Sunday, March 13, 2016

अगर हो विष का वास तो न करें विश्वास

     एक कुत्ता गन्ने के खेत की रखवाली करता था। एक दिन एक भूखी सेही ने आकर उससे गन्ने खाने की इज़ाज़त माँगी। कुत्ते के मना करने पर वह रोने लगी। इस पर कुत्ते को उस पर दया आ गई। वह बोला-ठीक है, तुम कुछ गन्ने खा सकती हो, लेकिन उनकी जड़ों को नुकसान मत पहुँचाना, नहीं तो दौबारा गन्ने नहीं उगेंगे। जिससे मेरे मालिक का नुकसान होगा। सेही ने वैसा ही किया। उसे गन्ने खाने में बहुत मज़ा आया। उसने कुत्ते से दोस्ती गाँठ ली और रोज़ खेत में आकर गन्ने खाने लगी।
     एक दिन उसने यह सोचकर एक गन्ने की जड़ खा ली कि यह गन्ने से अधिक स्वादिष्ट होगी। उसे वह ज्यादा अच्छी लगी। फिर तो वह चुपके से जड़ भी खाने लगी। इस बीच एक दिन किसान खेत देखने आया तो उसे वह अंदर से कई जगह उजड़ा हुआ नज़र आया। उसने कुत्ते को कड़ी फटकार लगाई। कुत्ते ने सेही को उसके सामने खड़ा कर दिया। इस पर वह बोली-दोषी मैं नहीं, कुत्ता ही है। विश्वास न हो तो मामला अदालत में ले चलो। किसान तैयार हो गया।
     अदालत में सेही ने एक माह बाद सुनवाई का आग्रह किया जिसे जज ने मान लिया। सेही चाहती थी कि जोरदार ठंड पड़ने लगे। तय समय पर सभी अदालत में आए। ठंड के मारे कुत्ता थरथर काँप रहा था, जबकि काँटेदार खोल के कारण सेही सामान्य थी। वह जज से बोली- देखिए हुज़ूर, अपराधी डर से कैसे थरथर कांप रहा है। इस पर जज ने कुत्ते से सफाई माँगी तो वह जबान भी नहीं खोल पाया। उसकी चुप्पी को दोष स्वीकृति मानकर जज ने उसे कड़ा दंड सुना दिया। निर्दोष कुत्ता बेघर होकर गलियों में घूमता और रात में अपनी किस्मत पर रोता। आज भी अफ्रीका में जब कोई कुत्ता रात में रोता है, तो वहां के लोग कहते हैं कि ज़रूर किसी सेही ने गन्ने का खेत खा लिया है और सजा इसे मिली है।
     दोस्तो, इसी को कहते हैं करे कोई और भरे कोई। यानी जुर्म किसी ने किया और सजा कोई भुगते। बेचारा कुत्ता भलाई करने चला था और उसे ही भुगतना पड़ गया। इसीलिए कभी भी किसी से दोस्ती गाँठने से पहले देख लें कि वह आपकी दोस्ती के काबिल है या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि वह अपने किसी फायदे के लिए आपसे दोस्ती बढ़ा रहा है। वह आपकी आँखों में धूल झोंककर या अपनी बातों में लगाकर आपसे कोई फायदा उठा रहा हो और आप अनभिज्ञ हों। इस तरह के मामलों में जब भेद खुलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और आप ठगे से रह जाते हैं। कोई कुछ कहे या पूछे तो आपकी जबान नहीं खुलती, क्योंकि उसके झटके ने आपको कँपकँपा दिया होता है, आपकी भावनाओं को इस तरह से कुचला होता है कि आप उससे उबरने में कठिनाई महसूस करते हैं। इसलिए ऐसी स्थिति आने से पहले सामने वाले को परख लें कि क्या वाकई वह आपके भरोसे के काबिल है। तभी आप उसे अपने खेत में जाने की इज़ाज़त दें यानी भरोसे का काम सौंपें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो आपको भी रोना पड़ सकता है।
     दूसरी ओर, किसी मामले में किसी को दोषी करार देने से पहले हमें यह देख लेना चाहिए कि सामने वाला कहीं किसी षड¬ंत्र का शिकार तो नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं कि गुनाह किसी और ने किया है और घड़ा उसके माथे फूट रहा है। ऑफिस की चहारदीवारी में ऐसी घटनाएँ आए दिन घटती रहती हैं जब कोई निर्दोष व्यक्ति इसी तरह से किसी दूसरे की गलतियों का खामियाज़ा भुगतता है। इसके साथ ही आपको अपने आसपास उस सेही जैसे बहुत से लोग मिल जाएँगे जो जिस खेत से गन्ना खा रहे हैं यानी जिस संस्था में काम कर रहे हैं उसी का अहित करते हैं। ऊपर से वे संस्था के हितैषी नज़र आते हैं लेकिन अंदर ही अंदर उसकी जड़ों को चट कर रहे होते हैं। जैसे दीमक लकड़ी को ऊपर तो नुकसान नहीं पहुँचाती लेकिन अंदर ही अंदर उसे खोखला कर देती है, वैसे ही ये अपना काम इतनी सफाई से करते हैं कि किसी को इन पर शक ही नहीं होता। इसलिए किसी भी व्यक्ति को विश्वास का काम सौंपने से पहले यह देख लें कि कहीं उसके मन में विष का वास तो नहीं यानी वह धोखेबाज़ तो नहीं। यदि परखने के बाद वह कसौटी पर खरा उतरे, तो ही उसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियाँ सौंपें।

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