Wednesday, March 9, 2016

आती हैं कई भाषा तो काहे की निराशा


     एक बार चीन में एक बहेलिए ने दुर्लभ जाति के छः रंग-बिरंगे तोते पकड़े। उसने नगर में ले जाकर उन्हें एक व्यापारी को बेच दिया। उस व्यापारी की वहाँ के राजा से घनिष्ठ मित्रता थी। उसके मन में विचार आया कि इन तोतों को राजा को भेंट कर देता हूँ। निश्चित ही उन्हें यह उपहार पसंद आएगा। वह अपने विचार पर अमल करने की सोच ही रहा था कि तभी उसे ध्यान आया कि राजा बड़ा ही अंधविश्वासी है। चूँकि वहाँ पर कोई भी चीज़ छः की संख्या में लेना-देना अपशकुन माना जाता था, इसलिए उसने एक जापानी तोता उनके साथ मिला दिया। इस प्रकार सात तोते हो गए और यह एक शुभ अंक था।
     इसके बाद उसने वे तोते ले जाकर राजा को भेंट कर दिए। राजा को व्यापारी का उपहार बहुत पसंद आया। वह ध्यान से एक-एक तोते को देखता और व्यापारी से उसकी प्रशंसा  करता। अंत में उसकी नज़र जापानी तोते पर पड़ी। वह बोला-अरे, यह तोता तो जापानी लगता है। क्या ये सब अपने यहाँ के तोते नहीं हैं? राजा की बात सुनकर व्यापारी की समझ में नहीं आया कि अब वह क्या कहे। यदि वह कहता है कि एक अलग है तो फिर चीनी तोते संख्या में छः हो जाएँगे और झूठ वह राजा से बोलना नहीं चाहता था। उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी कुछ कहने की। राजा ने दोबारा अपना प्रश्न दोहराया तो इसके पहले कि व्यापारी कुछ कहता, जापानी तोता चीनी भाषा में बोला-महाराज, मैं चीन का भी हूँ और जापान का भी क्योंकि मैं दोनों भाषाएँ जानता हूँ यानी एक दुभाषिया हूँ।
     दोस्तो, यह होता है दुभाषिया होने का फायदा कि आप सामने वाले से उसी की भाषा में बात कर सकते हैं और वह आपसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा। फिर तो वह भूल जाएगा कि आप कौन और कहाँ के हैं। आप तो उसे अपने लगेंगे। इसलिए कहा भी गया है कि सामने वाले से जल्दी सामंजस्य बैठाना चाहते हो तो उससे उसी की भाषा में, उसी की बोली में बात करो। तब आपकी बात वह ज्यादा ध्यान और अपनत्व से सुनेगा-समझेगा यानी सामने वाले की भाषा का ज्ञान आपके काम को आसान बना देगा, बना देता है।
     वैसे भी कुछ नया और हटकर सीखने में बुराई भी नहीं होती। यदि आप कोई दूसरी भाषा सीखेंगे तो इसके आपके ज्ञान और सोच में वृद्धि ही होगी। तब आप एक ही विषय पर अलग-अलग तरीके से मंथन कर पाएँगे। साथ ही आपके संबंधों का दायरा भी बढ़ेगा। एक से अधिक भाषा जानने से आपके शब्दकोश में बहुत से नए-नए शब्द जुड़ते जाते हैं। ये शब्द कहीं न कहीं काम आते ही रहते हैं। इसलिए जितना ज्यादा हो सके, उतने नए-नए शब्द सीखें, उन्हें एड करें। कहते हैं कि यदि आप रोम में हैं तो रोमन की तरह व्यवहार करें। यह ठीक है, लेकिन बिना रोमन भाषा जाने वहाँ के निवासी की तरह व्यवहार कैसे किया जा सकता है। यानी आप किसी दूसरी भाषा वाले क्षेत्र में तभी घुल-मिलकर सफल हो सकते हैं जब आप वहाँ की बोली में बात कर सकें। वरना सामने वाला आपसे बात कर रहा है और आपकी बोलती बंद।
     यह बात कई रिसर्च से साबित भी हुई है कि किसी व्यक्ति से उसी की भाषा में बात की जाए तो संदेश की ग्रहणशीलता और उसी के अऩुरूप प्रतिक्रिया की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यही कारण है कि आज लगभग हर छोटी-बड़ी कंपनी लोगों तक अपना संदेश या अपने उत्पादों की जानकारी उन्हीं की भाषा में पहुँचाना चाहती है। यह इसलिए भी ज़रूरी हो गया है कि आज का दौर ग्लोबलाइजेशन का है। ऐसे में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ किसी दूसरे देश में जाकर तभी सफल हो सकती हैं जब उनका कामकाज स्थानीय भाषा में  हो। कई बार तो इन कंपनियों के विज्ञापन देखकर अहसास ही नहीं होता कि ये किसी विदेशी कंपनी का विज्ञापन या उत्पाद है। अपनी भाषा में होने के कारण ही वह हमें अपील करता है। स्थानीय भाषा के इसी बढ़ते महत्व के कारण उन लोगों का बोलबाला हो गया है जो अपनी भाषा के साथ ही कोई दूसरी भाषा या बोली भी जानते हैं। उनके लिए इन कंपनियों में अपार संभावनाएँ हैं। इसलिए यदि आप भी अपने करियर में बहुत कुछ करना चाहते हैं तो कोशिश करें कि अपनी भाषा के अलावा कोई और भाषा भी सीखें। इससे आपके करियर में अवसरों की वृद्धी ही होगी और दुभाषिए होने के बाद आप कभी हाशिए पर नहीं जाएँगे।

No comments:

Post a Comment