Wednesday, March 16, 2016

जिसके कारण फलो-फूलो, उसे कभी न भूलो


     एक बार असुरों से पराजित होकर देवताओं ने ईश्वर से याचना की। इस पर ईश्वर ने उन्हें दिव्य शक्तियाँ दीं जिनके बल पर उन्होने दानवों को हरा दिया। जीत के नशे में चूर देवता खुद को परम शक्तिशाली समझने लगे और यह भूल गए कि उनकी जीत में किसी और का हाथ है। उनका अहंकार दूर करने के लिए एक दिन ईश्वर विशाल यक्ष के रूप में उनके सामने प्रकट हुए।
     इंद्र ने अग्निदेव को यक्ष का परिचय जानने भेजा। यक्ष ने उलटे उन्हीं से परिचय पूछ लिया। इस पर अग्नि हैरान रह गए, क्योंकि उन्हें लगता था कि उन्हें किसी को अपना परिचय देने की ज़रूरत नहीं। वे बोले-अरे! आप मुझ महान अग्निको नहीं जानते? मैं संसार की हर वस्तु को जलाकर राख कर सकता हूँ। यक्ष ने कहा-अच्छा, तो क्या आप इस तिनके को भी भस्म कर सकते हैं? ऐसा कहकर उन्होने एक छोटा-सा तिनका अग्नि के सामने रख दिया। अग्नि ने उस तिनके को जलाने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा दी, लेकिन तिनका नहीं जला, क्योंकि ईश्वर ने उनकी शक्ति जो छीन ली थी। वे सिर झुकाकर इंद्र के पास लौट गए। उनकी बात सुनकर सभी देवता हैरान रह गए। इसके बाद इंद्र ने वायु को भेजा। वे यक्ष से बोले- मैं दुनियाँ की सभी वस्तुओं को उड़ा सकता हूँ। लेकिन वे भी तिनके को नहीं उड़ा पाए और चुपचाप लौट आए। दोनों के असफल होकर लौटने पर इंद्र स्वयं उस यक्ष के बारे में जानने पहुँचे। लेकिन तब तक यक्ष अंतध्र्यान हो गया। इंद्र हैरानी से इधर-उधर देखने लगे। तभी आत्मज्ञान की देवी उमा वहाँ प्रकट हुर्इं। इंद्र ने उनसे यक्ष के बारे में पूछा। वे बोलीं-इंद्र, अपनी जीत के दंभ में तुम यह भूल गए कि यह जीत तुम्हें किसके बल पर मिली। तुम सबको सबक सिखाने के लिए ही ईश्वर यक्ष रूप में आए थे, लेकिन तुम उन्हें पहचान नहीं पाए। इस पर सभी देवताओं को अपनी गलती का अहसास हो गया और उनका अंहकार जाता रहा।
     दोस्तो, कहा गया है कि जिसकी वजह से फलो-फूलो, उसे कभी न भूलो। जिसने आपको महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी, उन्हें निभाने के लिए शक्तियाँ दीं, जिसके बल पर आप सफलता की ऊँचाइयों पर पहुंचे और अपनी झाँकी जमाई यदि आप उसी व्यक्ति को भूल जाएँगे तो कैसे काम चलेगा। आप इस सफलता को सिर्फ अपनी ही सफलता समझ लें, तो यह तो गलत हुआ न। तब तो आपके साथ भी वही होगा जो देवताओं के साथ हुआ। यानी शक्ति देने वाला आगे बढ़कर आपको इस बात का अहसास करा ही देगा कि असलियत में सारा खेल किसका है।
     ऐसा कई बार होता है कि किसी संस्था के प्रबंधन को अपने किसी कर्मचारी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस बात का अहसास कराना पड़ता है कि उसे किसी कार्य विशेष में सफलता अकेले के दम पर नहीं मिली है। इसमें उससे जुड़े संस्था के सभी लोगों का योगदान है। लेकिन कुछ लोग हर सफलता को सिर्फ अपनी सफलता मानते हैं। और तो और, वे तो प्रबंधन को भी भूल जाते हैं। सोचें कि क्या किसी संस्था में कोई व्यक्ति बना मैनेजमेंट की सहमति के अपने दम पर कोई बड़ा काम करके दिखा सकता है? नहीं ना। तो फिर कोई यह मुगालता क्यों पालें कि सब कुछ उसकी वजह से है।
     यहाँ हम यह नहीं कहते कि किसी व्यक्ति विशेष का किसी संस्था की प्रगति में कोई योगदान नहीं होता। ऐसा कहना भी गलत होगा। लेकिन यदि आप यह सोचने लगें कि किसी काम को करने की योग्यता और क्षमता केवल आप में ही है, आपके अलावा कोई दूसरा यह काम नहीं कर सकता और आपका कोई विकल्प हो ही नहीं सकता, तो यह आपके दंभ के सिवाय कुछ नहीं। और यह दंभ कोई भी मैनेजमेंट पसंद नहीं करता। इसलिए याद रखिए, मालिक का मालिक कोई नहीं होता। मालिक को हमेशा मालिक की तरह ही इज्ज़त दें। और अपने काम को विनम्रता से करते रहें, तभी आपको आपके योगदान का श्रेय मिलेगा, मिलता रहेगा। लेकिन यदि आप श्रेय देने वाले को ही श्रेय देने के काबिल नहीं समझेंगे तो फिर वह आपकी ऐसी स्थिति कर देगा कि आप अपनी मर्ज़ी से एक तिनका भी नहीं सरका पाएँगे।
     अंत में, बड़ों की तो छोड़ें कभी किसी तिनके को भी न भूलें, क्योंकि ज़रूरत के समय वह भी बड़े काम आता है। वो कहते हैं न कि डूबते को तिनके का सहारा। ठीक है न।

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