Monday, March 7, 2016

हाथ ऊपर उठें।

ऐसा करो कि हाथ ऊपर उठें, ऊपर न उठें!
     न्यूरेमबर्ग के पास के एक गाँव में एक गरीब सुनार अपने अठारह बच्चों वाले परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किल से करता था। यह बात उसके बच्चे जानते थे। इसी कारण उसके दो बड़े बेटे अल्ब्रोट और अल्ब्रोच उदास रहते थे। वे कला के क्षेत्र में उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहते थे, लेकिन तंगहाली के चलते यह संभव न था। एक रात अल्ब्रोच अपने भाई से बोला-इस तरह हमारा सपना कभी पूरा नहीं होगा हमें कुछ करना चाहिए।
     इस पर दोनों ने तय किया कि वे सिक्का उछालकर अपने भाग्य का फैसला करेंगे। जो हारेगा वह न्यूरेमबर्ग के पास की खदान में काम करके जीते हुए भाई की पढ़ाई में आने वाला पूरा खर्च उठाएगा। और चार साल बाद जब उसकी पढ़ाई पूरी हो जाएगी तब वह दूसरे भाई को उसका सपना पूरा करने में मदद करेगा। यह तय होने के बाद सिक्का उछाला गया। इसमें अल्ब्रोच की जीत हुई। उसने न्यूरेमबर्ग जाकर कला अकादमी में दाखिला ले लिया और अल्ब्रोट खदान में काम करने लगा।
     दोनों भाई अपने-अपने क्षेत्र में जी-तोड़ मेहनत कर रहे थे। अल्ब्रोट इसलिए ताकि उसके भाई को पैसे की कमी न हो और अल्ब्रोच इसलिए कि उसके भाई की मेहनत बेकार न जाए। अल्ब्रोच का पैतृक व्यवसाय चूँकि सुनारी का था, इसलिए उसके अंदर रचनात्मकता पैतृक गुणों के रूप मे मौजूद थी। वह जो भी कलाकृति बनाता वह अनोखी होती थी। फिर भले ही वह तैलचित्र हो, नक्काशी का काम हो या लकड़ी की बनी वस्तुएँ। इस तरह पढ़ाई पूरी करते-करते वह एक स्थापित कलाकार बन गया। उसे काम भी खूब मिलने लगा। पढ़ाई पूरी कर जब वह गाँव पहुँचा तो सभी ने उसका गर्मजोशी से स्वागत किया। सभी उसकी तारीफों के पुल बाँध रहे थे। तब अल्ब्रोच बोला-तारीफ के काबिल मैं नहीं, मेरा भाई है। आज मैं जो कुछ हूँ, उसी की बदौलत। इसके बाद वह अल्बर्ट की ओर मुड़कर बोला-भाई, अब तुम्हारी बारी है। अब तुम न्यूरेमबर्ग जाकर अपना सपना पूरा करो। इस पर अल्बर्ट भाव-विभोर हो उठा। उसके आँसू बह निकले। सिसकियाँ लेते हुए वह बोला-नहीं, अल्ब्रोच! अब यह संभव नहीं। अब बहुत देर हो चुकी है। खदान में काम करते-करते मेरे हाथ इतने रूखे हो गए हैं कि अब यह हथौड़ा ही उठा सकते हैं, ब्राश नहीं।
     दोस्तो, वह कलाकार भाई था अल्ब्रोच ड¬ूरेर, जिसकी बनाई अनेक कलाकृतियाँ आज लगभग 500 साल बाद भी विश्व के कई मयूजियमों की शोभा बढ़ा रही हैं। लेकिन उसकी सर्वश्रेष्ठ कलाकृति है आकाश की ओर उन्मुख रूखे, खुरदुरे, पतली-पतली अँगुलियों वाले हाथ। इस मास्टरपीस को लोगों ने नाम दिया है "प्रेर्इंग हैंड्स' यानी प्रार्थनारत हाथ। ये हाथ अल्ब्रोच ने इसलिए बनाए थे ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जब भी इस पेंटिंग को देखें तो वे अल्ब्रोच की तारीफ करते समय यह न भूलें कि उसकी सफलता के पीछे किसी और का भी हाथ था। इस पेंटिंग का निर्माण सिर्फ उसने नहीं बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से अल्ब्रोट ने भी किया था।
     वैसे हम सबको भी सफलता सिर्फ अपने हाथों की बदौलत हासिल नहीं होती, बल्कि उसमें कई और भी हाथ होते हैं। कुछ हाथ ऐसे होते हैं जो हमारे लिए दुआ करते हैं, प्रार्थना करते हैं। कुछ हाथ सहयोग, सहायता के रहते हैं। कुछ हाथ हमारी पीठ थपथपाकर हमें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, तो कुछ हाथ आशीर्वाद के रूप में हमारे सिर पर रखे होते हैं। कुछ हाथों की अँगुली पकड़कर हम आगे बढ़ते चले जाते हैं, तो कुछ हाथ बराबरी के होते हैं जो मिलकर बड़े से बड़े और कठिन से कठिन काम को आसानी से अंजाम दे देते हैं। इस तरह हम सबकी सफलता में हमारे ही नहीं औरों के भी हाथ होते हैं। हम सबको उन हाथों के योगदान को अल्ब्रोच ड¬ूरेर की तरह ही याद रखना चाहिए। इस तरह आप उन हाथों के अहसान को तो नहीं उतार सकते, लेकिन उनके योगदान को याद रखकर उनके प्रति एक आदर और स्नेह का एक भाव तो रख ही सकते हैं। इससे वे हाथ और भी उत्साह से आपके साथ रहेंगे, आपके लिए उठेंगे। यदि आप उन हाथों को भूल जाएँगे तो फिर वे आपके लिए नहीं बल्कि आपके ऊपर उठेंगे। यह तभी संभव है, जब आप सभी को साथ लेकर सभी के साथ चलेंगे।

No comments:

Post a Comment