Tuesday, August 23, 2016

कमज़ोर पर न चलाएँ जोर


     एक बार जंगल में एक शेर अपना शिकार खा रहा था। कि अचानक उसके मुँह में एक हड्डी फँस गई। शेर ने उसे निकालने की बहुत कोशिश की लेकिन वह सफल नहीं हुआ। अब उसे चिंता सताने लगी। वह सोचने लगा कि यदि हड्डी नहीं निकली तो वह खाएगा कैसे? वह और भी ज़ोर से प्रयास करने लगा, परंतु हड्डी को न निकलना था और न ही वह निकली। इस तरह कई दिन बीत गए। वह कुछ भी खा नहीं पा रहा था। इससे शेर बहुत कमज़ोर हो गया और उसे लगने लगा था कि अब वह कुछ ही दिनों का मेहमान है। कमज़ोरी के कारण वह एक पेड़ के नीचे बेजान-सा पड़ गया। उसी पेड़ पर एक कठफोड़वा रहता था। वह कई दिनों से शेर को देख रहा था। उसे यह पहेली समझ में नहीं आ रही थी कि शेर मुँह खोले क्यों लेटा रहता है और शिकार भी नहीं करता।
     एक दिन कठफोड़वे ने शेर से पूछ ही लिया-आखिर बात क्या है? आप इस तरह क्योंं लेटे रहते हैं? शेर ने उसकी बात का जवाब देने की बजाय उसे इशारे से अपने पास बुलाया और मुँह में फँसी हड्डी दिखाई। हड्डी को देखते ही कठफोड़वे को वस्तुस्थिति समझ में आ गई। वह शेर से बोला-अच्छा! तो यह बात है। आप यदि चाहें तो मैं आपके मुँह से यह हड्डी निकाल सकता हूँ। लेकिन इसके लिए आपको मुझसे एक वादा करना होगा कि अपना शिकार खाने से पहले कुछ हिस्सा मुझे देंगे। यदि आप तैयार हैं तो कहें।
     मरता क्या न करता। शेर ने सिर हिलाकर तुरंत हामी भर दी। कठफोड़वा उड़कर शेर के मुँह में जा बैठा और कई कोशिशों के बाद वह हड्डी निकालने में कामयाब हो गया। जैसे ही हड्डी निकली, वह तुरंत उड़कर पेड़ पर जा बैठा और शेर से बोला-मैने अपना काम कर दिया है, अब आप अपना वादा याद रखना। शेर उसकी बात को अनसुना कर शिकार करने निकल पड़ा।
    कुछ घंटों बाद शेर के हाथ एक शिकार लगा। वह अपना वादा भूलकर उसे खाने लगा। इतने में कठफोड़वा उड़ता हुआ वहीं से निकला। उसकी नज़र शेर पर पड़ी। वह उसके पास आया और बोला-हे मित्र! ठहरो! क्या आप अपना दिया हुआ वादा भूल गए। कहाँ है मेरा हिस्सा? शेर ने कठफोड़वे की बात सुनकर उसकी ओर देखा और अनजान सा बनकर बोला-तुम कौन हो? मैं तुम्हें नहीं जानता। मैं तुम्हें अपने शिकार का हिस्सा क्यों दूँ?
     उसकी बात सुनकर कठफोड़वे को झटका लगा। वह शेर को याद दिलाने की कोशिश करने लगा। उसकी बात सुनकर शेर ने उसे हिकारत भरी नज़र से देखा और हँसते हुए बोला-तुम जानते हो मैं एक ताकतवर मांसाहारी जानवर हूँ। जब तुम मेरे मुँह में थे, तब मैं तुम्हें आसानी से खा सकता था, लेकिन मैने ऐसा नहीं किया। तुम्हें मेरा अहसान मानना चाहिए। अब चलो भागों यहाँ से, वरना---।
     कठफोड़वा बेचारा क्या करता। वह उदास होकर वहां से उड़कर एक पेड़ पर जा बैठा। वह सोच रहा था कि मैं कमज़ोर हूँ इसलिए यह मेरा फायदा उठाकर अपना वादा भूल गया, लेकिन मैं भी कम नहीं हूँ। मैं इसे सबक सिखाकर ही रहूँगा। कुछ समय बाद जब शेर अपना शिकार खाने के बाद आँख बंद कर सुस्ताने लगा तो कठफोड़वा उड़कर उसके पास गया। उसने अपनी लंबी नुकीली चोंच मारकर शेर की एक आँख फोड़ दी। शेर दर्द से कराह उठा। वह बोला-तुम इतने कठोर कैसे हो सकते हो? तुमने मेरी आँख फोड़ दी। वह बोला महोदय! आप जानते ही हैं कि मेरी चोंच बहुत नुकीली है। मैं आसानी से आपकी दूसरी आँख भी फोड़कर आपको अँधा कर सकता था, लेकिन मैने ऐसा नहीं किया। आपको मेरा अहसान मानना चहिए। अब चलो भागो यहाँ से, वरना---।
     यह होता है किसी को भी अपने से कमज़ोर समझने का परिणाम। ताकत के मद में फँसे हम कमज़ोर पर अपना ज़ोर दिखाते चले जाते हैं और सोचते हैं कि वह हमारा क्या बिगाड़ लेगा? हम भूल जाते हैं कि समय पड़ने पर एक छोटी-सी चींटी भी हाथी को मार सकती है। इसी तरह जिस दिन कमज़ोर का जोर चलता है तो ताकतवर का भी वही होता है जो शेर का हुआ।
     यहाँ कमज़ोरी या ताकत का आशय सिर्फ शारीरिक क्षमता से नहीं है। कोई भी कमज़ोर या ताकतवर किन्हीं भी अर्थों में हो सकता है, जैसे कि व्यावसायिक, प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि स्तरों पर। यदि हम दफ्तर की बात करें तो हम देखते हैं कि कुछ अधिकारी अपने सहकर्मियों की कमज़ोरी का फायदा उठाते हैं। अपना काम निकलवाने के लिए वे उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन देते हैं और समय आने पर शेर की तरह पलट जाते हैं। यहाँ हम ऐसे अधिकारियों से कहना चाहेंगे कि आपका तरीका गलत है। इससे आप उनकी नज़रों में गिर जाते हैं। हो सकता है कोई कर्मचारी आपके सामने कुछ कह न पाए, लेकिन उसके मन में यह बात बैठ जाती है। जब कभी ऐसा अवसर आता है कि आपको उसके समर्थन की आवश्यकता होती है तो वह आपका साथ नहीं देता और आपको अप्रिय स्थिति का सामना करना पड़ता है।
     इसलिए हमें किसी भी व्यक्ति को कमज़ोर नहीं समझना चाहिए और न ही किसी की मज़बूरी का फायदा उठाना चाहिए। साथ ही अपनी कही हुई बात या वादे को अवश्य पूरा करना चाहिए। ऐसा करके आप अपने सहकर्मियों के प्रिय बन जाते हैं। दूसरी ओर मौका आने पर वे अपनी पूरी क्षमता से आपका साथ देने के लिए भी तैयार रहते हैं।

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