Tuesday, August 9, 2016

सोएँ तो घोड़े बेचकर


     किसी नगर में एक उद्योगपति रहता था। वह अथाह संपत्ति का मालिक था। न जाने कितनी फैक्टरियाँ थीं उसकी जिनमें हज़ारों लोग काम करते थे। वह इतना महत्वपूर्ण था कि आर्थिक नीतियों को तय करने से पहले उसके विचार लिए जाते थे। मीडिया की निगाहें हमेंशा उस पर लगी रहती थी। उसका निवास स्थान भी बड़ा आलीशान था। संसार का कौन-सा ऐसा सुख था, जो वह अपनी संपत्ति के बल पर प्राप्त नहीं कर सकता था और कौन-सी ऐसी वस्तु थी, जिसे वह खरीद नहीं सकता था। उसके बंगले में नौकरों-चाकरों की फौज थी, लेकिन इन सबके होते हुए भी दुःखी था क्योंकि उसे नींद न आने की बीमारी थी। देश-विदेश के बड़े-बड़े डाक्टरों से वह इलाज करा चुका था, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। नींद को न आना था, न वह आई। वह बहुत परेशान हो गया था। उसे अपनी सारी संपत्ति व्यर्थ प्रतीत होती थी। और सही भी है कि जब चैन से सोने को न मिले तो तिजोरियों में भरे सोने का क्या लाभ?
     उद्योगपति की पत्नी भी उसकी इस हालत के कारण काफी परेशान रहती थी। एक दिन उसके नगर में बहुत बड़े योगी पधारे। पत्नी ने उसे उस योगी से मिलने की सलाह दी। पत्नी कि सलाह पर वह बेमन से उनसे मिलने गया। वहाँ उसने योगी को अपनी परेशानी बताई। उसकी बात सुनकर योगी ने कहा कि पहले तुम मुझे अपनी दिनचर्या के बारे में बताओ। उसने अपनी पूरी दिनचर्या योगी को बता दी और बोला-अब आप ही बताएँ कि मेरे रोग का इलाज क्या है? मैं क्या करूँ?
     उसका प्रश्न सुनकर योगी बोले-महाशय! आपके रोग का कारण आपका अपाहिज होना है। योगी की बात सुनकर वह आश्चर्य से बोला- ये क्या कह रहे हैं आप! मैं और अपाहिज! मेरे तो सारे अंग-प्रत्यंग सही सलामत हैं। उसकी बात सुनकर योगी बोले- हाँ! लेकिन क्या तुम इनको ठीक तरह से उपयोग में लाते हो? तुमने अभी अपनी दिनचर्या बताई। इनमें कितनी जगह तुम अपने हाथ-पैर का सही इस्तेमाल करते हो। हर काम के लिए तुम दूसरों पर निर्भर हो। घर में नौकर-चाकरों और दफ्तर में सहायकों पर। और रही-सही कसर तुम्हारी पत्नी पूरी कर देती है। जब हाथ-पैर होते हुए भी तुम उनका उपयोग नहीं करते हो तो फिर अपाहिज ही हुए ना? ज़रा कष्ट दो अपने शरीर को। व्यायाम करो, कुछ और काम करो, इतना करो कि तुम्हारा शरीर थकान से चूर हो जाए। फिर देखो, नींद कैसे नहीं आती। वैसे भी यदि यही हाल रहा तो हो सकता है कि कुछ समय बाद तुम्हें और भी बीमारियाँ घेर लें। इसलिए बेहतर है कि अभी से सतर्क हो जाओ। योगी अंत में बोले- तो फिर आज जाकर अपने काम खुद करने की कोशिश करो, उसके बाद परिणाम देखो।
     योगी की बात ध्यानपूर्वक सुनने के बाद उद्योगपति उन्हें प्रणाम कर लौट आया और उसने न चाहते हुए भी योगी की बात को आजमाने के लिए उस पर अमल किया। शाम को वह थक-हार कर घर लौटा और डिनर करने के बाद तुरंत अपने बैडरूम में चला गया। उसकी पत्नी को यह बात कुछ अजीब लगी। थोड़ी देर बाद जब वह पति का हाल जानने के लिए बेडरूम में गई तो उसने देखा कि उसके पति खर्राटे ले रहे हैं। पति को इस अवस्था में देख उसने चैन की साँस ली।
     यह केवल उस उद्योगपति की कहानी नहीं है, आज सफलता पाने की तमन्ना में भागते-दौड़ते हर उस व्यक्ति की कहानी है जो सब कुछ पा लेने के चक्र में अपनी नींद की कुर्बानी देता रहता है। यहाँ समस्या हाथ-पैर न चलाने की नहीं, बल्कि जल्दबाज़ी की है। उसे सारी खुशियाँ चुटकी बजाते ही चाहिए और जब ऐसा नहीं होता तो तनाव के कारण उसकी नींद उड़ जाती है। ऐसे लोगों की संख्या महानगरों में अधिक है जहाँ नींद न आने की बीमारी आम बात है। लेकिन अब यह समस्या धीरे-धीरे छोटे शहरों को भी अपनी गिरफ्त में लेने लगी है। ये वे लोग हैं जो सोचते हैं कि दिन केवल चौबीस घंटे का ही क्यों होता है? अधिक घंटों का होता तो लक्ष्य जल्दी पा जाते।
     लेकिन यकीन मानिए, ऐसा होना संभव नहीं है। आप खुद ही सोचिए, जब आप किसी कार्य में व्यस्त होने के कराण एक-दो दिन ठीक से सो नहीं पाते तो तीसरे दिन आपको काम करते-करते नींद आने लगती है। इसका असर होता है आपके कार्य पर और परिणाम यह होता है कि आपकी कार्यकुशलता प्रभावित होती है। यदि अधिक समय तक ऐसा चलता है तो आप जाने-अनजाने सफलता के नहीं, असफलता के पीछे भाग रहे होते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि आप जिस किसी भी तरह के काम से जुड़े हों, उसे नियत समय में करें और चौबीस घंटे के दिन के चक्र में सात-आठ घंटे की नींद अवश्य लें। नींद न केवल आपको तरोताज़ा करती है, बल्कि काम करने की नई स्फूर्ति भी देती है। एक बात और, सोते वक्त सब कुछ भूलकर ऐसे सोएँ जैसे कि घोड़ा बेचकर आए हों। हाँ, दूसरी ओर यह भी सही है कि नियत अवधि से ज्यादा न सोएँ क्योंकि ज्यादा सोना भी वैसे ही दुष्परिणाम देता है, जैसे कम सोने के होते हैं।

No comments:

Post a Comment