Sunday, August 28, 2016

सलाह दो उन्हें जो परवाह करें


     बहुत समय पहले की बात है। एक पर्वत पर बहुत से बंदर रहते थे। एक बार शाम के समय पर्वत पर शीतलहर चलने लगी। इससे वहाँ का तापमान अचानक गिर गया। ठंड से दाँत किटकिटाते बंदर इससे बचने का उपाय खोजने लगे। कुछ बंदर उपाय की खोज में इधर-उधर निकल गए। इस बीच वहाँ रह गए बंदरों में से एक की नज़र उड़ते हुए जुगनू पर पड़ी। वह चिल्लाया-देखो, आग की चिंगारी। मैं भागकर उसे पकड़ता हूं, तुम सब जल्दी से घास-फूस इकट्ठा करो। हम आग जलाकर तापेंगे।
     ऐसा कहकर वह जुगनू की तरफ लपका और उसे पकड़ लिया। वह उसे घास-फूस के ढेर पर रखकर फूंक मारने लगा ताकि आग जल जाए। कुछ कोशिशों के बाद जब वह सफल नहीं हुआ तो बाकी बंदर भी फूँक मारने लगे, लेकिन जुगनू से आग कैसे लगती। एक बंदर बोला-लगता है घास-फूस, पत्तियाँ अभी पूरी तरह सूखी नहीं है, इसीलिए यह आग नहीं पकड़ रहीं। हमें और भी चिंगारियों की आवश्यकता है। कहाँ से लाएँ? वे यह सब बात कर ही रहे थे कि एक बंदर भागता हुआ आया और बोला-देखो मेरे पास अंगारे हैं, मैं इन्हें सँभालकर लाया हूँ। इससे निश्चित ही आग जल जाएगी।
     दरअसल वह सूर्ख लाल रंग के जंगली फलों को अंगारे समझकर गीली पत्तियों में दबाकर ले आया था। सभी बंदर उन फलों को देखकर खुश हो गए और उन्हें भी जुगनू के साथ घास-फूस पर रखकर आग जलाने के लिए फूँक मारने लगे। बंदर जिस पेड़ के नीचे बैठकर यह सब कर रहे थे, उस पेड़ पर एक चिड़िया रहती थी। वह बहुत देर से बंदरों की मूर्खता को देख रही थी। जब उससे रहा नहीं गया तो वह बंदरों को समझाते हुए बोली- यह क्या कर रहे हो? जिसे आप सब चिंगारी और अंगारे समझ रहे हैं, वे दरअसल जुगनू और जंगली फल हैं। इनसे आग नहीं सुलगेगी। बेकार में प्रयत्न करने से अच्छा है कि सामने की गुफा में चले जाओ। ठंड से बच जाओगे।
     लेकिन बंदरों ने उसकी एक न सुनी। अब तो वे और भी जोर-जोर से फूँक मारने लगे। लेकिन चिड़िया ने भी बंदरों को समझाना नहीं छोड़ा। वह बोली-मेरी सुनते क्यों नहीं? ज़रा अक्ल से काम लो। लेकिन बंदर समझने को तैयार नहीं थे। जब चिड़िया ने बोलना बंद नहीं किया तो एक बूढ़े बंदर ने झपट्टा मारकर उसे पकड़ लिया और बोला-बहुत समझदार समझती है अपने आपको। अब तू बताएगी कि हमें क्या करना चाहिए। बड़ी देर से कान खा रही है हमारे। चल भाग यहाँ से। ऐसा कहकर उसने चिड़िया को जोर से ज़मीन पर दे मारा। चिड़िया के प्राण-पखेरू उड़ गए। लेकिन बंदर उसकी परवाह किए बिना दोबारा फूँक मारने में जुट गए।
     यह है मूर्खों को ज्ञान बाँटने का नतीजा! जो आपकी बात को समझने को तैयार ही नहीं, आप उसके पीछे लगेंगे तो यही होगा। मूर्ख को समझाना भी एक मूर्खता ही है। जब आप यह मूर्खता करोगे तो परिणाम भी भुगतोगे ही।
     अब आप कहेंगे कि किसी को जानते-बूझते तो गर्त में गिरते नहीं देखा जा सकता। इंसानियत के नाते कुछ तो फर्ज़ बनता है। तो भई, इंसानियत के नाते समझाओ, सलाह दो। लेकिन ऐसा कितनी बार करोगे? एक या दो बार, बस। इससे ज्यादा तो नहीं। क्योंकि जो आपकी सलाह पर ध्यान देगा, उसे एक या दो बार में ही आपकी बात समझ में आ जाएगी। लेकिन जो समझने को तैयार ही नहीं, उसे क्या समझाना। भैंस के आगे बीन बजाने से कोई लाभ नहीं  होता। इसीलिए कहा गया है 'सीख वाको दीजिए, जाको सीख सुहाय।'
     अकसर देखने में आता है कि जिनको परामर्श की सबसे ज्यादा ज़रूरत होती है, वे ही अधिकतर इन्हें सबसे कम पसंद करते हैं। ऐसे लोग परामर्श का स्वागत नहीं, तिरस्कार करते हैं। ऐसा करने वालों को इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके आचरण से सलाह देने वाले की भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है। इसलिए हम यह नहीं कहेंगे कि सलाह न दें। सलाह अवश्य दें, लेकिन ऐसे लोगों को, जिनको आपकी सलाह की परवाह हो। वरना आप सलाह देते रहेंगे, सामने वाला मानेगा नहीं और आप दिल से लगा लेंगे। यानी गए तो थे दूसरे को समझाने, लेकिन "आ बैल मुझे मार कर बैठ।'
     दूसरी ओर सीख न मानने वालों की बात करें तो ज़रूरी नहीं कि वे मूर्ख ही हों। कई बार तो बुद्धिमान लोग भी सही सलाह मानने से इनकार कर देते हैं। उनका अहं उन्हें रोकता है। ऐसे लोग इस गुमान में रहते हैं कि उन्हें दुनियां में सब कुछ आता है, कोई उन्हें क्या समझाएगा? कौन-सा ऐसा काम है जो वे नहीं कर सकते? कोई उन्हें क्या सिखायेगा? कई बार तो उन्हें अपने अहं का पता तक नहीं चलता। लेकिन आश्चर्य तब होता है जब कुछ लोग जानते-बूझते और अपनी विद्वता की झूठी शान के चलते ऐसा  करते हैं। सिर्फ सलाह की बात नहीं ये लोग तो किसी भी नई बात को स्वीकारने और सीखने के लिए भी तैयार नहीं होते। ऐसे लोग अपनी प्रगति को अपने हाथों से रोकते हैं। यकीन मानिए, ये लोग जल्द ही असफलता के अँधेरों में खो जाते हैं। इसलिए उन्हें यदि वे मानें तो, हमारा एक परामर्श है कि लोगों की सही सलाह की परवाह करो, तभी सफलता की सीढियों पर निर्बाध चढ़ते रह सकते हो, अन्यथा तो आप जानते ही हैं।

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