Friday, September 16, 2016

विचारों का प्रभाव


     बहुत समय पूर्व एक गाँव में एक सीधी-सादी वृद्धा रहती थी। उसकी इकलौती बेटी का विवाह पास के ही एक गाँव में हुआ था। एक बार उसकी इच्छा अपनी बेटी से मिलने की हुई। उसने अपना सामान एक पोटली में बाँधा, जिसमें उसने बेटी के लिए अपने हाथ से बनाए पापड़, अचार आदि भी रख लिए और सिर पर रखकर बेटी से मिलने पैदल चल पड़ी।
     पोटली का बोझ और तपती धूप के कारण वह जल्दी ही थक गई। वह मन ही मन सोचने लगी-काश! उसकी सहायता के लिए कोई राहगीर मिल जाए। वह सोच ही रही थी कि उसे तेज़ी से आता हुआ एक घुड़सवार दिखाई दिया। उसे देखते ही वृद्धा हाथ हिलाते हुए पुकारने लगी-"अरे ओ बेटा! ओ घोड़े वाले। ज़रा सुन तो बेटा। इस वृद्धा की सहायता कर। उसकी आवाज़ सुनकर घोड़े वाला रुक गया। उसने पूछा-क्या है बुढ़िया। क्यों शोर मचा रही है? कौन सी आफत आ गई है तेरे ऊपर, जो सहायता के लिए मुझे पुकार रही है। उसकी बात सुनकर वह बोली-नाराज़ न हो बेटा। मैं पास वाले गाँव में जा रही हूँ। चलते-चलते और पोटली के वजन से थक गई हूँ। तू यदि उसी तरफ जा रहा हो तो मुझे भी अपने घोड़े पर बैठाकर ले चल। इस पर युवक बोला-अरे, मैं तुझे कहाँ बैठाऊँगा अपने घोड़े पर। जगह ही कहाँ है? देखती नहीं इस पर कितना समान लदा है। तब वह बोली-कोई बात नहीं बेटा, तो फिर तू मेरी पोटली ही अपने घोड़े पर रख ले जा। मैं पीछे-पीछे आ रही हूँ। वहाँ आकर इसे ले लूंगी।
     वृद्धा की बात सुनकर वह घुड़सवार बोला-क्या बात करती है बुढ़िया। तू पैदल है और मैं घोड़े पर। मैं तो वहाँ फटाफट पहुँच जाऊंगा और तू पीछे-पीछे न जाने कब पहुँचेगी मैं कब तक तेरा इंतज़ार करूँगा? ऐसा कहकर वह उसे झिड़कते हुए आगे बढ़ गया। वह कुछ ही दूर पर पहुँचा होगा कि उसके मन में विचार आया-कितना मूर्ख हूँ मैं। वह मुझे अपनी पोटली दे रही है और मैं उसे मना कर रहा हूँ। हो सकता है पोटली में कोई कीमती सामान हो। कहीं ऐसा न हो कि हाथ आई लक्ष्मी वापस चली जाए। ऐसा करता हूँ कि मैं जाकर उससे पोटली लेकर रफूचक्कर हो जाता हूँ। वह कौन-सी मुझे जानती है, जो बाद में ढूँढ लेगी। वैसे भी उसे गाँव तक पहुँचते-पहुँचते बहुत समय लग जाएगा। तब तक तो मैं न जाने कहाँ का कहाँ पहुँच जाऊँगा।
     ऐसा विचार आते ही वह घुड़सवार वापस आया और वृद्धा से बोला-अम्मा! लाओ, आप यह पोटली मुझे दे दो। मैं इसे ले जाकर गाँव की चौपाल पर बैठ जाता हूँ, आप वहाँ आकर मुझसे ले लेना। उसकी मीठी-मीठी बात सुनकर वृद्धा तुरंत बोली-न बेटा न। अब तो तू चला जा। यह पोटली अब मैं तुझे नहीं दूँगी। इस पर वह आश्चर्य से बोला-अरे, क्या हुआ अम्मा। अभी तो आप मुझे इसे ले जाने को कह रही थीं और जब मैं मान गया हूँ तो मना कर रही हो। क्या बात है। यह उलटी बात आपके मन में कैसे आई?
     वृद्धा मुस्कराकर बोली-वैसे ही बेटा जैसे तेरे मन में आई कि जाकर बुढ़िया से पोटली ले आ। अब जो तेरे भीतर है, वह मेरे भी भीतर है। तुझे उसने कहा, बुढ़िया से पोटली ले ले और भाग जा। वैसे ही मुझे उसने कहा-प्रेम से बोल रहा है, ज़रूर दगाबाज़ी करेगा। पोटली दे देगी तो भाग जाएगा। इसलिए अब तो यह पोटली मैं तुझे नहीं दूँगी। जा चला जा। इसके बाद वह घुड़सवार शर्मिंदा होकर वहाँ से चला गया।
     देखा आपने, एक व्यक्ति के  मन में उठा नकारात्मक विचार दूसरे व्यक्ति के विचारों को किस तरह प्रभावित करता है। उस घुड़सवार के मन में गलत बात आते ही जब वह वृद्धा के पास पहुँचा तो उसके भी मन में उलटे विचार ही उठे। यहाँ मुद्दा यह नहीं है कि उसके मन में जो विचार आया वो कितना सही या चतुराई भरा था। उसने सही सोचा ना। यानी हमारे सोचने के तरीके का प्रभाव हमारे आसपास के लोगों पर भी पड़ता है। इसलिए कह सकते हैं कि यदि हमारी सोच नेगेटिव है तो हमारे आसपास के लोगों की भी सोच नेगेटिव होने लगती है। भारतीय दर्शन में इसे समझाते हुए कहा गया है कि मन में नकारात्मक विचार उठने के साथ ही मस्तिष्क से ऋणात्मक धाराएँ बहने लगती हैं, जो आपके चारों ओर के वातावरण को नकारात्मक बनाती है। ये आपको तो प्रभावित करती ही है, साथ ही आपके संपर्क में आने वाले व्यक्ति को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं। इन्हीं के प्रभाव से व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है।
     सोचिए कितनी खतरनाक हैं ये धाराएं। इसलिए हमें अपने मन में आने वाले नकारात्मक विचारों पर अंकुश लगाकर ऐसी धाराओं को बहने से रोकना होगा।

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