Wednesday, March 2, 2016

करोगे मिथ्या अभिमान तो चला जाएगा मान


     गोकुल में इंद्राज यज्ञ की तैयारियों को देखकर कृष्ण ने नंद बाबा से इंद्र की ही पूजा किए जाने का कारण पूछा। नंद बाबा बोले- बेटा, इंद्र मेघों के स्वामी हैं। वे वर्षा कर सभी को तृप्त करते हैं। उन्हीं की वजह से खेती आदि के हमारे प्रयत्न सफल होते हैं। इसलिए यज्ञ कर हम उन्हें प्रसन्न करते हैं। इस पर कृष्ण बोले-बाबा, व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही फल मिलते हैं, न कि किसी की पूजा-उपासना से। यदि पूजन करना ही है तो हम गोवर्धन पर्वत का करें, क्योंकि हम बनवासी हैं और हमारा भरण-पोषण वनों के माध्यम से ही होता है। कृष्ण की बात सभी को जंच गई और अन्नकूट बनाकर गोवर्धन की पूजा की गई। यह बात जब इंद्र को पता चली तो उनकी त्यौरियाँ चढ़ गर्इं। इंद्र को अपने पद का बड़ा घमंड हो गया था। उन्हें लगने लगा था कि मैं ही सर्वशक्तिशाली हूँ और सबका पालनहार हूँ। कृष्ण ने इंद्र के इसी अहंकार को दूर करने के लिए उनकी पूजा बंद कराई थी।
     तिलमिलाए इंद्र ने अपने प्रलयकारी मेघों को आदेश दिया कि गोकुल जाकर सभी कुछ बहा दो। इस पर मेघ व्रजभूमि में जाकर मूसलधार बारिश करने लगे। इससे बाढ़ की स्थिति बन गई। भयभीत लोग कृष्ण के पास पहुंचे। कृष्ण ने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में जाने को कहा। कृष्ण ने वहाँ जाकर अपनी किनिष्ठा उंगली पर गोवर्धन को उठा लिया। सभी लोग पर्वत के नीचे आकर बैठ गए। तब मेघों ने और तेज़ बरसना शुरू कर दिया लेकिन उनकी एक न चली। अंततः सात दिनों बाद इंद्र ने हार मान ली और मेघों को थमने का आदेश दिया। जल्दी ही सारे बादल छँट गए। कृष्ण ने सभी लोगों को बाहर निकलने को कहा। इसके बाद उन्होने पर्वत को अपने स्थान पर रख दिया। तभी इंद्र वहां आए और अपनी मूर्खता के लिए क्षमा याचना करने लगे।
     दोस्तो, इसीलिए कहते हैं कि व्यक्ति को कभी अपने पद और शक्तियों का घमंण्ड नहीं करना चाहिए क्योंकि जिन पद और शक्तियों को हासिल करके आप यह सोचते हैं कि अब सब कुछ आपके हिसाब से होगा, तो ऐसा नहीं होता। यह मिथ्या बातें हैं। इसीलिए पद और शक्तियों के अभिमान को मिथ्या अभिमान की संज्ञा दी गई है। यह अभिमान एक न एक दिन व्यक्ति के मान-मर्दन का कारण बनता ही है, जैसे कि इंद्र के लिए बना। इंद्र की ही तरह उच्च पद पर बैठे बहुत से लोगों को यह अहं हो जाता है कि सारी संस्था उनकी वजह से चल रही है, आगे बढ़ रही है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इनके पद के कारण लोगों से मिलने वाले सम्मान से इनका दिमाग खराब हो जाता है। ऐसे में "कर्म ही पूजा है' को मानने वाला कोई व्यक्ति जब इनके दरबार में हाज़िर होने की बजाय अपने काम से अपने आपको साबित करने की कोशिश करता है तो ऐसे लोग उससे चिढ़कर उसका नुकसान करने का प्रयास करने लगते हैं। ये भूल जाते हैं कि जो काम करता है, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। ऐसे में उस व्यक्ति का तो कुछ नहीं बिगड़ता, अभिमानी को ज़रूर अपने किए के लिए नीचा देखना पड़ता है।
     दूसरी ओर, लोग व्यक्ति की नहीं कुर्सी की पूजा करते हैं। इसलिए किसी कुर्सी पर बैठकर यह मत सोचो कि अब आप सब कुछ कर सकते हैं, आप नहीं करेंगे तो कोई नहीं कर पाएगा, यह सोच गलत है। इंद्र यही सोचते थे कि वर्षा उनकी वजह से होती है, क्योंकि मेघ उनके अधीनस्थ थे। लेकिन शास्त्रों में ऐसे अनेक उल्लेख हैं जब इंद्र को अपना आसन खोना पड़ा। लेकिन ऐसे में बारिश होना बंद नहीं हो गई थी। तब मेघ उसके अधीन आ गए जो उस समय सिंहासन पर था। फिर भले ही वह महिषासुर जैसा असुर ही क्यों न हो। इसलिए अपने पद के मद में ऐसा कुछ न करें, जिसका परिणाम आपको भुगतना पड़े।    

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