Wednesday, June 15, 2016

तब हँसी उड़ाने वाले की उड़ जाएगी हँसी


     गंगाराम नाम का एक ब्रााहृण अकबर के दरबार में आकर बोला-जहाँपनाह! मैं एक प्रतिष्ठित ब्रााहृण परिवार से हूँ। मेरे बाप-दादा प्रकांड विद्वान थे। लोग उन्हें "पंडित जी' कहकर संबोधित करते थे। हालांकि मैं अनपढ़ हूँ और पुरोहिताई का काम भी नहीं जानता हूँ, लेकिन चाहता हूँ कि आप मुझे भी कोई ऐसी पदवी दे दें ताकि लोग मुझे भी "पंडित जी' कहें। इससे मैं अपने पूर्वजों का नाम आगे बढ़ा सकूँगा। इस पर अकबर बोले-ऐसी स्थिति में हम तुम्हें पदवी कैसे दे सकते हैं। यह सुनकर गंगाराम उदास हो गया। वह बोला-जैसी हुज़ूर की इच्छा। वैसे मैं यहाँ बड़ी उम्मींद लेकर आया था।
     इस पर अकबर असमंजस में पड़ गए। तभी बीरबल बोले-हुज़ूर की आज्ञा हो तो मैं इन्हें बाज़ार में ले जाकर पंडित जी की उपाधि दिलवा सकता हूँ। अकबर ने कहा- यह कैसे संभव है? बीरबल ने उत्तर दिया, यह आप मुझ पर छोड़ दें। अकबर ने बीरबल को आज्ञा दे दी। बीरबल गंगाराम को साथ लेकर बाज़ार में पहुँचे। वहाँ उन्होने एक जगह पर गंगाराम को हाथ में एक डंडी लेकर खड़ा कर दिया। साथ ही उसे हिदायत भी दे दी कि यदि कोई उसे पंडित जी बोले तो उसे भला-बुरा कहे, उसे मारने दौड़े। इसके बाद बीरबल ने कुछ बच्चों को बुलाकर कहा-वह जो व्यक्ति हाथ में डंडी लिए खड़ा है, वह पंडित जी-पंडित जी कहने पर चिढ़ता है। तुम उसे चिढ़ाओगे तो मैं तुम्हें मिठाई दूँगा। बच्चों ने वैसा ही किया और गंगाराम उन्हें गालियाँ बकता हुआ मारने दौड़ा। यह सब वहाँ से गुज़र रहे लोगों ने देखा तो वे भी उसे पंडित जी कहकर चिढ़ाने लगे। गंगाराम ने उन्हें भी गलियाँ देना शुरू कर दिया। शाम होते-होते बहुत से लोग गंगाराम को पहचान गए। इसके बाद गंगाराम जहाँ से भी गुज़रता लोग उसे पंडित जी- पंडित जी कहकर आवाज़ें देने लगते। और इस तरह उसका नाम पंडित जी पड़ गया।
     दोस्तो, यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि गंगाराम का नाम भले ही "पंडित जी' पड़ गया हो, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह "पंडित' यानी विद्वान हो गया था। वह तब भी अनपढ़ था, अयोग्य था और बिना योग्यता के तो उपाधि इसी तरह मिल सकती है। क्योंकि वास्तविक उपाधि पाने के लिए किसी भी व्यक्ति को योग्यता की कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है और इसके लिए बाप-दादा का नाम काम नहीं आता। उनके नाम से लोग आपको पहचानते तो हैं, लेकिन यदि आप उस पहचान के सहारे अपने को साबित कर अपनी अलग पहचान नहीं बना पाते तो लोग फिर आपका सम्मान नहीं करते। यानी यदि आप लोगों के दिल में अपने लिए वही सम्मान चाहते हैं जो आपके पूर्वजों का था, तो फिर उसके लिए आपको अपने आपको प्रमाणित करना ही होगा। कहा गया है कि
     "उत्तमा आत्माना ख्याताः, पितु ख्याताश्च मध्यमाः।
     मातुलेनाधमाः    ख्याताः,    श्वसुरेणाधमाधमाः ।
यानी जो व्यक्ति अपने नाम से विख्यात है, वह उत्तम है। जो पिता के नाम से प्रसिद्ध है, वह मध्यम है। जो मामा के नाम से जाना जाता है वह अधम और ससुर के नाम से जिसकी पहचान है वो अधमों का भी अधम है। इसलिए गंगाराम की तरह सिर्फ नाम के लिए ही "पंडित जी' कहलाने की इच्छा न रखें। इससे आपके परिवार का नाम रोशन नहीं होता। बल्कि ऐसा करके आप अपने पूर्वजों के नाम पर बट्टा ही लगाते हैं और साथ ही खुद भी उपहास के पात्र बनते हैं। इससे आपको यश नहीं, अपयश मिलता है।
     दूसरी ओर, यदि कोई बात आपको चिढ़ाने के लिए कही जा रही है तो उस पर न चिढ़ें कयोंकि उसके चिढ़ाने पर चिढ़कर या परेशान होकर आप उसके उद्देश्य को पूरा करते हैं। इससे परेशान आप होते हैं और मज़ा उसे आता है। इसके विपरीत यदि आप चिढ़ाने वाले की बात पर चिढ़ने की बजाय खुद उस बात का आनंद उठाने लगेंगे तो बाज़ी पलट जाएगी। तब परेशान आप नहीं, वह होगा क्योंकि उसका वार जो खाली चला जाएगा। अधिकतर लोगों के उल्टे-सीधे नाम इसीलिए पड़ गए क्योंकि वे उस नाम से पुकारे जाने पर चिढ़ते थे। इसलिए यदि आपको कोई उल्टे-सीधे नाम से पुकारे तो आप भौंहें तानने की बजाय सिर्फ मुस्करा दें। देखिएगा कि कैसे उस हँसी उड़ाने वाले की हँसी उड़ जाती है और आपका उल्टा नाम रखने का उसका षड¬ंत्र धराशायी हो जाता है।

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