Friday, August 12, 2016

क्षमता के अनुरूप ही हो लक्ष्य


     एक बार एक शेरनी ने दो बच्चों को जन्म दिया। वह बच्चों की देखभाल करती और शेर जंगल में जाकर शिकार करके लाता। एक दिन बहुत कोशिशों के बाद भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जब वह गुफा की ओर लौट रहा था तो उसकी नज़र सियार के एक नवजात बच्चे पर पड़ी। उसने सोचा चलो आज इसी से काम चलाएँगे। ऐसा सोचकर उसने अपना पंजा सियार के बच्चे की ओर बढ़ाया लेकिन उसकी मासूमियत पर उसे दया आ गई। वह सोचने लगा कि इसे मैं तो मार नहीं सकता। मैं इसे घर ले जाता हूँ और इसके बाद शेरनी की जो इच्छा हो, वो कर लेगी। ऐसा विचार कर वह बच्चे को सावधानी पूर्वक अपने मुँह में दबाकर गुफा में ले गया। शेरनी ने जब पूछा कि आज क्या लाए हो तो शेर बोला-आज मुझे कोई शिकार तो नहीं मिला, लेकिन यह बच्चा मिला है। मेरी तो इसे मारने की हिम्मत नहीं हुई, लेकिन यदि तुम चाहो तो तुम इसे मारकर खा सकती हो। शेरनी बोली- जब तुम्हारी हिम्मत नहीं हुई तो मेरी कैसे होगी? आखिर मैं भी एक माँ हूं। मैं इसे पालूंगी। आज से मेरे दो नहीं, तीन बच्चे हैं।
     इसके बाद तीनों बच्चे साथ-साथ बड़े होने लगे। एक दिन जब वे अपनी माँद के बाहर धमाचौकड़ी मचा रहे थे कि एक हाथी उधर से गुज़रा। उसे देखकर एक शेर शावक बोला- यह कौन-सा जानवर है? इसकी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की? चलो भाइयों, उसे सबक सिखाएँ। ऐसा कहकर जैसे ही वे आगे बढ़े तो सियार का बच्चा बोला-ठहरो! वह कितना बड़ा है। हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते। बेहतर यही है कि हम माँद में चलकर अपनी जान बचाएँ। शेर शावक उसकी बात सुनकर हँसने लगे। लेकिन वह इसे नज़र अंदाज़ कर दुम दबाकर माँद में भाग गया। उसके पीछे-पीछे उसके भाई भी आ गए, लेकिन निडरतापूर्वक आराम से चलते हुए। उन्होने आकर शेरनी को बताया कि किस तरह उनका कायर भाई खुद तो डर ही रहा था, उनसे भी जान बचाकर भागने को कह रहा था।
     माँ के सामने इस तरह मजाक बनता देख सियार के बच्चे को गुस्सा आ गया। वह अपने भाइयों को चुनौती देता हुआ बोला-मूर्खों! मैने बेकार ही तुम्हारी मदद की। मैं भी शेरनी का बच्चा हूँ, फिर कायर कैसे हुआ? मैं अभी मज़ा चखाता हूँ तुम्हें। उसे इस प्रकार नाराज़ देखकर शेरनी बोली- शांत हो जा मेरे बच्चे। चल, बाहर चलते हैं। मुझे तुझ से अकेले में कुछ बात करनी है। बाहर आकर शेरनी ने उसे समझाते हुए कहा-तुझे अपने बड़े भाइयों से इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए। माँ को भाईयों की तरफदारी करता देख वह चिढ़ते हुए बोला-मेरी क्या गलती है माँ। एक तो मैने चतुराई दिखाई। क्या वो इतने विशाल जावनर का सामना कर सकते थे? गलती मानने की जगह उल्टे मेरा मज़ाक बना रहे हैं। समझते क्या हैं वे अपने आपको। देखना माँ, जब मैं बड़ा हो जाऊँगा तो उन्हें ऐसे ही जावनर का शिकार करके दिखाऊँगा।
     उसकी बात सुनकर शेरनी सोचने लगी- मेरे लिए तीनों बच्चे बराबर हैं, लेकिन हैं तो यह सियार का ही बच्चा। हालांकि यह चतुर है, लेकिन इसमें उतनी ताकत कहाँ, जितनी मेरे बच्चों में है। अच्छा यही है कि मैं इसे इसकी असलियत के बारे में बता दूँ, वरना ऐसा न हो कि कहीं देर हो जाए। और शेरनी ने उसे सारी बात बता दी। अपने बारे में जानकर वह समझ गया कि माँ उसे क्यों समझा रही थी। उसे अपने डरपोक होने का कारण भी समझ में आ गया। और उसके बाद वह  बिना समय गँवाए वहां से अपने साथियों की खोज में निकल गया। वह सियार का बच्चा था, जिसमें कायरता के साथ चतुराई का गुण भी जन्मजात था। उसे समझ में आ गया कि यहाँ से निकल जाने में ही भलाई है। वह यह भी जान गया था कि वह चाहकर भी शेर के बच्चों की बराबरी नहीं कर सकता।
     मंत्र यह है कि सबकी अपनी-अपनी क्षमताएँ होती हैं। इसलिए पहले अपनी और अपनों की क्षमताओं को पहचानो। यदि वे बड़े लक्ष्यों के लिए हैं तो अपने लक्ष्य बड़े बनाओ। यदि वे कम हैं तो परेशान होने की आवश्यक्ता नहीं क्योंेंकि हम जानवर नहीं, मनुष्य हैं। और एक मनुष्य अपने पुरुषार्थ से अपनी क्षमताएँ बढ़ा सकता है। इन्हें बढ़ाने का सामान्य-सा मंत्र है कि हम वे काम करें, जिन्हें करने से डरते हैं। इस तरह जैसे-जैसे आप डर को जीतते जाएँगे, आपकी क्षमताएँ बढ़ती जाएँगी और फिर हम बड़े लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी सफल होते जाएँगे।

No comments:

Post a Comment