Wednesday, August 31, 2016

आभार मानने में कैसा भार?


     महान विचारक शेख सादी साहिब एक दिन मस्जिद में नमाज़ पढ़ने गए हुए थे। जब वे मस्जिद पहुँचे तो उन्होने देखा कि एक दौलतमंद अमीर भी वहाँ नमाज़ पढ़ने के लिए आया हुआ है। उस अमीर ने अपने पैरों में रत्नजड़ित जूतियाँ पहनी हुई थी। शेख सादी को उसके बारे में जानने की इच्छा हुई। उन्हें वहाँ आए लोगों से पता चला कि वह अमीर साल में एक बार नमाज़ पढ़ने के लिए आता है। अमीर के बारे में यह जानकर शेख सादी ने आसमान की ओर देखा और मन ही मन कहा-वाह रे अल्लाह! तेरा यह कैसा न्याय है? मैं पाँचों वक्त की नमाज़ पढ़ता हूँ और रोज़ तेरी चौखट पर आता हूँ। इसके बाद भी मेरे पास ऐसी फटी-पुरानी जूतियाँ! और वो अमीर साल में एक बार तुझे याद करता है और उसके पास रत्नजड़ित जूतियाँ! यह तो अन्याय है। शेख सादी जब मन ही मन अल्लाह से शिकायत कर रहे थे तभी एक अपाहिज वहाँ आया। उसके दोनों पैर नहीं थे। उसे देखकर शेख सादी को याद आया कि वह भी रोज़ उन्हीं की तरह मस्जिद आता है और नमाज भी अदा करता है। उसे देखते ही शेख सादी को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे तुरंत आसमान की ओर देखकर अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हुए बोले- अल्लाह! तेरी इनायतों का शुक्रिया। तूने मूझे दो सही-सलामत पाँव तो बख्शे हैं। मैं तेरे न्याय पर बेकार ही शक कर रहा था।
     यह तो थे शेख सादी जिन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होने तुरंत शुक्रिया अदा कर उसे सुधार लिया। लेकिन उनका क्या जो रोज़ ऐसी गलती करते हैं और पता लगने पर भी उसे सुधारने का प्रयास नहीं करते। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे मतलबी होते हैं। एक मतलबी इंसान सिर्फ उन्हीं चीज़ों के बारे में सोचता रहता है जो उसके पास नहीं है। उसे इस बात का भान ही नहीं रहता कि ऐसा करते समय वह हर उस चीज़ की उपेक्षा कर रहा है जो उसके पास है। यह बात वस्तुओं के साथ ही रिश्तों पर भी लागू की जा सकती है। यानी कि जो हमारे पास है, उसकी जगह जो नहीं है, उसकी चिंता में हम दुबले हो रहे हैं। और दुबले हों भी क्यों न, जब हम न जाने कितने ऐसे आभारों का भार लेकर घूम रहे हैं। जिन्हें हमने उन तक पहुँचाया ही नहीं होता जो उनके हकदार थे। यानी जब हमारा काम निकल गया तो हम "मतलबी यार किसके, खाया-पिया और खिसके' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए बिना आभार दिए ही वापिस आ गए। अब इन भारों को लेकर घूमोगे तो उसके भार से दुबले तो होंगे ही ना। वैसे भी आभार व्यक्त करने में कैसा भार। जब हम दूसरों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं तो जीवन में आश्चर्यजनक रूप से सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। कृतज्ञता का भाव हमारे अंदर सह्मदयता की भावना को जाग्रत करता है, जिसके माध्यम से हम किसी व्यक्ति द्वारा निःस्वार्थ भाव से की गई सहायता के लिए उसका आभार मानते हैं। इसे हम व्यक्त करते हैं सिर्फ एक शब्द "धन्यवाद' के द्वारा। इसे आजमाने के लिए चलिए कि प्रयोग करके देखते हैं। जब भी आपको थोड़ी- सी फुरसत मिले, आप अपने जीवन के अच्छे व यादगार अनुभवों की एक सूची बनाएँ। इस सूची को ऐसी जगह रखें जहाँ से वह रोज पढ़ने में आए। इसके बाद एक महीने तक उन अच्छे अनुभवों के लिए ईश्वर व उन लोगों के प्रति मन ही मन आभार व्यक्त करें, जिन्होंने उन पलों को यादगार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया हो। हाँ, शर्त यही है कि आभार दिल से व्यक्त किया जाना चाहिए। एक महीने बाद निश्चित ही आप जीवन में सकारात्मक परिवर्तनों का अनुभव करेंगे।
     यदि आप ऐसा करते हैं तो इससे आपको एक लाभ और होगा। जब आप ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करेंगे तो निश्चित इससे वह प्रसन्न होगा, क्योंकि कृतज्ञ और प्रसन्न मन से की गई प्रार्थना ही ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है। वह प्रसन्न होकर आपकी और भी मनोकामनाओं को पूरा करेगा।
     आप कहेंगे कि इस बात पर विश्वास नहीं होता। तो विश्वास करने के लिए याद करें उस पल को, जब आपने किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी भलाई या सहायता पर उसे धन्यवाद दिया होगा, तो उसके चेहरे पर क्या भाव था? निश्चित ही प्रसन्नता का रहा होगा और प्रसन्न होकर उसने भविष्य में भी आपकी उसी प्रकार सहायता करने की इच्छा व्यक्त की होगी। दूसरों के क्यों, खुद के बारे में ही सोचें। जब आप किसी की दिल से मदद करते हैं और वह उसके लिए आपके प्रति आभार व्यक्त करता है तो आपको कैसा लगता है? निश्चित ही अच्छा लगता है और आप आगे भी उसकी सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। और यदि वही व्यक्ति आपके द्वारा की गई भलाई के लिए आपका आभार न माने तो क्या होता है? आपको पता है कि ऐसा होने पर आपके दिल पर क्या गुजरती है। जब हम लोग ऐसा सोच और कर सकते हैं तो सोचिए कि ईश्वर क्यों नहीं करेगा इसलिए हमें हर उस व्यक्ति का, जिसने हमारी किसी भी रूप में सहायता की है, आभार अवश्य मानना चाहिए। उसे दिल से धन्यवाद अवश्य देना चाहिए। ऐसा करके हम कृतज्ञता की भावना में समाहित जादूई शक्ति के द्वारा लोगों को अपना बनाते चले जाएंगे, साथ ही बिना किसी रूकावट के प्रगति भी करते जाएंगे।

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