Thursday, October 20, 2016

लेन-देन ठीक हो तो लेने के देने न पड़ें


     नेपोलियन बहुत ही कर्मठ सम्राट था। वह खुद भी जमकर मेहनत करता था और दूसरों से भी करवाता था। एक रात सारे काम निपटाने के बाद जब वह खिड़की पर आकर खड़ा हुआ तो उसकी नज़र अपने दफ्तर के कमरे से आ रही रोशनी पर पड़ी। उसने सोचा-कौन इतनी देर तक काम कर रहा है? पता लगाना चाहिए। वह तुरंत दफ्तर पहुँचा। वहाँ जाकर उसने देखा कि उसका एक बड़ा अफसर वहाँ मौज़ूद था। सम्राट को देखकर वह खड़ा हो गया। सम्राट ने पूछा-तुम इतनी देर तक यहाँ क्या कर रहे हो? अफसर बोला-बहुत दिनों से रात में नींद नहीं आ रही थी। इसलिए सोचा कि बेकार में करवटें बदलने से अच्छा है दफ्तर में रुककर काम ही किया जाए। सम्राट बोला-नींद क्यों नहीं आती तुम्हें? क्या परेशानी है? अफसर पहले तो झिझका, लेकिन जोर देने पर बोला-सम्राट! मुझ पर भारी कर्ज़ हो गया है। समय पर चुका न पाने के कारण अब लेनदार परेशान कर रहे है। जिसकी वजह से ही मेरा दिन का चैन और रातों की नींद उड़ गई है। उसकी बात सुनकर नेपोलियन बोला- लेकिन तुम्हारा वेतन तो अच्छा-खासा है, फिर भी कर्ज़दार हो? निश्चित ही तुम फिजूलखर्च होंगे। मैं ऐसे आदमी को नौकरी पर नहीं रख सकता, जो पैसों का सही ढंग से उपयोग करना ही नहीं जानता हो। हो सकता है तुम अपना कर्ज़ चुकाने के लिए राजकीय कोष में भी हेराफेरी कर दो। मैं तुम्हें तत्काल प्रभाव से नौकरी से बर्खास्त करता हूँ।
     यह सुनकर अफसर को तो जैसे साँप सूँघ गया। वह चुपचाप दफ्तर से बाहर निकल गया। उसने बड़ी मुश्किल से रात गुज़ारी। सुबह-सुबह उसके दरवाज़े पर किसी ने आकर दस्तक दी। उसने सोचा कि कोई कर्ज़दार होगा। उसने दरवाज़ा खोला तो सम्राट का एक संदेशवाहक उसके हाथ में एक लिफाफा थमाकर चला गया। बर्खास्तगी का आदेश समझकर उसने लिफाफा खोला, लेकिन उसमें से धनराशि और एक पत्र निकला। पत्र में लिखा था-मैने रात भर तुम्हारे बारे में सोचा और पाया कि तुम्हारी बर्खास्तगी ठीक कदम नहीं, क्योंकि जब तुम मेरे यहाँ नौकरी कर रहे हो तो तुम्हारे परिवार की चिंता करना मेरा कर्तव्य है। इसलिए यह राशि भेज रहा हूँ। इससे अपना कर्ज़ चुका देना और आगे से उतना ही खर्च करना, जितनी तुम्हारी क्षमता है। और हां, दफतर ज़रूर आ जाना।
     कहना न होगा कि इस घटना के बाद वह अफसर हमेशा के लिए अपने सम्राट का मुरीद हो गया, क्योंंकि सम्राट ने अपना कर्तव्य सही तरीके से जो निभाया था। एक मालिक का अपने कर्मचारियों के प्रति वह दृष्टिकोण होना चाहिए, जो नेपोलियन का अपने अफसर के प्रति था। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब पूरी वफादारी, लगन और अपने पन की भावना के साथ किसी संस्था के लिए दिन-रात काम करता है तो उसे भी संस्था से कुछ अपेक्षा रहती है कि वह संस्था भी उसके सुख-दुःख में उसके साथ खड़ी रहे। जब संस्था ऐसा करती है तो कर्मचारी के अंदर भी संस्था के प्रति समर्पण की भावना और अधिक मजबूत होती है। इसका सीधा लाभ संस्था को होता है। इसलिए यदि आप व्यवसायी हैं तो समय-समय पर अपना कर्मचारियों के लिए कुछ-न-कुछ अच्छा करने की सोचें। हम यह नहीं कह रहे कि सहयोग धन से ही करें, प्यार के दो मीठे बोल भी काफी होते हैं, बशर्ते ये बोल दिल से बोले जाएँ। ये तो लेन-देन की बात है। जैसा आप दूसरों को देंगे, वैसा ही आपको भी मिलेगा। इसलिए यदि आपका अपने कर्मचारियों के साथ व्यवहार ठीक है तो फिर निश्चित ही आपको अपने व्यवसाय में कभी तकलीफ नहीं आएगी।

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