Wednesday, June 8, 2016

पड़ोसी की प्रगति में है आपकी प्रगति

ड़ोसी की प्रगति में है आपकी प्रगति
     एक खाद बनाने वाली कंपनी अपने उत्पाद के प्रचार प्रसार के लिए प्रतिवर्ष एक प्रतियोगिता आयोजित करती थी। इसमें शामिल किसानों को एक निश्चित रकबे में सोयाबीन उगानी होती थी। जिस किसी भी किसान की फसल व पैदावार अधिक होती थी, उसे "किसान की शान' पुरुस्कार  से सम्मानित  किया जाता था। अनेक किसान इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेते। वे उचित समय पर अपने खेतों की जुताई करते, बुवाई के लिए उच्चकोटि  के बीजों का इस्तेमाल करते, अच्छी निदाई-गुड़ाई करते, लेकिन जब पुरस्कार की घोषणा होती तो एक ही किसान हर बार वह पुरस्कार जीत जाता। ऐसा कई वर्षों से हो रहा था। लाख कोशिशों के बाद भी अच्छी फसल का पुरस्कार पाने में कोई किसान सफल न हो पाता।
     एक बार एक पत्रकार उस किसान के पास पहुँचा और उससे जानना चाहा कि आखिर उसकी सफलता का राज़ क्या है? किसान ने पहले तो पत्रकार को बहुत टालना चाहा, लेकिन वह पत्रकार ही कैसा जो मनचाही बात न जान पाए। उसने भी घुमा-फिराकर उससे बात जान ही ली। उस किसान ने बताया कि वह हर साल अच्छी फसल इसलिए पैदा कर पाता है क्योंकि वह जो उन्नत किस्म के बीज वह अपने पड़ोसी किसानों को भी दे देता है।
     जब पत्रकार ने उससे कहा कि यह तो घाटे का सौदा हुआ। इसके लिए तुम्हें अतिरिक्त व्यय भी करना पड़ता होगा। इस पर किसान बोला-व्यय तो होता है लेकिन अपव्यय नहीं होता, क्योंकि किसी भी अच्छी फसल के लिए ज़रूरी है कि परागकण की क्रिया ठीक प्रकार से हो। अच्छे परागकण के लिए पराग कण भी उन्नत किस्म के होने चाहिए, जो उन्नत बीज के माध्यम से ही उत्पन्न हो सकते हैं। यह परागकण पड़ोसी के खेतों से ही उड़कर मेरे खेतों में आते हैं और परिणाम यह होता है कि मेरी फसल अच्छी होती है।
     यदि मेरे पड़ोसी निम्नकोटि के बीज इस्तेमाल करेंगे तो मेरी फसल भी उनसे प्रभावित होगी। उन्हें बीज देकर मैं इस संभावना को पहले ही रोक देता हूँ। उसकी बात सुनकर पत्रकार बोला-तुम्हारी बात मुझे समझ में आ गई। लेकिन जब तुम्हारे पड़ोसी तुम्हारे दिए बीजों की बुवाई करते हैं तो फिर उनकी खेती अच्छी क्यों नहीं होती? इस पर वह किसान बड़े ही भोलेपन से बोला-क्योंकि वे अपने पड़ोसियों को उन्नत बीज़ नहीं देते। उससे उनकी फसल अपने पड़ोसी के मुकाबले तो अच्छी होती है, लेकिन मेरे से अच्छी नहीं होती। क्योंकि उनके खेतों में परागकण की क्रिया के लिए आने वाले सभी परागकण श्रेष्ठ नहीं होते। मेरे खेत से तो उन्हें कोई समस्या नहीं होती, लेकिन उनके खुद के पड़ोसी की खेती उनकी फसल को बिगाड़ देती है। इस प्रकार हर साल अंततः पुरस्कार मुझे ही मिल जाता है। वैसे मैने उन्हें इस बारे में समझाया भी, लेकिन अपने पड़ोसियों से ईष्र्या के चलते उन्हें मेरी बात समझ में ही नहीं आती। इस तरह वे अपना ही नुकसान करते हैं।
     क्या बात है? इसे कहते हैं पड़ोसी-धर्म। यानी यदि हम अपने जीवन में उन्नति करना चाहते हैं तो अपने पड़ोसी से ईष्र्या करने की बजाय उसे भी प्रगति के लिए प्रेरित करें। इसके दो लाभ हैं। एक तो पड़ोसी से आपके संबंधों में मधुरता आएगी जिससे आप तनावमुक्त रहेंगे और दूसरे, दोनों ही एक-दूसरे की खुशियोंं में शामिल होंगे जिससे दोनों की खुशियाँ दोगुनी हो जाएँगी।
     जबकि दूसरी ओर यदि आप तो प्रगति किए जा रहे हैं और पड़ोसी की सहायता करना तो दूर, उससे संबंध भी मधुर नहीं बनाकर रख रहे हैं तो इसका सीधा प्रभाव एक दिन आपकी प्रगति पर भी पड़ेगा। क्योंकि कहीं न कहीं आपकी प्रगति पड़ोसी को अखरेगी और फिर ईष्र्यावश छोटी-छोटी बातों पर होने वाली आपसी खटपट से आप लोगों के बीच तनाव बढ़ेगा। इसलिए बेहतर यही है कि अपने पड़ोसी से प्रेम के संबंध बनाकर रखे जाएं क्योंकि पड़ोसी ही वह व्यक्ति होता है जो किसी भी मुसीबत के समय सबसे पहले आपकी मदद के लिए आगे आता है।
     यह बात ऐसे लोगों को विशेष रूप से ध्यान रखनी चाहिए जिनकी अपने पड़ोसियों से नहीं पटती। इसकी वजह से वे तनाव में तो रहते हैं लेकिन तनावमुक्त होने का प्रयास नहीं करते। अपनी ओर से पहल करके पड़ोसियों से संबंध मधुर बनाने में उनका अहं आड़े जो आता है। यदि वे सोचते हैं कि पड़ोसी के बिना भी उनका काम चल जाएगा तो वे गलत सोचते हैं क्योंकि हम अपने घर पर मित्रों के बिना तो रह सकते हैं, लेकिन अपने पड़ोसियों के बिना नहीं। फिर हम जहाँ भी रहेंगे, वहाँ कोई न कोई पड़ोसी होगा ही। इसलिए अच्छा यही है कि पड़ोसी से मनमुटाव की जगह बनाव करके चलें। कहा भी गया है कि यदि तुम अपने पड़ोसी से प्रेम नहीं कर सकते, जिसको तुम रोज़ देखते हो, तो ईश्वर से प्रेम कैसे करोगे, जिसको कि तुमने कभी देखा ही नहीं। और पड़ोसी से प्रेममय संबंध बनाने की पहल करने का सबसे आसान तरीका यह है कि उसे चाय पर बुलाएँ या खुद जाएँ। फिर देखिए, आपके संबंध कैसे प्रगाढ़ नहीं होते?

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