Saturday, July 23, 2016

खुद को न उलझायें, समस्या सुलझाएं


     एक बार एक शिष्य अपने गुरु जी के पास आया। वह बहुत परेशान लग रहा था। गुरु ने पूछा-पुत्र! क्या बात है, बहुत चिंतित लग रहे हो? शिष्य ने कहा- जी गुरुदेव! इन दिनों मैं एक समस्या का सामना कर रहा हूँ। समस्या बड़ी नहीं है, लेकिन मैं उसका हल नही खोज पा रहा हूँ। इस बात ने मुझे इतना परेशान कर दिया है कि अब तो मेरे सोचने-समझने की शक्ति भी जवाब दे गई है। कुछ उपाय सूझता ही नहीं। दूसरी ओर आपने सिखाया भी है कि समस्याओं से भागो मत, उनका सामना करो, इसलिए मैने भी ठान लिया है कि जब तक इस समस्या का समाधान नहीं हो जाता, मैं चैन से नहीं बैठूँगा। ऐसे में मुझे क्या करना चाहिए? आपकी आज्ञा हो तो मैं अपनी समस्या बताऊँ।
     शिष्य की बात सुनकर गुरु जी बोले- नहीं, मुझे समस्या के बारे में मत बताओ, क्योंकि यदि तुम कहते हो कि समस्या छोटी है तो उचित यही होगा कि उसका हल तुम स्वयं ही खोजो। लेकिन हाँ, तुम्हारी अभी की स्थिति में तुम्हें इसका सामना कैसे करना चाहिए, यह मैं अवश्य बता सकता हूँ। इसके लिए तुम्हें मेरे कुछ प्रश्नों का जवाब देना होगा और तुम्हारे जवाबों में ही समस्या का समाधान छुपा होगा।
     इसके बाद गुरु जी ने अपने पास रखे कमण्डल को हाथ में उठाकर शिष्य से प्रश्न पूछना शुरु किया- यह क्या है और इसमें क्या भरा हुआ है? शिष्य बोला- यह कमंडल है और इसमें पानी भरा हुआ है। गुरु जी ने दूसरा प्रश्न किया- अच्छा, मुझे बताओ कि इस पानी का भार कितना है? शिष्य सोच में डूब गया, वह केवल अंदाज़ा ही लगा सकता था। वह निरूत्तर-सा गुरु जी की ओर देखने लगा। उसे देखकर गुरु जी बोले-परेशान मत हो, इसका उत्तर मुझे भी नहीं पता।
     तत्पश्चात गुरु जी ने उस कमंडल को उठाकर अपनी हथेली पर रख लिया और बोले, अब तुम यह बताओ कि यदि इस कमंडल को मैं इसी तरह कुछ क्षण अपनी हथेली पर रखा रहने दूँ तो क्या होगा? शिष्य बोला-कुछ नहीं, गुरुदेव! गुरु बोले-मान लो, मैं इसे लेकर इसी मुद्रा में एक-दो घंटे बैठा रहूँ तो? शिष्य सोचकर बोला, जी, आपका हाथ दर्द करने लगेगा। गुरु जी ने मुस्कराकर जवाब दिया-सही कहा तुमने। अच्छा, इसे मैं पूरे एक दिन लेकर बैठा रहूं, तो फिर क्या होगा    ?
     शिष्य तुरंत बोला- तब आपके हाथ की मांसपेशियां शिथिल हो जाएंगी और वह सुन्न पड़ जाएगा। जहाँ तक कि आपको लकवा भी मार सकता है और हो सकता है कि आपको उपचार की आवश्यकता पड़ जाए। गुरु जी बोले-अति उत्तम। तुम बहुत समझदार हो गए हो। आगे बताओ कि इस दौरान क्या कमंडल का भार बढ़ेगा? शिष्य बोला नहीं। गुरु जी बोले- जब कमंडल का भार नहीं बढ़ेगा तो फिर मेरे हाथ की ऐसी स्थिति कैसे होगी? शिष्य ने जवाब दिया-क्योंकि आप कमंडल को लगातार अपनी हथेली पर रखे रहेंगे। गुरु जी बोले- तो फिर इस स्थिति से बचा कैसे जा सकता है? शिष्य बोला- यह तो बहुत समान्य सी बात है। यदि आप कमंडल को अपनी हथेली से उठाकर नीचे रख देंगे तो फिर कोई समस्या ही नहीं रहेगी।
शिष्य का उत्तर सुनकर गुरु जी ने तत्काल कहा- तो फिर समस्या कहाँ है? तुम्हारी समस्या का भी तो यही हल है जो खुद तुमने अभी मुझे सुझाया है। यानी समस्या को कुछ समय के लिए नज़रअन्दाज़ कर अपना ध्यान कहीं और लगा लो। कुछ समय बाद जब तुम्हारा चित्त शांत हो जाए तो फिर अपनी समस्या का हल खोजने का प्रयत्न करना। ऐसा करने से निश्चित ही तुम्हारी सोचने-समझने की शक्ति जवाब नहीं देगी और तुम अपनी समस्या का समाधान खोजने में सफल हो जाओगे। क्यों, ठीक है ना? ज़ाहिर है शिष्य का उत्तर हाँ में ही होगा। उसे अपने गुरु जी से वास्तव में सही मार्गदर्शन मिला था।
    अकसर हम सभी के साथ ऐसा होता रहता है कि हम किसी छोटी-सी समस्या में ऐसे उलझ जाते हैं कि हमें बाकी कुछ सूझता ही नहीं। लेकिन हम उस शिष्य की तरह ठानकर बैठे रहते हैं कि जब तक इसका हल नहीं होगा, कोई दूसरा काम नहीं करेंगे। यह तरीका ही गलत है। इससे आप न केवल अपना समय बर्बाद करते हैं बल्कि अपनी शक्ति, अपनी ऊर्जा को भी नष्ट करते हैं। इसका सीधा असर आपकी उत्पादकता तथा सृजनशीलता पर पड़ता है जिससे अंततः आपकी कार्यकुशलता प्रभावित होती है। इसका परिणाम यह होता है कि आप सफलता की दौड़ में पिछड़ने लगते हैं।
     यह सही है कि ज़िंदगी चुनौतियों का सामना करने का ही नाम है, लेकिन यहाँ केवल सामना करना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि हम उस चुनौती का सामना किस तरह करते हैं। इसलिए जब भी ऐसी स्थिति आए कि चुनौती समस्या बन जाए और आपको कुछ न सूझे, तो ऐसी स्थिति में उससे उलझने की बजाय उसे बाजू में बैठाकर अपना ध्यान कहीं और केंद्रित कर देना चाहिए। इसके बाद जब तरोताज़ा हो जाएं तो फिर समस्या से दो-दो हाथ कर लें। निश्चित ही आप समस्या को सुलझाने में सफल होंगे। समस्याएं सुलझने के लिए होती है, उनसे उलझने के लिए नहीं।

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