Thursday, March 3, 2016

मंत्र के सहारे ही नहीं चलता तंत्र


     वाराणसी का राजपुरोहित जंगल में सम्मोहन मंत्र की सिद्धि के लिए जाप कर रहा था। तभी वहाँ से एक गीदड़ गुज़रा। वह भी झाड़ी में छिपकर मंत्र को दोहराने लगा। इधर मंत्र सिद्ध होने पर पुरोहित खुशी से चीख पड़ा कि इस मंत्र पर मेरा ही अधिकार है। तभी गीदड़ हँसता हुआ उसके सामने आया और बोला-पुरोहित जी, इस मंत्र पर मेरा भी अधिकार है। अब आप देखना मैं इस मंत्र के सहारे दुनियाँ पर राज करूंगा। इस पर पुरोहित ने उसे पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह भाग निकला। बाद में उस मंत्र से उसने जंगल के सभी जानवरों को अपने वश में कर लिया। यहाँ तक कि शेर जैसे खूँखार और हाथी जैसे विशालकाय जानवर भी उसकी जी-हुज़ूरी करने लगे।
     इस तरह वह जंगल का राजा बन गया। अब वह वाराणसी पर कब्ज़ा करने की सोचने लगा। एक दिन उसने दो हाथियों के ऊपर शेर को खड़ा किया और उस पर बैठकर अपनी फौज सहित वाराणसी पहुँच गया। किले को चारों ओर से घेरने के बाद उसने वहाँ के राजा को संदेश भिजवाया कि वह उसकी अधीनता स्वीकार कर ले अन्यथा मरने को तैयार हो जाए। संदेश पाकर राजा चिंतित हो गया। उसे चिंतित देखकर पुरोहित बोला-महाराज, आप परेशान न हों। उस गीदड़ से मैं निपटता हूँ। इसके बाद किले की प्राचीर पर जाकर उसने गीदड़ से पूछा कि आखिर वह नगर पर अधिकार करेगा कैसे, क्या उसे युद्ध का तरीका पता है? गीदड़ बोला- मैं शेरों से दहाड़ने को कहूँगा। इससे अफरा-तफरी मच जाएगी और मैं नगर पर अधिकार कर लूँगा। मन ही मन मुस्कुराकर पुरोहित बोला-तुम्हारी योजना अच्छी तो है लेकिन क्या ये खूँखार पशु तम्हारा आदेश मानेगे। गीदड़ पुरोहित की बातों में आ गया और उसने शेरों को दहाड़ने का आदेश दे दिया। शेरों की दहाड़ सुनकर जानवरों में अफरा-तफरी मच गई। हाथी भी घबराकर भागे जिससे उनके ऊपर खड़ा शेर और उस पर बैठा गीदड़ जमीन पर आ गिरा और हाथी के पाँव तले कुचलकर गीदड़ मर गया।
     दोस्तो, कहते हैं मंत्र से ही नहीं चलता तंत्र। लेकिन शायद उस गीदड़ को यह पता नहीं था। वह यह भी नहीं जानता था समूह बनाकर ही व्यक्ति नेता नहीं बन जाता। इसके लिए तो नेतृत्व क्षमता का होना आवश्यक है। यदि आप में नेतृत्व क्षमता ही नहीं होगी तो समूह का सही संचालन कैसे कर पाओगे। तब तो वही समूह आपके लिए विनाशकारी सिद्ध हो जाएगा, जिसका कि आप नेतृत्व कर रहे होते हैं। वैसे यह सामान्य सी बात है, लेकिन बड़ी सफलता पाने का इरादा रखने वाले कुछ लोग यह नहीं समझते। उनके लिए तो कुशल नेतृत्व का मतलब है कि बड़ी-बड़ी बातें कर लोगों को प्रभावित करना और अकसर लोग इनकी बातों में आकर इनके पीछे हो लेते हैं। इनमें कई लोग तो इनसे भी ज्यादा योग्य और क्षमतावान होते हैं। इनकी बातों से वे इतने भ्रमित हो जाते हैं कि उन्हें लगने लगता है कि उनका नेतृत्व करने के लिए इनसे बेहतर व्यक्ति कोई हो नहीं सकता, लेकिन जब कुछ करके दिखाने का समय आता है तो डींग हाँकने वाले ऐसे लोगों की पोल खुल जाती है।
     तब पता चलता है कि ये केवल बातों के धनी थे, हाथो के नहीं। तब इनकी स्थिति उस गीदड़ जैसी ही हो जाती है। यदि आप भी किसी मंत्र के सहारे या यूं कहें कि भाग्य के सहारे किसी बड़े पद को पाने में सफल हो गए हैं तो खुद का आंकलन करिए कि क्या आप उस पद से जुड़ी हुई ज़िम्मेदारियों का निर्वहन करने की स्थिति में हैं? क्या आप लोगों को साथ लेकर चल सकते हैं? यदि नहीं तो सबसे पहले अपने अंदर नेतृत्व क्षमता का विकास करें। एक अच्छा लीडर उसी को कहा जाता है जो हर परिस्थिति में अपनी टीम के अंदर उत्साह का संचार कर सके। वह अपने विवेक से चले न कि कोई उसे चलाए। क्योंकि जिसके अंदर नेतृत्व क्षमता नहीं होती वह खुद से ज्यादा दूसरों पर भरोसा करता है। वह इस गलतफहमी में रहता है कि कमान उसके हाथ में है जबकि उसकी अयोग्यता और कमजोरी का फायदा उठाकर कोई दूसरा ही उसे चला रहा होता है जैसे कि उस पुरोहित ने गीदड़ को अपने हिसाब से चला लिया। ऐसा लीडर अपना और अपनी टीम दोनों का ही नुकसान करता है। इसलिए बेहतर यह है कि लीडर बनने से पहले अपने अंदर लीडरशिप क्वालिटी पैदा की जाए। ठीक कहा न।

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