Tuesday, March 1, 2016

भूल ना जाना स्वयं को गिनना

     एक गाँव के बारह लोग एक साथ चारधाम यात्रा पर निकले। रास्ते में उन्हें एक नदी मिली। अब समस्या खड़ी हो गई कि नदी को पार कैसे करें, क्योंकि कोई साधन नहीं था। तभी एक व्यक्ति बोला-चलो हम सब एक-दूसरे का हाथ पकड़कर नदी पार कर लेते हैं। इसके बाद सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर आगे बढ़ते गए। बीच में एकाध बार उनका संतुलन भी बिगड़ा, लेकिन वे हर बार संभले और नदी पार कर ली।
     पार पहुँचने के बाद उनमें से एक बोला-चलो अब अपनी गिनती कर लेते हैं, ताकि पता चल जाए कि हममें से कोई नदी में तो नहीं बह गया। इस पर सभी ने हामी भर दी। इसके बाद सभी को एक पंक्ति में बैठाकर उसने गिनना शुरू कर दिया। वह चौंककर बोला-अरे, ये तो ग्यारह ही हैं। एक आदमी कहाँ गया? मुझे दिख तो सभी रहे हैं। ये क्या चक्कर है? कोई और गिनो। और वह दूसरे व्यक्ति को खड़ा कर पंक्ति में बैठ गया। दूसरे ने गिना तो उसकी गिनती भी ग्यारह पर ही अटक गई। इस तरह सभी ने गिनती कर ली, लेकिन गिनती में आए ग्यारह ही। फिर क्या था, सभी लगे रोने कि उनका एक साथी नदी में बह गया।
     तभी वहाँ ले गुज़र रहे एक यात्री ने उनसे रोने का कारण पूछा। इस पर उन्होने कारण बताया। यात्री समझ गया कि सभी ने अपने आपको छोड़कर बाकी को गिन लिया होगा। वह बोला-यदि मैं तुम्हारे बारहवें साथी को वापस ला दूँ तो तुम मुझे क्या दोगे? वे सब बोले- हम तुम्हें देवता मान लेंगे। इसके बाद उसने सभी को बैठाकर कहा कि मैं सभी के मुँह पर एक-एक चाँटा लगाऊँगा। सब बढ़ते क्रम में गिनती बोलना। सभी राजी हो गए और उसने चपत लगाना शूरु कर दिया और बारह के बारह गिन डाले। सभी उस यात्री को चमत्कारी मानकर उसके पैरों में गिर पड़े।
     दोस्तो, यही होता है खुद को न गिनने का परिणाम। जो खुद को नहीं गिनता उसे रोना ही पड़ता है। क्योंकि जब आप खुद को गिनेंगे नहीं, तो अपने आपमें सुधार कैसे कर पाएँगे। फिर तो आप जैसे हैं, वैसे ही रह जाएँगे। आपकी कमियाँ, कमजोरियाँ सब आपके अंदर बनी रहेंगी। आपकी खूबियाँ शक्तियाँ उजागर नहीं हो पाएँगी। वे दबी ही रह जाएँगी। तब ऐसे में आपके आगे बढ़ने के, कामयाबी हासिल करने के ख्वाब सिर्फ ख्वाब ही रह जाएँगे। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आप भी गिनती में आएँ, तो आपको पहले खुद को गिनना पड़ेगा।
     दूसरी ओर, कुछ लोगों की आदत होती है कि उनका ध्यान हमेशा दूसरों में ही अटका रहता है कि दूसरे क्या गलत कर रहे हैं। वैसे ऐसा अकसर हम सभी के साथ होता है। हम चाहते हैं कि दूसरे खुद को सुधारें। वे जो करें, अच्छा करें। लेकिन हम खुद को सुधारना नहीं चाहते। इसका कारण यह है कि हमारा अपनी गलतियों की ओर ध्यान ही नहीं जाता और न ही हमें इससे मतलब होता है। यह गलत है। यदि आप सामने वाले को सुधारना चाहते हैं तो ज़रूरी है कि पहले खुद को सुधारें। क्योंकि अधिकतर होता यह है कि हम खुद गलत होने के बावजूद दूसरे को गलत समझते रहते हैं। यहाँ भी वही खुद को न गिनने वाली प्रवृत्ति ही काम करती है।
     वैसे खुद की गिनती न करने के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह भी होता है कि हम गलतफहमी में, रहते-जीते हैं कि हम खुद को अच्छी तरह जानते हैं। हमारे अन्दर यह भाव काम करता है कि खुद को भी कोई भूलता है भला। कहते हैं याद उन्हे किया जाता है जिन्हें भूल जाते हैं। हम खुद को यही सोचकर याद नही करते। जबकि हम दुनियाँदारी में फँसकर वाकई में स्वयं से अपरिचित से हो गए हैं। हमे बाकी सब तो याद रहता है, लेकिन हमारी याददास्त अपने बारे कम हो गई है। अधिकतर असफल लोग इसी कारण गिनती से बाहर हो गए हैं। साथ ही छोटी मोटी कामयाबी हासिल करने वाले सिर्फ यह सोचकर चुप बैठ गए कि अब तो वे गिनती में आ गए हैं। अब उन्हें कुछ करने की क्या जरूरत। और इस तरह वे किसी बड़े मुकाम तक नहीं पहुँच पाए।
     यानी कुल मिलाकर गिनती में आने के लिए पहले खुद को गिनो यानी खुद को पहचानो। अपनी कमजोरियों पर काबू पाओ, खूबियों को तराशो और फिर गिन-गिन कर कदम आगे बढाओ। यदि आप ऐसा करेंगे तो सभी की गिनती आपसे ही शुरू होगी।

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