Wednesday, June 29, 2016

विश्वास

रामायण का एक प्रसंग है। सीता के बारे में यह पता चल जाने पर कि उन्हें समुद्र पार लंका में रावण की अशोक वाटिका में बंदी बनाकर रखा गया है, राम ने निर्णय किया कि वे सीता को छुड़ाकर लाएँगे। इसके लिए राम सेना सहित लंका विजय की कामना से समुद्र तट पर पहुँचे। वहाँ पर यह प्रश्न खड़ा हो गया कि समुद्र को कैसे पार किया जाए? सोच-विचारकर निर्णय हुआ कि लंका पहुँचने के लिए समुद्र पर सेतु या पुल का निर्माण करना होगा। जाम्बवंत ने नल-नील को बुलाकर सेतु निर्माण का कार्य सौंपा। नल-नील को यह शाप मिला हुआ था कि वे जिस किसी भी वस्तु को पानी में डालेंगे, वह डूबेगी नहीं बल्कि तैरती रहेगी। इसके बाद जाम्बवंत ने वानरों और भालुओं की सेनाओं को नल-नील की सहायता करने के लिए कहा। इस पर सभी अपने-अपने सामथ्र्य के अनुसार पुल निर्माण के कार्य में जुट गए। वे बड़ी-बड़ी चट्टानें और वृक्षों को उखाड़कर लाते और नल-नील को दे देते। वे दोनों उन्हें जमाते जाते। सभी के साथ हनुमान भी बहुत ही तीव्रता से कार्य में लगे थे। वे किसी से पीछे नहीं रहना चाहते थे। वे तेज़ी से जाकर चट्टानों को उठाकर लाते और उन पर "राम' लिखकर पानी में डाल देते। बिना नल-नील के छुए ही राम नाम लिखे ये पत्थर भी पानी पर तैरने लगते थे।
     सबको काम करते देखकर राम के मन में भी विचार आया कि मुझे भी सेतु निर्माण में सहायोग करना चाहिए। ऐसा विचार मन में आते ही उन्होने एक पत्थर उठाया और उसे समुद्र में फेंका, लेकिन यह क्या? पानी में तैरने की बजाय पत्थर डूब गया। राम आश्चर्य चकित होकर देखने लगे। उन्होने एक और पत्थर उठाकर पानी में डाला। इस बार भी वही हुआ और वह पत्थर भी पानी में डूब गया। राम के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। अचानक उनकी दृष्टि हनुमान पर पड़ी। उन्होने इशारे से उन्हें अपने पास बुलाया। पास आने पर राम ने पूछा-पवनपुत्र! तुम जो भी पत्थर पानी में डाल रहे हो वह तो तैर रहे हैं जबकि मेरे द्वारा डाले गए पत्थर डूब रहे हैं। यह अनहोनी कैसे हो रही है? इस पर हनुमान बोले-प्रभु, इसमें अनहोनी की क्या बात है। यह तो होना ही है। सभी जानते हैं कि आप ही तारणहार हैं और जिसका आप हाथ पकड़ लेते हैं वह तैर जाता है। लेकिन जब तारणहार ही छोड़ देगा तो उसे डूबने से फिर कौन बचा सकता है। यही गति आपके हाथों से छूटे हुए पत्थरों की भी हो रही है। जहाँ तक पानी में मेरे द्वारा डाले गए पत्थरों के तैरने की बात है तो इसमें भी कोई अनहोनी की बात नहीं है। मुझे अपने स्वामी पर पूरा विश्वास है। और जब मैं बिना किसी संशय या संदेह के आपका नाम लिखकर पत्थर पानी में डालता हूँ तो फिर वह आपकी कृपा से डूबेगा कैसे, तैरेगा ही।
     दोस्तो, यही है विश्वास की शक्ति जो पत्थर को भी तैरा देती है। जब भी हम कोई कार्य पूरे विश्वास व लगन से करते हैं तो उसमें सफलता मिलना कोई आश्चर्य की बात नहीं। इसलिए यदि आपने अपने जीवन का लक्ष्य बहुत बड़ा बना रखा है, ऐसा लक्ष्य जो किसी दूसरे की दृष्टि में असंभव हो, जिसकी प्राप्ति किसी अनहोनी घटना से कम न हो, उसे भी इसी विश्वास के सहारे प्राप्त किया जा सकता है। यानी आपको यदि अपनी क्षमताओं और योग्यताओं पर पूरा भरोसा है तो फिर निÏश्चत होकर लक्ष्य प्राप्ति में पूरी लगन से जुट जाएँ। तब आप स्वयं देखेंगे कि अनहोनी कैसे घटित होती है। कहते भी हैं असंभव को संभव वे ही कर दिखाते हैं, जिन्हें अपने आप पर पूरा भरोसा होता है। वैसे भी विश्वास वह शक्ति है, जो व्यक्ति की आंतरिक उर्जा को बढ़ाकर उसे अधिक क्षमतावान बनाती है, जबकि संदेह ऊर्जा की गति को बाधित कर उसे कमजोर कर देता है। इसलिए वही व्यक्ति अपने सपने साकार करने में सफल होता है, जो संदेह से मुक्त और विश्वास से युक्त हो।
     दूसरी ओर, यदि आप हर काम और हर व्यक्ति को संशय की दृष्टि से देखते हैं तो इस आदत को जल्द से जल्द बदल दीजिए। क्योंकि यह आदत एक न एक दिन आपके लिए परेशानी का सबब बनकर आपकी नैया को डुबा सकती है। जब आप खुद दूसरों पर भरोसा नहीं करोगे तो दूसरों से कैसे अपेक्षा रखोगे कि वह आप पर भरोसा करें। ऐसे हालात में लोग आपसे संबंध बनाकर नहीं रखना चाहेंगे। फिर चाहे वह आपके सहकर्मी, अधिकारी या बॉस ही क्यों न हों। और जिस दिन बॉस का विश्वास आप पर से उठ गया तो मानकर चलिए कि राम के हाथ से छूटे पत्थर की तरह आप भी डूबेंगे ही। इसमें भी कोई अनहोनी वाली बात नहीं है। जिसके साथ बॉस का हाथ न हो, उसे डूबने से कोई नहीं बचा सकता। इसलिए भरोसेमंद बनो। अपने काम और अपने राम पर पूरा विश्वास रखो और परिणाम को राम भरोसे छोड़कर काम में जुट जाओ। सफलता अवश्य मिलेगी।
     राम अर्थात सद्गुणों और संस्कारों से परिपूर्ण एक व्यक्तित्व। राम में वे सभी गुण थे, जिनका कि ज़िक्र हम रोज करते हैं। इन्हीं गुणों को आत्मसात कर आप भी राम जैसा बन सकते हैं। क्योंकि राम बनना असंभव नहीं है। गुणों व संस्कारों ने ही राम को राम बनाया और उन्हीं के सहारे आप भी बन सकते हैं राम। अच्छा, राम-राम ।


No comments:

Post a Comment