Monday, July 4, 2016

जग जगेगा जभी जब आप जाओगे जग!


     युद्ध में रावण को हर तरफ से मुँह की खानी पड़ रही थी। अन्ततः उसने सेवकों को बुलाकर आदेश दिया कि वे कैसे भी कुंभकर्ण को जगाकर लाएँ। कुंभकर्ण को ब्राहृाजी से वरदान मिला था कि वह लगातार छः माह सोने के बाद एक दिन के लिए जागेगा। दरअसल कुंभकर्ण ब्राहृा जी से इंद्रासन माँगना चहता था, लेकिन वर माँगते समय देवी सरस्वती ने उसकी जीभ को प्रभावित कर दिया था और वह इंद्रासन की बजाय निंद्रासन बोल गया। इधर रावण के सेवक ढोल-नगाड़े लेकर कुंभकर्ण के शयनकक्ष में पहुँचे और जोर-जोर से बजाना शुरु कर दिया। लेकिन कुंभकर्ण पर इसका कोई असर नहीं हुआ। तब उसके शरीर पर पानी उड़ेला गया, कान में शंख फूँके गए, उसके ऊपर से हाथियों को गुज़ारा गया, बड़ी-बड़ी शिलाएँ, वृक्ष उस पर फेंके गए ताकि वह जागे, लेकिन कुंभकर्ण टस से मस नहीं हुआ। जब सारे उपाय व्यर्थ चले गए तब गरमा-गरम पकवान बनाकर शयनकक्ष में लाए गए। उनकी गंध से कुंभकर्ण उठ बैठा। भोजन के बाद जब वह रावण से मिलने पहुँचा तो रावण ने सारी बात बताकर उसे राम से युद्ध करने का आदेश दिया। राम के बारे में सुनते ही कुंभकर्ण समझ गया कि निश्चित ही वे विष्णु के अवतार हैं। वरना रावण का मुकाबला तीनों लोकों में और कोई नहीं कर सकता था। उसने राम के बारे में बताकर रावण से युद्ध न करने का अनुरोध किया, लेकिन रावण नहीं माना। बाद में बड़े भाई के कहने पर कुंभकर्ण युद्धभूमि की ओर चल दिया।
     दोस्तो, उसके बाद रणभूमि में क्या हआ यह हम जानते ही हैं। यहाँ यह बात गौर करने लायक है कि कुंभकर्ण जाग गया था तभी वह राम को पहचान पाया। परंतु रावण तो जागकर भी सोया हुआ था। तभी न तो राम को वह खुद पहचान पाया और न ही किसी दूसरे के बताने पर उसने जानने की कोशिश की। अन्ततः उसका यही जागते हुए भी सोते रहना पूरे परिवार के विनाश का कारण बना। ऐसी गलती केवल रावण ने ही नहीं की थी। हममे से बहुत से लोग भी करते हैं, जो कि जागते हुए भी सोते रहते हैं और इसका नुकसान भी उठाते हैं। हम बेकार में ही कुंभकर्ण को कोसते रहते हैं कि वह हमेशा सोता रहता था। दरअसल सोए हुए तो हम खुद ही हैं। वह तो फिर भी छः माह में एक बार जाग जाता था लेकिन हम तो जागकर भी वर्षों से सोए हुए हैं। इसलिए जागो!
     अब सवाल उठता है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि आदमी जागते हुए भी सोता रहे? ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि हम उठने और जागने में फर्क ही नहीं समझते। कहा गया है कि "उत्तिष्ठित जागृत प्राप्यवरान् निबोधत'। इस श्रुति से पता चलता है कि व्यक्ति पहले उठता है और फिर जागता है। यानी उठना एक प्रक्रिया है और जगना दूसरी। हममें से बहुत से लोग रोज सुबह उठ तो जाते हैं लेकिन जागते नहीं हैं। तभी हम बहुत कुछ गलत कर जाते हैं। अब गलतियँा तो सोया हुआ व्यक्ति ही कर सकता है जागा हुआ नहीं। अकसर हमसे होने वाली गलतियाँ एबसेंट मार्इंडनेस का परिणाम होती हैं। यानी आपका मन काम के वक्त कहीं ओर विचरण कर रहा होता है। यह स्थिति भी तो नींद का ही एक रूप है। इसलिए ज़रूरी है कि हम न सिर्फ उठें बल्कि जागें भी। आपकी किस्मत भी तभी खुलेगी जब आप जो कर रहे हो उसे पूरे होशो-हवास में अच्छे-बुरे परिणामों का आंकलन करके कर रहे हो। इसके लिए ज़रूरी है जागृत रहना। इसलिए जागो! क्योंकि परमात्मा तो तभी जागेगा न जब आप खुद जागेंगे, आपकी आत्मा जागेगी। आखिर आत्मा का परमात्मा से सीधा संबंध जो है। हम आपको जागृति का संदेश देना चाहते हैं। जिससे आप सही अर्थों में जागें तभी जग जागेगा, जग जागेगा तो फिर जगदीश भी जाग जाएँगे। इसलिए जागो!
     अंत में, आपसे आग्रह है कि आप भी आज किसी सोए को उठाएँ, उठे हुए को जगाएँ, जागे हुए को खड़ा करें और खड़े हुए को दौड़ाएँ। तो आज से गाएँ नया गाना कि सोते हुए को है जगाना। इसलिए जागो और जगाओ।

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