Thursday, March 24, 2016

बदलती परिस्थितियों में भी बनाए रखें संतुलन


      बहुत समय पहले की बात है। एक राज्य का राजा बहुत ही विद्वान और न्यायप्रिय था। उसकी मंत्री परिषद में भी हर क्षेत्र के एक से बढ़कर एक निपुण मंत्री थे। इस कारण राजा के दरबार में जब भी कोई गुहार लगाता तो उसे पूरा न्याय मिलता था, क्योंकि सारे निर्णय बुद्धिमत्ता की कसौटी पर परख कर लिए जाते थे और सही साबित होते थे।
     धीरे-धीरे राज दरबार की ख्याति दूर-दूर तक फैलने लगी। ख्याति फैलते-फैलते दूर देश के एक जौहरी के कानों तक पहुँची। जौहरी यूँ तो रत्नों का व्यापारी था लेकिन था वह बहुत ही बुद्धिमान। उसे विद्वानों से सत्संग करने में बहुत आनंद मिलता था।
     राज दरबार की ख्याति सुनकर ऐसे विद्वानों के सत्संग का लाभ उठाने से वह अपने आपको रोक नहीं पाया। लेकिन उसने सोचा कि पहले वह यह तो तय कर ले कि दरबारी वाकई विद्वान है भी या नहीं। हो सकता है कि दरबार की ख्याति झूठी हो। इसके लिए उसने तय किया कि पहले वह राजा के दरबारियों की परीक्षा लेगा।
     ऐसा विचार कर वह उस राज्य की ओर निकल पड़ा। कई दिनों की यात्रा के बाद वह उस राज्य में पहुँचकर एक सराय में ठहर गया। अगले दिन प्रातः वह तैयारी के साथ सीधे राज दरबार पहुँचा। राज दरबार में राजा का अभिवादन करता हुआ बोला- राजन्! मैं आपके दरबार की ख्याति सुनकर बहुत दूर से आपके दर्शनों के लिए आया हूँ। आप और आपके दरबारियों की विद्वता का यश चारों ओर फैला हुआ है। लेकिन मेरी एक समस्या है। यदि आज्ञा हो तो कहूँ। उसकी बात सुनकर राजा ने कहा-आज्ञा है, निडर होकर कहें। इस पर वह बोला- राजन्! मैं एक जौहरी हूँ। इस कारण जब तक किसी वस्तु को अपनी कसौटी पर कस के नहीं देख लेता, उसकी सत्यता पर विश्वास नहीं करता। इसी तरह जब तक आपके दरबारियों को परख न लूँ, मैं उन्हें विद्वान नहीं मान सकता। और इसके लिए मैं आपके दरबारियों की विद्वत्ता की परीक्षा लेना चाहता हूँ।
    राजा ने कहा- कैसी परीक्षा लेना चाहते हैं? जौहरी बोला- हुज़ूर! मेरे पास हीरों की एक जोड़ी है। दोनों हीरे बिल्कुल एक जैसे दिखते हैं। इसमें से केवल एक असली है। यदि आपके दरबारियों में से किसी ने इस असली-नकली की पहचान कर ली तो मुझे इस दरबार की ख्याति पर विश्वास हो जाएगा। जौहरी की बात सुनने के बाद राजा ने कहा-ठीक है। हमें तुम्हारी चुनौती स्वीकार है।
     इसके बाद हीरे एक ऊँची जगह पर रख दिए गए। राजा ने अपने दरबारियों से इस पहेली को हल करने के लिए कहा। एक के बाद एक दरबारी हीरों के पास जाते और उन्हेंं उठाकर अपनी तरह से उनका परीक्षण करते। लेकिन असली हीरा पहचानने में कोई भी सफल नहीं हो पा रहा था। जो कार्य प्रारंभ में आसान-सा लग रहा था, वह अब दुष्कर प्रतीत हो रहा था। इस प्रकार कई घंटे बीत गए। सुबह से दोपहर हो गई लेकिन किसी को सफलता नहीं मिली। बढ़ती गर्मी के साथ ही दरबार का माहौल भी गर्म हो चला था। जौहरी के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान दिखाई देने लगी थी। उसने राजा से कहा, लगता है आपके दरबार में कोई पारखी दृष्टि वाला व्यक्ति नहीं है और मेरे हाथ निराशा ही लगेगी। इससे पहले कि राजा कुछ बोलते, दरबार में उपस्थित एक बूढ़ा व्यक्ति बोला-ठहरिए महाशय! इतनी जल्दी निर्णय न करें। पहले मुझे कोशिश करके देख लेने दें। जौहरी ने घूमकर बूढ़े व्यक्ति की ओर देखा और हँस दिया। वह बूढ़ा व्यक्ति अँधा था। जौहरी बोला- बाबा! जब आँखों वाले असली हीरा नहीं पहचान पाए तो आप दृष्टिहीन होकर कैसे हीरा पहचान सकते हैं?
     इस पर वृद्ध व्यक्ति ने बड़ी ही सहजता से जवाब दिया- बंधु! पहले आप मुझे प्रयास करने दें। इसके पश्चात् ही मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूँगा। ऐसा कहकर अपने साथी दरबारी की सहायता से वह वृद्ध व्यक्ति उस जगह तक पहुंचा जहाँ हीरे रखे थे। उसने दोनों हीरों को अपने हाथ में उठा लिया और बिना देरी किए बोला- मेरे सीधे हाथ में जो हीरा है, वह असली है और उल्टे हाथ का हीरा नकली है। वृद्ध की बात सुनकर जौहरी आश्चर्य में पड़ गया और बोला- बाबा! एकदम सही पहचाना आपने। लेकिन यह तो बताएँ कि आप अंदाज से बोल रहे हैं या इसका कोई आधार भी है। जौहरी की बात सुनकर वृद्ध बोला- श्रीमान्! असली हीरा पहचानना बहुत आसान काम था। असली हीरे पर वातावरण में परिवर्तन का प्रभाव नहीं होता, जबकि नकली हीरा वातावरण का तापमान बढ़ने या घटने से गर्म या ठंडा हो जाता है। इसलिए जैसे ही मैने हीरों को हाथ में लिया तो मुझे असली-नकली का पता चल गया, क्योंकि नकली हीरे का तापमान दोपहर की गर्मी के कारण बढ़ चुका था यानी गर्म था। जबकि असली हीरे पर तापमान का कोई प्रभाव नहीं था। और इसे परखने में मेरी दृष्टिहीनता आड़े नहीं आई, क्योंकि तापमान का पता, दृष्टि से नहीं, स्पर्श से लगाया जा सकता है। वृद्ध की बातें सुनकर जौहरी उनके पैरों में गिर पड़ा और अपनी धृष्टता के लिए क्षमा माँगता हुआ बोला कि मेरी किसी बात से आपको ठेस पहुँची हो तो मुझे क्षमा करें। यह सब मेरी परीक्षा का ही अंग था। आप जैसे विद्वान से भेंट कर मैं धन्य हुआ। इस पर राजा ने कहा कि ये वृद्ध और कोई नहीं, इस राज्य के राजगुरु हैं और इनके कुशल मार्गदर्शन में ही हम सब राजकाज चलाते हैं। राजा की बात सुनकर जौहरी ने उनसे कहा कि राजन्! अब मुझे विश्वास हो गया कि आपके दरबार की जो ख्याति चारों ओर फैली है, वह वाकई सच्ची है।
     ये कहानी हमें बताती है कि वातावरण के परिवर्तनों से जो अप्रभावित रहता है, वही असली हीरा है। यही बात व्यक्तियों पर भी लागू होती है। जो बदलती परिस्थितियों में भी संतुलन बनाए रखता है, वही व्यक्ति सही मायनों में असली या सच्चे हीरे की तरह है। ऐसे हीरे को कौन सहेजकर नहीं रखना चाहेगा। इसलिए आज से ही अपना आंकलन शुरु कर दें। देखें कि कहीं परिस्थितियाँ आपके संकल्पों को प्रभावित तो नहीं कर रहीं। यदि कर रही हैं तो उन पर विराम लगाएँ, क्योंकि आपको नकली हीरा साबित नहीं होना है। आपको बनना है सच्चा हीरा। इसलिए आज का मंत्र यह है कि "बदलती परिस्थितियों से अप्रभावित रहोगे तो बनोगे सच्चे हीरे।' तो जल्द से जल्द  सच्चा हीरा बनें और फिर कॅरियर की चिंता ज़्यादा न करें, क्योंकि संस्था में बैठे हैं पारखी दृष्टि रखने वाले हीरे के कद्रदान। वे आपको परख ही लेंगे।

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