Saturday, October 29, 2016

पहल करने वाले ही रचते हैं इतिहास


     सन् 1857 की सर्दियाँ। कलकत्ता के नज़दीक स्थित बैरकपुर अंग्रेजों की एक महत्वपूर्ण सैनिक छावनी था। 34 वीं इंफेंट्री रेजिमेंट के जवानों में आक्रोश चरम पर था। उन्हें पता चला था कि जिन कारतूसों का प्रयोग वे कर रहे हैं, उनमें चिकनाई के तौर पर गाय और सुअर की चरबी का इस्तेमाल किया जा रहा है। यदि ऐसा है तो यह धर्म भ्रष्ट करने वाली बात है। जवानों का मानना था कि आदमी अपने धर्म और ईमान को बेचकर नौकरी नहीं कर सकता। अंग्रेजों ने यह काम निश्चित ही हिंदू-मुसलमानों की धार्मिक आस्थाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से किया होगा। और कोई भी जवान इस बात पर अंग्रेजों से समझौता करने को तैयार नहीं था।
     लेकिन अंग्रेज़ थे कि उनकी बातों को सुनने को तैयार ही नहीं थे। वे तो नए-नए तर्क देकर उनकी बातों को झुठलाने का प्रयास करते थे। जब जवानों ने कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया तो वहाँ के कमांडिंग ऑफिसर मिचेल ने उन्हें उद्दंडता बर्दाश्त न करने की धमकी दे दी। इससे माहौल ठंडा होने की जगह और बिगड़ गया। उधर निचेल ने अपनी घुड़सवार सेना और तोपखानों को पहले से ही सतर्क कर दिया ताकि किसी भी बगावत से निपटा जा सके। इस बात से जवानों का गुस्सा और बढ़ गया। एक दिन रात को घुड़सवार टुकड़ी व तोपों के पहियों की आवाज़ सुनकर वे जाग गए। सभी जवान घबराए हुए थे। वे शास्त्रागार की तरफ लपके और उन्होने बंदूकों और कारतूसों को अपने कब्ज़े में ले लिया। बाद में मिचेल वहाँ पहुँचा स्थिति की गंभीरता को देखते हुए कुछ देशी अफसरों ने उसे सलाह दी कि आप फौज व तोपें वापस भेजकर इनका विश्वास जीतें व कल शांत भाव से इनसे बातें करें। सब ठीक हो जाएगा। उसे उपाय पसंद आया। सुबह जवानों को प्यार से समझाया गया कि कुछ लोग आपको गुमराह कर रहे हैं। यदि शक है तो आप कारतूसों को दाँत की बजाय हाथ से छील लें, वरना सभी को नौकरी से बर्खास्त कर दिया जाएगा।
     ऑफिसर की बात पर किसी को विश्वास नहीं हुआ। एक जवान बोला-अगर हमने इनकी बात नहीं मानी तो ये हमें नौकरी से निकाल देंगे। इस पर हमेशा चुप रहने वाला एक जवान मंगल पाँडे तपाक से बोला-यानी हमें कारतूसों का प्रयोग करना ही होगा? उसके प्रश्न को सुनकर सब आश्चर्य से चौंक पड़े। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि हमेशा चुप रहने वाला मंगलपांडे कभी ऐसा प्रश्न भी कर सकता है। कुछ समय बाद यह पता चलने पर कि अंग्रेज जवान उनकी रेजिमेंट में आ रहे हैं, जवानों के होश उड़ गए। उस दिन परेड मैदान पर मंगल पांडे से नहीं रुका गया। वह हाथ में बंदूक लिए बेखौफ आगे बढ़ा और चिल्लाया-मेरे डरपोक साथियों, तुम सिर्फ बातें ही कर सकते हो, करते कुछ नहीं। इसके पहले कि अंग्रेज अफसर हमारा धर्म भ्रष्ट करें, अपने हाथों में हथियार उठाकर हमें उनका प्रतिकार करना चाहिए। उसकी बातों से जवानों में उत्तेजना तो फैली, लेकिन कोई कदम आगे नहीं बढ़ा। वे अभी भी सिर्फ जबानी बातें ही कर रहे थे।
     इधर, मंगल पांडे उन्हें आगे बढ़ने के लिए ललकार रहा था। इतने में लेफ्टिनेंट बॉग वहाँ आया। मंगल पांडे बोला-आगे बढ़ो, मेरा साथ दो। कोई अपनी जगह से नहीं हिला। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी और बॉग पर गोली चला दी। परंतु बॉग बच गया और तलवार लेकर उस पर लपका, लेकिन मंगलपांडे ने उसे धराशायी कर दिया। सिपाहियों में हर्ष ध्वनि फैल गई।
     दोस्तो, इसके बाद क्या हुआ, यह इतिहास की पुस्तकों में दर्ज़ है, लेकिन हमारे लिए यही वह हिस्सा है, आप जानते ही हैं कि मंगल पांडे का नाम इतिहास में क्यों दर्ज़ है। इसलिए नहीं कि वह सवतंत्रता संग्राम का बहुत बड़ा सेनानी था, बल्कि इसलिए कि उसकी बंदूक से निकली गोली ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की नीàव रखी। उसने हिम्मत करके पहला कदम बढ़ाया और अंग्रेज़ों का सामना किया। उसके बाद तो फिर सभी उसके पीछे खड़े थे।
     मंगल पांडे ने हमें सिखाया कि सिर्फ जबानी जमा-खर्च से काम नहीं चलता। हमें कुछ करके भी दिखाना चाहिए। बातें तो हम बड़ी-बड़ी कर सकते हैं। इतनी बड़ी कि जो भी उन्हें सुने तो उसे लगे कि यह आदमी इतिहास बदलने की क्षमता रखता है। लेकिन यदि इतिहास सिर्फ बातों से लिखा जा सकता तो कोई भी व्यक्ति रोज नया इतिहास लिख देता। इतिहास लिखा जाता है कर्मों से, साहस से, पहल से। यानि आप किसी भी चीज़ की योजनाएँ तो बहुत बड़ी-बड़ी बना लेते हैं, लेकिन यदि आप में पहल करने की, उस योजना के अनुरूप आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं है तो फिर योजनाएँ क्रियान्वित कैसे होंगी? यह उसी तरह है कि आपको कहीं जाना है और आप सोचें कि बिना कदम बढ़ाए वहाँ पहुँच जाएँगे, तो ऐसा नही होता। यह तो किस्से-कहानियों में ही होता है। हकीकत की दुनियाँ अलग है। यहाँ तो आपको अपना कदम बढ़ाना ही होगा, तभी तो सफलता के रास्ते का सफल आरंभ होगा। अन्यथा खड़े रहें, जहां खड़े हैं और ख्याली पुलाव पकाते रहें। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि इतिहास रचें तो कठिनाइयों की न सोचकर कदम बढ़ाएँ, अगुआई करें। कौन जाने एक नया इतिहास आपके ही द्वारा लिखा जाने वाला है।

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