Monday, June 20, 2016

ध्यान लगेगा तभी जब हटेगा ध्यान


     बंगाल के कृष्णनगर में राजा कृष्णचन्द्र का शासन था। जब हिल्सा मछलियों का मौसम आता तो पूरे राज्य में सिर्फ हिल्सा की ही चर्चा होती थी। यहाँ तक कि राज दरबार में भी हिल्सा के किस्से बड़े चाव से सुने-सुनाए जाते थे। ऐसे में एक दिन मंत्री ने बहुत बड़ी मछली पकड़ी। दरबार में आकर वह अपनी सफलता का बखान करने लगा। इस पर राजा झल्ला उठा। गुस्सा शांत होने पर राजा बोला-हम बेकार ही झल्ला गए। जब मौसम ही हिल्सा का हो तो इसकी चर्चा को रोकना संभव नहीं है। इस पर दरबार में मौजूद राजा का विश्वासपात्र चतुर नाई गोपाल बोला-नहीं, महाराज, ऐसा किया जा सकता है। राजा ने कहा-तो करके दिखाओ। तुम बाज़ार से एक बड़ी हिल्सा मछली खरीदो और उसे महल तक लेकर आओ। यदि कोई उसके बारे में बात नहीं करेगा तो हम मान जाएँगे। गोपाल ने चुनौती स्वीकार करली। इसके बाद उसने अपनी दाढ़ी बढ़ाना शुरू कर दी। कुछ दिन बाद उसने आधी हजामत बनाकर अपने चेहरे पर कालिख पोत ली और फटे हुए कपड़े पहनकर बाज़ार में निकल गया। वहाँ उसने एक बड़ी हिल्सा खरीदी और नंगे पैर ही महल की ओर चल पड़ा। रास्ते में लोग उसे देखकर तरह-तरह की फब्तियाँ कसने लगे। महल पहुँचने पर दरबान उसे नहीं पहचान सके और उसे वहाँ से भगाने लगे। इस पर वह उनसे झगड़ने लगा। शोर सुनकर राजा ने उसे दरबार में बुलाया। वहाँ भी उसे लोग बड़ी मुश्किल से पहचान सके और उसके बारे में ही तरह-तरह की बातें करने लगे। तभी राजा बोला-गोपाल, यह क्या पागलपन है? गोपाल ने कहा-महाराज, यह पागलपन नहीं आपकी चुनौती का जवाब है। मेरे हाथ में इतनी बड़ी हिल्सा मौजूद है और कोई उसकी बातें नहीं कर रहा है, जबकि सबको वह मेरे हाथ में दिखाई दे रही है। क्या कहते हैं आप? आखिर मैंने सिद्ध कर दिखाया न।
     देस्तो, गोपाल ने राजा को ही नहीं हमें भी सिखा दिया कि यदि आपको किसी विषय या घटना विशेष से लोगों का ध्यान हटाना है तो उनका ध्यान दूसरी तरफ मोड़ दो। हाँ, शर्त यह है कि वह विषय या घटना पहले वाले विषय से ज्यादा रोचक हो। यानी लोग उसमें रूचि या दिलचस्पी रखते हों, दिखाएँ। क्योंकि इसके बिना लोगों का ध्यान बँटाया नहीं जा सकता। यानी किसी चीज़ से ध्यान हटाने के लिए ज़रूरी है कि ध्यान दूसरी ओर लगा दिया जाए। राजनीति में तो नेतागण इस मंत्र का आए दिन उपयोग करते रहते हैं। जब उन्हें लगता है कि उनके द्वारा कही गई या की गई किसी बात को लोग पकड़कर बैठ गए हैं और उसके लिए उनकी आलोचना कर रहे हैं, तब वे या उनकी पार्टी कोई ऐसा शिगूफा छोड़ देते हैं कि लोग पहली घटना भूलकर नए शिगूफे पर चर्चा करना शुरू कर देते हैं। और नेताजी जान छूटने पर मन ही मन कहते हैं- "जान बची और लाखों पाए।' यह बात राजनीति तक ही सीमित नहीं है। यह किसी भी व्यक्ति अथवा संस्था पर भी लागू हो सकती है। जब व्यक्ति या संस्था किसी भी कारण से अपने बारे में बन रहे नकारात्मक माहौल की दिशा घुमाने के लिए इसी "ध्यान घुमाने वाली' तकनीक का इस्तेमाल करती है। इससे जो गड़बड़ हुई है उससे लोगों का ध्यान हटकर दूसरी ओर लग जाता है।
          अंत में, यहाँ हम यह भी बता दें कि मेडिटेशन या ध्यान में भी यही तरीका अपनाया जाता है। यानी ध्यान लगाने के लिए ज़रूरी है कि बाकी जगहों से ध्यान हटा लिया जाए।

No comments:

Post a Comment