Saturday, July 2, 2016

नहीं करोगे काम तो नहीं कर पाओगे काम


     जापान के एक आश्रम में रहने वाले जेन आचार्य ह्राकूजो की आयु अस्सी वर्ष से अधिक हो चुकी थी, लेकिन इसके बाद भी वे अपने शिष्यों के साथ आश्रम के बाग में बराबरी से मेहनत करते थे। उन्हें ऐसा करते देख शिष्यों को अच्छा नहीं लगता था। वे आचार्य को कहते भी थे कि हमारे रहते हुए आपको इतना कठोर परिश्रम करने की क्या आवश्यकता है। लेकिन आचार्य उनकी बातों पर ध्यान नहीं देते थे। एक बार सभी शिष्यों ने मिलकर फैसला किया कि किसी न किसी तरीके से हमें आचार्य से काम करना छुड़वाना पड़ेगा।
     आचार्य को काम करने से रोकने के लिए एक दिन शिष्यों ने उनके औजार छिपा दिए। अगले दिन आचार्य ने औजार न मिलने पर यह अनुमान लगा लिया कि यह काम किसने और क्यों किया होगा। इसके बाद वे बिना कुछ कहे एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान करने लगे। उन्हें ऐसा करते देख शिष्य खुश हो गए। रात में भोजन के समय सभी शिष्य भोजनकक्ष में एकत्रित हो गए, लेकिन आचार्य नहीं आए। शिष्यों ने सोचा कि शायद उनकी तबीयत खराब होगी। इस प्रकार दो दिन और बीत गए। शिष्यों को समझ में आ गया कि आचार्य उनसे औजार छिपा देने के कारण नाराज़ हैं। उन्होने वापस औजार वहीं रख दिए जहाँ आचार्य रखते थे। अगले दिन आचार्य ने पहले की तरह दिनभर काम किया और रात को भोजन कक्ष में पहुँच गए। उन्हें देखकर एक शिष्य बोला-आचार्यजी, आप तीन दिन तक यहाँ क्यों नहीं आए? आचार्य ने जवाब दिया। इसलिए कि काम नहीं तो भोजन भी नहीं।
     दोस्तो, कितनी अच्छी बात है कि काम नहीं तो भोजन भी नहीं। हम सभी को इस बात को आत्मसात कर लेना चाहिए, क्योंकि सफलता का असली मंत्र ही यही है। किसी ने कहा है कि जो श्रम नहीं करना चाहता वह कामचोर ही हुआ न। ऐसे व्यक्ति को चोर कहना ही चाहिए और ऐसे में वो जो खा रहा है, वह चोरी-का ही माल हुआ न। यदि आप चोर नहीं कहलाना चाहते तो कभी परिश्रम से न भागें। जब भी, जहाँ भी, जैसे भी काम करने का मौका मिले, उसे खुशी-खुशी अंजाम दें। क्योंकि आप भाग्यशाली हैं जो आपको काम मिला है या मिला हुआ है वरना बहुत से लोग तो काम की तलाश में दर-दर की ठोकरें खाते रहते हैं। ऐसे में यदि आप कामचोरी करेंगे तो ज्यादा दिन काम पर टिक नहीं पाएँगे और काम की तलाश करने वालों में आपकी भी गिनती शुरू हो जाएगी। यह बात हर स्तर के व्यक्ति के लिए लागू होती है।
     इसके साथ ही कुछ लोग बहुत परिश्रम करने के बाद जब एक मुकाम हासिल कर लेते हैं तो उन्हे लगता है कि अब हमें काम करना छोड़ देना चाहिए। अब तो समय है काम करवाने का। तो वे अपने अधीनस्थों को तो जोतते रहते हैं, लेकिन खुद आराम से बैठते हैं। ऐसे लोग दरअसल अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं, क्योंकि ऐसा करके ये हर तरह से घाटे में रहते हैं। काम नहीं करने से इनके शरीर में आलस बढ़ता है और ये मुख्यधारा से कट जाते हैं। इन्हें काम न करता देख इनके अधीनस्थ भी इनकी तरह व्यवहार करने लगते हैं। इससे जिस काम को कराने की ज़िम्मेदारी इनकी होती है, वह समय पर पूरा नहीं हो पाता जिससे इनकी छवि को नुकसान पहुँचता है। इसलिए यदि आपको अपने लोगों से काम करवाना है तो आपको उनके साथ बराबरी से काम करना पड़ेगा। तभी वे भी उत्साह से काम करेंगे। कुछ लोगों को शिकायत रहती है कि हम बहुत काम करते हैं उसका फल यह मिलता है कि हम पर और काम लाद दिया जाता है। ऐसे लोगों से हम कहना चाहेंगे कि काम उन्हें ही दिया जाता है जो कर सकते हैं।
     दूसरी ओर, अधिक आयु वाला जो व्यक्ति कर्मशील होता है, उसे काम करने से रोकना नहीं चाहिए। क्योंकि उसके लिए कर्म ही पूजा होती है और यदि आप उसे यह समझकर काम करने से रोकेंगे कि अब इन्हें काम नहीं आराम करना चाहिए तो आपकी यह सद्भावना उनके लिए नुकसानदायक ही साबित होगी। काम ही तो इनकी शक्ति होती है, ऊर्जा होती है जो इन्हें चलाती है। यदि आप इन्हें अलग करेंगे तो इनके अंदर ऊर्जा ही नहीं बचेगी और फिर ये ठीक से आराम भी नहीं कर पाएँगे, न ही दूसरों को करने देंगे। इसलिए ऐसे लोगों को जो वे कर रहे हैं, करने देना चाहिए ताकि वे अपने काम में मस्त रहें।

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