Monday, October 17, 2016

बोलोे मगर बोलने से पहले तोलो


     एक बार शेखचिल्ली की तबीअत खराब हो गई। वह हकीम के पास गया। हकीम ने उसे दवाई देते हुए कहा कि अगले कुछ दिन वह सिर्फ खिचड़ी ही खाए। शेखचिल्ली के लिए यह नया शब्द था। उसने पहले कभी खिचड़ी के बारे में नहीं सुना था। उसने सोचा-कहीं रास्ते में यह शब्द भूल न जाऊँ। इसलिए बेहतर यही है कि रास्ते भर "खिचड़ी' का नाम रटते हुए जाऊँ। ऐसा सोचकर उसने हकीम से बिदा ली और जोर-जोर से "खिचड़ी-खिचड़ी' कहता हुआ चल दिया। रास्ते में काफिले को देखने के चक्र में वह रटना भूल गया। दिमाग पर बुहत जोर डालने के बाद उसे "खाचिड़ी' शब्द याद आया। अब वह "खाचिड़ी-खाचिड़ी' रटता हुआ आगेे बढ़ता गया। थोड़ी ही दूर पर एक किसान अपने खेत में बनी मचान पर बैठा चिड़ियों को उड़ा रहा था। शेखचिल्ली की आवाज़ को सुनकर उसने सोचा कि मैं सवेरे से चिड़ियों को भगा रहा हूँ और यह है कि उन्हे मेरा खेत खाने के लिए कह रहा है। वह गुस्से में मचान से उतरा और उसकी धुनाई करने लगा। शेखचिल्ली ने किसान से नाराज़गी का राज़ पूछा। किसान उसे कारण बताते हुए बोला-यदि तूने अब "खाचिड़ी' की जगह "उड़ चिड़ी' रटना शुरु नहीं किया तो मार-मारकर तेरे अंदर भूसा भर दूँगा। शेखचिल्ली ने डरकर उसकी बात मान ली और "उड़ चिड़ी' रटता हुआ आगे बढ़ गया। आगे एक शिकारी जाल बिछाए बैठा था। "उड़ चिड़ी' कहते सुन उसे लगा कि यह चिड़ियों को चेता रहा है। वह चिढ़कर उसे पीटने लगा। शेखचिल्ली बोला-अरे भाई! मुझे पीट क्यों रहे हो? शिकारी बोला-मैं तुझे नहीं पीटूँगा, यदि तू "उड़ चिड़ी' की जगह "फँस चिड़ी' कहना शुरु कर दे। मरता क्या न करता। वह तैयार हो गया और "फँस चिड़ी' कहता हुआ आगे चल दिया। आगे कुछ चोर चोरी करके आ रहे थे। उन्होने शेखचिल्ली की आवाज़ सुनकर सोचा कि यह ज़रूर कोई जासूस होगा, जो हमें पकड़वाना चाहता है। इससे पहले कि यह हमारा नुकसान करे, हम इसे ही सबक सिखा देते हैं। उन्होने उसे पकड़कर पेड़ से उलटा लटका दिया और डंडों से मारने लगे। जल्दी ही वह बेहोश हो गया। चोर मरा समझकर उसे वहीं छोड़कर भाग गए।
     यह है शब्द की महिमा। मुँह से निकला एक-एक शब्द क्या गुल खिला सकता है यह आपने देख ही लिया। तभी तो कहते हैं कि जो भी बोलो सोच-समझकर बोलो। क्योंकि आपके बोले हुए एक-एक शब्द की कीमत बहुत अधिक होती है। लेकिन अधिकतर लोग इस बात को समझते नहीं। उन्हें तो लगता है कि बोलने में क्या जाता है। कौन-सा अपनी जेब से कुछ देना पड़ेगा, इसलिए जो मन में आए बोल दो। यदि आप ऐसा सोचते हैं तो गलत हैं। क्योंंकि सारा खेल बोलने पर ही टिका है, तभी तो ज़बान से निकला एक शब्द भी भारी नुकसान का कारण बन जाता है। क्योंंकि एक बार मुँह से निकला शब्द फिर कभी वापस नहीं आ सकता। फिर भले ही बाद में आप कितनी ही सफाई क्यों न देते फिरें।
     ज़बान पर काबू न रखने वालों के कॅरियर में कई ऐसे क्षण आते हैं जब वे अपने बॉस के सामने खड़े हुए कह रहे होते हैं कि सर, मेरे कहने का मतलब यह नहीं था। तब बॉस हो सकता है कि आपको नासमझ मानकर माफ कर दे, लेकिन उसके दिमाग में तो वह बात बैठ ही चुकी होगी। और गाहे-बगाहे वह आपको इसका अहसास भी कराता रहेगा। इसलिए कभी भी ऐसी बात मत कहो जिसके लिए बाद में आपको सफाई देनी पड़ जाए।
     दूसरी ओर आपके द्वारा बोली गई बातों से भी आपकी छवि का निर्माण होता है, आपके चरित्र का पता चलता है। इसलिए अपनी कही बात से मुकरना कोई अच्छी बात नहीं। एक-दो बार चलता है, लेकिन यदि आप वाचाल हैं तो फिर अकसर यही गलती करेंगे और मुकरेंगे। इससे आपके चरित्र पर उलटा असर पड़ता है। वैसे भी हम कोई नेता तो हैं नहीं, जो सुबह कही गई बात से शाम को बड़ी ही बेशर्मी से यह कहकर मुकर जाएँ कि मेरी बात को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है। हालाँकि राजनीति में भी ऐसे कई नेता आपको मिल जाएँगे, जो एक बार अपनी ज़बान फिसलने के कारण हाशिए पर डाल दिए गए।
     यहाँ गौर करने लायक एक बात और है कि आप जो बोल रहे हैं और जिस रूप में बोल रहे हैं, ज़रूरी नहीं है कि लोग उस बात को उसी रूप में ग्रहण कर रहे हो। देखो न, शेषचिल्ली को खिचड़ी बोलना था और उसे एक शब्द ने अपने रूप बदल-बदल कर उसकी ही खिचड़ी बनवा दी। यानी कहा जा सकता है कि शब्द के बारे में शब्द से ज़्यादा यह महत्वपूर्ण है कि उसे किस रूप में समझा गया है। आप कह कुछ रहे हों, लोग समझ कुछ रहे हों। और हो कुछ का कुछ रहा हो। तो फिर तो गड़बड़ होनी ही है। इसलिए हम तो कहेंगे कि किसी की कही गई कोई बात यदि आपको समझ में नहीं आ रही है तो आगे रहकर एक बार फिर से पूछ लो। पूछने में किस बात की शर्म। क्र्योंकि न पूछकर बाद में जो स्थिति बनेगी वह ज़्यादा शर्मनाक होगी। साथ ही यदि आप कुछ कह रहे हो तो जिसे कह रह हो इससे भी एक बार पूछ लो कि उसने क्या समझा। इससे अर्थ का अनर्थ नहीं होगा। पूछ लोगे तो आपको भी संतुष्टि रहेगी और काम भी वैसा ही होगा जैसा आप चाहते हैं। इसलिए यदि आप बोलने से पहले शब्दों को तोल लोगे तो उन अनजानी विपरीत परिस्थितियों से बच जाओगे जो कि आपके द्वारा कहे गए शब्दों के माध्यम से उत्पन्न हो सकती हैं।

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