Monday, September 12, 2016

डोलते ही रहते हैं डाँवाडोल इंसान


     एक बार एक गुरु अपने शिष्यों के साथ जंगल में जड़ी-बूटियाँ खोज रहे थे। जब बहुत समय हो गया तो उन सभी को प्यास लगने लगी। वे जड़ी-बूटियों की खोज छोड़कर पानी की तलाश में लग गए। तलाशते-तलाशते वे जंगल के बाहर आ गए। वहाँ उन्हें एक खेत दिखाई दिया जिसमें कई गड्ढ़े थे। एक  शिष्य बोला-गुरु जी! उधर देखिए। उस खेत में कई कुएं हैं। उनमें अवश्य ही पानी होगा। चलिए, वहाँ चलकर अपनी प्यास बुझाएँ। वे सभी उस खेत की ओर चल पड़े।
     खेत के नज़दीक पहुँचकर उन्होने देखा कि वे कुएँ नहीं सिर्फ कुछ ही गहरे गड्ढ़े थे और उनमें पानी भी नहीं था। सभी उदास हो गए। तभी गुरुजी को एक बात सूझी। उन्होने अपने शिष्यों से पूछा-क्या आपमें से कोई इन गड्ढो का राज़ बता सकता है? क्यों एक ही खेत में कदम-कदम पर इतने सारे गड्ढे खोदे गए हैं। साथ ही इस खेत के मालिक का स्वभाव कैसा होगा? सभी शिष्य सोचने लगे। एक शिष्य बोला-गुरु जी! यह खेत नीश्चित ही किसी शिकारी का होगा। वह बहुत ही चतुर है। उसने यहाँ इतने सारे गड्ढे इसलिए किए हैं ताकि जब भी कोई जानवर इस तरफ आए तो वह किसी न किसी गड्ढे में गिर पड़े और वह उसे पकड़ ले। गुरु जी ने कहा-नहीं ऐसा नहीं है। कुछ और सोचो। इस पर एक और शिष्य बोला-गुरु जी मुझे लगता है कि खेत का मालिक बहुत ही समझदार है। उसने आगामी बारिश का पानी संचित करने के लिए ही ये गड्ढे खोदे होंगे, तकि इस पानी का उपयोग वह साल भर कर सके। इस पर गुरु जी बोले-नहीं, यह बात भी नहीं है। कोई और राज़ बताओ। सभी शिष्य सोचने लगे। जब कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होने गुरु जी से ही इसका राज़ बताने का आग्रह किया। गुरु जी बोले-सामान्य-सी बात है। इस खेत का मालिक अस्थिर प्रकृति का इंसान है। जब उसे  पानी की आवश्यकता हुई तो उसने कुआँ खोदना शुरु कर दिया। दस-बारह हाथ खोदने के बाद जब वहाँ पानी नहीं निकलता तो वह धैर्य खो देता और दूसरा गड्ढा खोदने लगता । इस प्रकार उसने कदम-कदम पर गड्ढे खोद दिए और कहीं से भी पानी नहीं निकला। यदि वह अपने स्वभाव की अस्थिरता पर काबू रखकर एक ही गड्ढे को गहरा करता जाता तो उसे कम परिश्रम में ही पानी मिल जाता। इसलिए तुम सबको भी इस घटना से सीख लेनी चाहिए कि जब भी काम हाथ में लो, उसे पूरा करके ही दम लो। भले ही तुम्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े। इसके बाद वे सभी पानी की खोज में आगे चल पड़े।
     वे तो आगे निकल गए लेकिन आज की कहानी से हम भी एक गुरु मंत्र खोजने में सफल हो गए कि दुविधाजनक स्थिति कभी भी सुविधाजनक नहीं हो सकती। यह पीड़ादायक होती है। यह व्यक्ति की राह का काँटा होती है जो उसे किसी एक निर्णय पर पहुँचने से रोकती है। अस्थिर मानसिकता का शिकार व्यक्ति जीवन में कभी तय ही नहीं कर पाता कि उसे करना क्या है। ऐसे लोेगों का कोई लक्ष्य नही होता। और लक्ष्यहीन व्यक्ति की संसार में क्या गति होती है, यह तो आप भी जानते हैं। यदि नहीं जानते तो जान लें, कि उसकी दुर्गति होती  है। ऐसे लोग हर काम को जल्दबाज़ी में करने के आदी होते हैं। यानी इन्हें किसी भी काम के परिणाम या रिजल्ट शीघ्र चाहिए। यदि देरी होती है तो ये उस काम को बंद कर दूसरा काम शुरु कर देते हें। लेकिन जो नया काम शुरु करते हैं, उसमें भी इनकी स्थिति डाँवाडोल ही रहती है कि इसमें भी सफलता मिलेगी या नहीं। और इस तरह वे डोलते ही रहते हैं यानी किस भी मुकाम तक नहीं पहुँच पाते।
     बार-बार व्यवसाय या नौकरी बदलने वाले लोगों को भी इस श्रेणी में रखा जा सकता है। ये लोग यह नहीं समझ पाते कि किसी व्यवसाय को शुरु करने के बाद उसे स्थापित होने में समय लगता है। फिर बिना कठिनाइयों के सफलता कैसे संभव है। हाँ कठिनाइयाँ आर्इं, इनका अस्थिर दिमाग असफलता की आशंका से ग्रसित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप ये परेशानियों का सामना करने के बजाय अपना रास्ता ही बदल देते हैं। यानी उस व्यवसाय को बंद कर दूसरा शुरु कर देते हैं। ऐसे लोग कैरियर में भी हर समय दुविधा में रहते हैं। क्या करें, क्या न करें, इस बारे में लोगों से रायशुमारी करते रहते हैं लेकिन कोई फैसला नहीं ले पाते। ऐसा होता क्यों है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अस्थिर प्रकृति के लोगों का अपने विचारो पर नियंत्रण नहीं होता। निरंतर बदलते विचार उन्हें किसी एक बात पर स्थिर नहीं रहने देते, जिससे वे अकसर परेशानी में पड़ जाते हैं। ऐसे लोगों को हम कहना चाहेंगे कि वे अपने विचारों में दृढ़ता लाएँ। वैसे भी अस्थिरता को हर तरह से बुरा माना गया है, फिर चाहे वह अस्थिर प्रकृति हो, स्मरण शक्ति हो, आचरण हो, मानसिकता हो या फिर अस्थिर उद्देश्य लक्ष्य ही क्यों न हो।
     इसलिए आज से ही कोशिश करें कि मनमें जब भी ऐसे विचार उठें जो आपके मन को विचलित कर रास्ता बदलने को प्रेरित करें तो दृढ़ता से उनका सामना करें। खुद रास्ता बदलने की जगह उनका रास्ता बदल दें यानी उनकी ओर ध्यान ही न दें। जब ऐसा करोगे तो वे कुछ समय बाद स्वतः ही पानी के बुलबुले की तरह समाप्त हो जाएँगे। अस्थिरता या दुविधा की स्थिति का सामना करने की यही सर्वश्रेष्ठ विद्या  है।

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