Wednesday, March 23, 2016

वारिस होना ही गद्दी के लिए काफी नहीं


   अनाज के एक व्यापारी से एक दिन उसका बेटा बोला-पिताजी, मैं अब व्यवसाय में आपका हाथ बँटाना चाहता हूँ। व्यापारी बोला- ठीक है। कल से दुकान पर आ जाना। अगले दिन से वह तैयार होकर दुकान पर जाने लगा। व्यापारी उससे छोटे-मोटे सभी काम करवाने लगा। बेटे को यह ठीक नहीं लगता था। वह चाहता था कि उसे कोई बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाए। उसने इस बारे में कई बार अपने पिता से कहा लेकिन व्यापारी हर बार टालता जा रहा था। एक दिन व्यापारी कहीं गया हुआ था कि लड़का जाकर उसकी गद्दी पर बैठ गया और नौकर से बोला- मेरे लिए पानी लाओ। चूँकि मालिक का लड़का था, इसलिए नौकर भाग कर पानी ले आया। तभी व्यापारी दुकान पर आ गया। इसके पहले कि नौकर पानी का गिलास उसके बेटे को देता, व्यापारी उसे रोकते हुये बोला- ठहरो, यह पानी का गिलास वापस ले जाओ। जब नौकर चला गया तो वह मुनीम से बोला-मुनीमजी इसे यहां बैठने की इजाजत किसने दी? मुनीमजी- भैयाजी सीधे आकर बैठ गए। व्यापारी- तो आप यहाँ क्या कर रहें थे? कल से कोई भी यहाँ आकर बैठ जायेगा और आप ऐसे ही देखते रहेंगे? मुनीम- मालिक भैयाजी की बात अलग है। ये तो इस गद्दी के वारिस हैं। व्यापारी- नही मुनीम जी, ये वारिस हो सकते है। लेकिन गद्दी पर बैठने के अधिकारी नहीं। इसके लिए पहले इन्हे खुद को साबित करके दिखाना होगा। तब तक व्यापारी का बेटा गद्दी से उतर चुका था। वह अपने पिता से बोला-पिताजी मै इतने दिनों से दुकान पर आ रहा हूँ। आप जो भी काम मुझसे करवाते हैं, वह मै सफलता पूर्वक करता हूँ। और मुझे क्या साबित करना होगा? मै अब कोई भी बड़ी जिम्मेदारी उठा सकता हूँ, लेकिन आप मौका ही नहीं देते।
     व्यापारी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और वह अपनी गद्दी पर बैठ गया। शाम को व्यापारी अपनी गद्दी से उठा और बेटे से बोला- चलो तुम्हें घुमाकर लाऊँ। दोनो साथ साथ घूमने निकल पडे़। बेटे के दिमाग में अब भी सुबह वाली घटना घूूम रही थी। वह कुछ बोल नही रहा था। चलते-चलते वे एक कुम्हार के घर पहुँचे। कुम्हार उस समय बर्तनो को आग में पका रहा था। आग धीरे धीरे सुलग रही थी। व्यापारी उससे बोला-अरे, तुम आग तेज क्यों नहीं करते। इससे तुम्हारे बर्तन जल्दी पक जायेंगे। कुम्हार बोला-नहीं लालाजी, आग तेज कर दी तो बर्तन चटक जायेंगे। इसलिए इन्हें धीरे-धीरे ही पकाया जाता है। धीमी आँच से ही इनमें चमक भी आ जाती है, वरना जलने जैसा निशान पड़ जाता है। इस पर व्यापारी अपने बेटे से बोला-बेटा जिस गद्दी पर तुम बैठना चाहते हो, उस पर बैठने से पहले तुम्हे भी इस मिट्टी के बर्तनो की तरह पकना होगा। जल्दबाजी करोगे तो उसी तरह चटक जाओगे जैसे तेज आंच में मिट्टी के बर्तन चटक जाते हैं। बेटे को बात समझ में आ गई और उसकी उदासी जाती रही। इसके बाद दोनों खुशी खुशी लौट आए।
     क्या बात है! उस व्यापारी ने अपने बेटे को कितने सही तरीके से अपने मन की बात समझा दी। निश्चित ही वह एक दिन उसका नाम रोशन करेगा, क्योंकि वह सीधे "बड़े बाप की औलाद' की तरह गद्दी पर नहीं बैठेगा। वह पहले हर स्तर के व्यक्ति के साथ काम करके अपने व्यवसाय की बारीकियों को समझेगा। अभी तो उसे अनुभवों की अग्नि में पकना है। कहते है ना कि आग में तपकर ही सोना कुन्दन बनता है। जब वह खुद संघर्ष करेगा तो समझेगा कि व्यवसाय कैसे चलता है। तभी वह जिम्मेदारीयों का भार कुशलता पूर्वक उठा पायेगा। इसलिए आप भी अपने बेटे को अपने व्यवसाय में भागीदार बनाने जा रहें हैं तो पहले उसे अपने व्यवसाय से संबंधित बारीकियों और ज़मीनी अनुभवों से गुजरने दें। उसे तपाएँ और इस काबिल बनाएँ कि वह अपनी जिम्मेदारीयों को समझ सके और उनका भार कुशलतापूर्वक उठा पाएगा। वरना यदि आपने उस पर एकदम जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया तो अनुभव हीनता के चलते वह उन्हे सह नही पायेगा और असफल हो जायेगा। हम जानते है कि आप निश्चित ही ऐसा नहीं चाहेंगे। तो फिर देर किस बात की? आज से ही आप भी तपाना शुरू कर दें अपनी गद्दी के वारिस को।

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