलता हासिल कर ही ली। मुझे भी हिम्मत न हारते हुए ऐसा ही करना चाहिए। चींटी की सीख ने राजा में नई स्फूर्ति भर दी। उसने गुपचुप तरीके से राज्य के देशभक्त शूरवीरों को एकत्रित करना शुरू कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे उसने बहुत बड़ी सेना तैयार कर ली। राजा ने अपनी सेना के प्रशिक्षण के लिए उन सैनिकों को चुना जो दुश्मन की सेना का मुकाबला कर चुके थे। राजा का मानना था कि उसके ये सैनिक भले ही पराजित हो गए हों, लेकिन इस दौरान वे दुश्मन की युद्धकलाओं से परिचित हो चुके थे। इसलिए वे दुश्मन का सामना करने के तरीके नए सैनिकों को सिखा सकते थे।
     इसके बाद एक दिन उचित समय देखकर राजा ने दुश्मन पर हमला कर दिया। विपक्षी सेना के सारे दाँव खाली जाने लगे, क्योंकि राजा की सेना पहले से ही प्रशिक्षित थी। शीघ्र ही विरोधी सेना भाग खड़ी हुई और राजा ने अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया। इसके बाद राजा जब अपने सिंहासन पर बैठा होगा ते उसे उस चींटी की याद ज़रूर आई होगी जो उसके लिए किसी गुरु से कम न थी जिसके दिए "गुरुमंत्र' के सहारे ही वह पुनः अपना राज्य प्राप्त कर पाया।
     वैसे इस तरह की घटनाओं का सामना जीवन में किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति को करना होता है। अकसर हम अपने प्रतिद्वंदी के "आकार' को देखकर ही हिम्मत खो देते हैं यानी बिना प्रयास किए ही मन ही मन हार मान लेते हैं। जबकि हमें हर स्थिति का डटकर मुकाबला करना चाहिए। यदि प्रतिद्वंद्विता में हम एक बार असफल हो ही जाएँ तो भी निराश होने की ज़रूरत नहीं। सिर्फ उस चींटी को याद कर लें जो लक्ष्य प्राप्ति के लिए निरंतर प्रयत्न करती रहती है। आप चाहें तो उसे अपने आसपास ही कहीं देख सकते हैं। निरंतर प्रयास का यह जज़्बा हम सभी में होना ही चाहिए। तो किसी भी स्थिति में हार मत मानों, निरंतर प्रयास करते रहो। एक दिन जीत आपकी ही होगी।

2 comments:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’ कहाँ से चले थे कहाँ आ गये हैं - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

    ReplyDelete