Friday, March 18, 2016

डसना नहीं पर फुंफकारना अवश्य

एक गाँव में एक बहुत ही पुराने बरगद के पेड़ के नीचे बने बिल में एक काला नाग रहता था। उसके भय से लोग वहाँ से गुजरने में डरते थे। एक बार एक साधु को उस रास्ते पर जाते देख गाँव के बच्चे चिल्लाए- महाराज, उधर से मत जाओ। बरगद के नीचे भयंकर साँप रहता है। वह आपको डंस लेगा। इस पर साधु बोला-परेशान मत हो मेरे बच्चो! वह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। जब साधु बरगद के नीचे पहुँचा तो आहट सुनकर नाग अपने बिल से बाहर आ गया। साधु को देखकर उसने अपना फन फैलाया और फुँफकारता हुआ उसकी ओर बढ़ा। इतने में साधु की दृष्टि उस पर पड़ी तो वह आशीर्वाद का हाथ उठाकर शांत भाव से उसकी और देखने लगा। साधु के चेहरे के भाव और निर्भयता देखकर नाग को तो जैसे सांप सूँघ गया। ऐसा उसके साथ पहली बार हुआ था। वह साधु के पैरों में झुक गया।
     साधु बोला-हे नागदेव! तुम लोगों को नुकसान क्यों पहुँचाते हो? तुम्हें शांति व प्रेम से रहना चाहिए। नाग बोला-स्वामी जी, चाहता तो मैं भी हूँ, लेकिन अपनी प्रवृत्ति के कारण ऐसा नहीं कर पाता। इसे कैसे बदलूँ। इस पर साधु ने उसे एक गुरुमंत्र दिया और कहा-इस मंत्र का जाप करो। किसी को काटना मत। नाग-मैं वैसा ही करूँगा जैसा आपने कहा है। इसके बाद नाग सात्विक जीवन जीने लगा। अकसर वह बिल के बाहर शांत पड़े रहकर मंत्र का जाप करता रहता। इसी स्थिति में गाँव के बच्चों ने जब एक बार उसे देखा तो वे उसे मरा समझकर उसके पास पहुंचे। तभी नाग हिला। इस पर एक बच्चा चिल्लाया-देखो, वह हिला। शायद बीमार होगा। अच्छा मौका है। हम इसे मार देते हैं। और बच्चों ने उस पर पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। लेकिन नाग चोट खाकर भी चुपचाप पड़ा रहा। थोड़ी देर बाद बच्चे वहाँ से चले गए। अगले दिन सुबह साधु वहां से गुजरा। नाग की हालत देखकर वह हैरान रह गया। उसने नाग से इसका कारण पूछा तो उसने सारी बात बतला दी। इस पर साधु बोला- पुत्र! मैं खुश हूँ कि तुमने अपनी प्रवृत्ति बदल ली। लेकिन मैने तुम्हें काटने के लिए मना किया था, फुँफकारने के लिए नहीं। यदि तुम फुँफकारने लगोगे तो कोई तुम्हारे पास नहीं फटकेगा। इसके बाद उस नाग ने फुँफकारना शुरू कर दिया और शांतिपूर्वक रहने लगा।
     दोस्तों, उस साधु की सलाह उन लोगों को भी मानना चाहिए जो बहुत ही क्रोधी होते हैं। क्रोध आने पर उस पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से जो हाथ आता है, उसे उठाकर सामने वाले को मार देते हैं। फिर भले ही इससे उसे गहरी चोट क्यों न लग जाए। उनका यह हमला कई बार जानलेवा भी साबित हो जाता है, जबकि उनका उद्देश्य ऐसा कुछ नहीं होता। ऐसे क्रोध पर काबू पाना बहुत ज़रूरी है। हम यह नहीं कहते कि क्रोध बिलकुल ही न करें। करें, लेकिन ऐसा जो आवश्यक और नियंत्रित हो। यानी काटें नहीं, सिर्फ फुँफकारें। ऐसी ही फुँफकार हर उस अफसर को भी मारते रहना चाहिए जो बहुत ही व्यवहारकुशल होने की वजह से अपने मातहतों पर ज्यादा गुस्सा नहीं करता। तब मातहत उसे कमजोर समझकर उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करने लगते हैं। ऐसे में उसे फुँफकारना ज़रूरी हो जाता है, ताकि  उसकी विनम्रता को कमज़ोरी न समझा जाए और कोई उसका नाज़ायज फायदा न उठाए।

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