Saturday, September 24, 2016

दुरपयोग न करें पद व सुविधाओं का


     चंद्रगुप्त के मगध के सिंहासन पर बैठने के बाद चाणक्य महामंत्री बनकर राजकाज में उनका हाथ बँटाने लगे। वे राजनीति व अर्थशास्त्र के प्रकांड विद्वान थे। एक बार चीन का राजदूत चंद्रगुप्त से मिलने आया। वह बहुत ही शाही प्रवृत्ति का अहंकारी व्यक्ति था
और पूरे राजसी ठाठबाट से रहने का आदी था। उसने चाणक्य से भेंट का समय माँगा। चाणक्य चूंकि बहुत ही व्यस्त रहते थे, इसलिए उन्होने रात्रि में मिलनेे का समय दिया।
     राजदूत नियत समय पर चाणक्य से मिलने पहुँचा। वहाँ जाकर उसने देखा कि जिस व्यक्ति से वह भेंट करने आया है, वह तो एक साधारण-सी-कुटिया में रहता है। उसे बहुत आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगा कहीं वह गलत आदमी से मिलने तो नहीं आ गया। ऐसा सोचता हुआ वह कुटिया के अंदर पहुंचा। वहां एक दीए की लौ के सामने बैठे चाणक्य कुछ पढ़ रहे थे। राजदूत की हैरानी और बढ़ गई। वह सोच रहा था कि महान सम्राट चंद्रगुप्त का महामंत्री चाणक्य छोटे-से दीए की लौ में अपनी आँखें फोड़ रहा है। इससे तो मैं अच्छा हूँ। एक राजदूत होकर भी सभी राजसी सविधाएं मुझे प्राप्त हैं।
     इस बीच चाणक्य की दृष्टि राजदूत पर पड़ी। उन्होने उठकर उसका अभिवादन किया और आसन ग्रहण करने को कहा। इसके पहले कि उन दोनों के बीच वार्तालाप प्रारंंभ हो, चाणक्य ने एक दूसरा दीया जलाया और पहले वाले दीए को बुझा दिया। राजदूत की समझ में यह बात नहीं आई। इसके पहले कि वह कुछ पूछता, उनके बीच औपचारिक बातें शुरू हो गई। उसने दोनों देशों के आपसी संबंधों और राजनीति पर बहुत-सी बातें चाणक्य से की। अंत में जब उनकी बातें खत्म हो गर्इं तो चाणक्य ने पहले वाला दीया फिर से जला दिया और जो जल रहा था, उसे बुझा दिया। अब तो राजदूत से रहा नहीं गया। उसने चाणक्य से दीया जलाने-बुझाने का रहस्य पूछा।
     चाणक्य ने कहा-कोई विशेष बात नहीं। जब आप यहाँ आए थे, तब मैं स्वाध्याय कर रहा था। उस समय जो दीया जल रहा था, वह मेरा व्यक्तिगत था। यानी अपने काम के लिए मैं अपने दीए का उपयोग कर रहा था। जब मैं आपसे बातचीत करने लगा तो मैने अपना दीया बुझाकर दूसरा दीया जला दिया। यह काम राजकीय था, इसलिए राजकीय दीया जलाना ज़रूरी था। जब मैं स्वाध्याय कर रहा था, तब मैं चाणक्य था और जब आपसे चर्चा कर रहा था, तब महामंत्री चाणक्य था। मैं महामंत्री और आम आदमी के बीच का अंतर और उनके उत्तरदायित्व अच्छी तरह समझता हूँ। चाणक्य की बात सुनकर चीन का राजदूत पानी-पानी हो गया। उसका सारा अहंकार जाता रहा। वह चाणक्य से बोला-महात्मन्! आपके जैसे महापुरुष से मिलकर मैं धन्य हो गया। आज आपने मुझे राजनीति का सबसे बड़ा पाठ सिखा दिया। राजनेता को अपने पद और सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।
     चीनी राजदूत तो चाणक्य से राजनीति की शिक्षा लेकर अपने देश लौट गया, लेकिन विडम्बना यह है कि उसके देश के अधिकांश राजनेता आज तक राजनीति का यह पाठ नहीं सीख पाए। सवाल यह उठता है कि क्या यह बात सिर्फ राजनेताओं तक ही सीमित है? नहीं, बिलकुल नहीं। यह हम सभी पर लागू होती है। हममे से कितने लोग ऐसे हैं, जो अपनी संस्था द्वारा दी जा रही सुविधाओं का दुरुपयोग नहीं करते। निश्चित ही बहुत कम हैं। मुफत की सुविधाओं का तो हम बिना सोचे-विचारे उपभोग करते हैं, उन्हें बर्बाद करते हैं। इस प्रकार जाने-अनजाने में संस्था की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसे लोग भूल जाते हैं कि ये सुविधाएँ उन्हें इसलिए दी जाती हैं ताकि इनके अभाव के कारण उनका कार्य प्रभावित न हो। जब आप इनका दुरुपयोग करेंगे तो इसका तात्कालिक असर आप पर भले ही न पड़े, लेकिन इसके दूरगामी परिणामों से आप बच नहीं सकते। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि प्रबंधन की नज़र में आपका चारित्रिक ग्राफ गिरता है। इसकी जगह जो लोग इन बातों को ध्यान में रखकर व्यवहार करते हैं, प्रबंधन की नज़र में वे ऊपर चढ़ते हैं और तरक्की पाते है। इस प्रसंग में चाणक्य ने हर स्थिति में एक ही दीये से काम चलाया। क्यों? क्योंकि जहाँ एक दीये के प्रकाश से काम चल सकता है, वहाँ अतिरिक्त दीये जलाकर ऊर्जा का दुरुपयोग करने का क्या लाभ।

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