Tuesday, March 15, 2016

सिर्फ करने के लिए न करें कोई काम


     एक बादशाह को टहलने का बड़ा शौक था। एक बार वह टहलते हुए काफी दूर निकल गया। इस बीच नमाज़ का समय हो गया। बादशाह ने रास्ते के एक ओर कपड़ा बिछाकर नमाज़ अदा करना शुरु कर दिया। तभी वहाँ से बौखलाई हुई एक महिला गुज़री। वह अपने पति को खोज रही थी, जो दो दिन से घर नहीं लौटा था। किसी अनर्थ की आशंका से ग्रस्त उस महिला की आँखें सिर्फ अपने पति की खोज में थीं। इस कारण उसे यह दिखाई नहीं दिया कि कोई व्यक्ति वहाँ कपड़ा बिछाकर नमाज़ अदा कर रहा है और वह कपड़े पर पैर रखते हुए आगे बढ़ गई। उसकी इस गुस्ताखी से बादशाह तिलमिला उठा, लेकिन वह नमाज़ अदा कर रहा था इसलिए चुप रहा।
     कुछ समय बाद वह महिला उसी रास्ते से लौटी। उसके साथ उसका पति भी था। वह बहुत खुश नज़र आ रही थी। उसे देखकर बादशाह बोला- "ऐ गुस्ताख, तूने मेरे जाए-नमाज़ पर पाँव रखने की हिमाकत कैसे की? मैं नमाज़ कर रहा था। क्या तुझे यह सब दिखाई नहीं दिया? महिला बोली- "ऐ हुज़ूर! मैं तो अपने पति की खोज में खोई थी। उस समय मुझे न तो कुछ सूझ रहा था, न दिख रहा था। परंतु आप भी तो खुदा की इबादत में खोए थे, फिर आपने मुझे देखकर कैसे पहचान लिया कि मैं ही वह स्त्री हूँ, जिसने कपड़े पर पाँव रखा था? लगता है, आप करना है, इसलिए नमाज़ करते हैं, खुदा के प्रेम में खोकर नहीं।'
     भई वाह, क्या बात है। उस महिला की बात को सुनकर निश्चित ही बादशाह अवाक् रह गया होगा। वह कह भी क्या सकता था। सच ही तो कहा उस महिला ने। उसने बता दिया कि नमाज कैसे अदा करनी चाहिए। साथ ही यह भी कि सिर्फ नमाज़ पढ़ने से या भजन करने से ईश्वर नहीं मिलता। ईश्वर तभी मिलता है जब आप उसके प्रेम में खो जाते हैं। फिर आपको यह ध्यान नहीं रहना चाहिए कि कौन आया, कौन गया, कौन क्या कह रहा है, कौन क्या सुन रहा है। आप तो बस मगन हैं प्रभु भक्ति में। लेकिन अधिकतर लोग प्रभु भक्ति उस बादशाह की तरह ही करते हैं और शिकायत करते हैं कि न जाने क्यों ईश्वर मेहरबान ही नहीं होता। अब सिर्फ करने के लिए भजन करोगे तो ऐसा ही होगा न भाई!
     वैसे यह बात कार्यक्षेत्र में भी लागू होती है। अधिकतर लोग किसी भी काम को सिर्फ इसलिए करते हैं कि उन्हें वह काम करना है। और काम पूरा होने के बाद जब मनचाहे परिणाम नहीं मिलते तो फिर दूसरों को कोसते हैं। खुद भी परेशान होते हैं और दूसरों को भी करते हैं। अब सिर्फ करने के लिए ही करोगे काम तो कैसे बनेगा काम और कैसे मिलेगें अच्छे दाम। यानी जो काम पूरी शिद्दत से , पूरी लगन से नहीं किया जाता, तो उसमें कोई न कोई कमी रह ही जाती है। जब कमी रह जाती है तो फिर उसके नतीज़े भी उतने बेहतर नहीं होते जितने आपने सोच रखे थे। इसलिए काम को करो तो फिर मन लगाकर करो। मन तभी लगेगा, जब आप सोचोगे कि यह आपका अपना काम है। अपनेपन की भावना से किया गया काम बेहतर परिणाम न दे, ऐसा हो ही नहीं सकता। तब यदि काम में चूक हो जाए या कोई कमी भी रह जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि आपकी भावना सभी को दिखाई देती है। वह किसी से छिपती नहीं है। यही कारण है कि कई बार भारी गलती हो जाने पर भी अधिकारी ऐसे कर्मचारी को माफ कर देता है जो मन लगाकर काम करता है, जबकि छोटी-मोटी गलती करने पर भी ऐसा कर्मचारी बलि चढ़ जाता है जो सिर्फ करने के लिए काम को करता है। इसलिए कभी किसी काम को टालू अंदाज़ में अंजाम न दें। यह सोचकर काम शुरू न करें कि काम पूरा हो जाए और आप गंगा नहाए। ऐसे में आप गंगा में तो नहीं नहाएँगे, हाँ, अपने ही आँसुओं में आपको ज़रूर नहाना पड़ सकता है।
     दूसरी ओर, कई बार हमें ज़िंदगी में ऐसा काम करना पड़ता है, जो हमें पसंद नहीं होता। ऐसी स्थिति में भी यदि हमने उस काम को करना स्वीकार कर लिया है, तो फिर वह पसंद का हो या नहीं, हमें उस काम को पूरी तरह मन लगाकर करना चाहिए। क्योंकि यदि आपको वह काम पसंद नहीं था तो फिर आपको उसे हाथ में लेना ही नहीं था। और यदि ले लिया है तो फिर उसे पूरा करने में अपनी सारी शक्ति लगा दो। यदि आप ऐसा करेंगे तभी आपकी एक अच्छे कर्मचारी की छवि बनेगी, जिसका सीधा लाभ संस्था के साथ आपको भी मिलेगा।

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