Friday, February 5, 2016

छोटों की सलाह को कभी न समझें छोटा


    एक पंडित अपने शिष्य के साथ जंगल से गुज़र रहा था कि अचानक डाकुओं ने उन्हें पकड़ लिया। उन्होने पंडित को एक पेड़ से बाँध दिया और शिष्य को घर से फिरौती की रकम लाने को कहा। जाने से पहले शिष्य पंडित के पास जाकर धीरे से बोला-"गुरु जी! मैं जल्द ही वापस लौटूँगा। आप गलती से भी इन्हें अपनी योग्यता के बारे में मत बता देना। दरअसल वह पंडित वैदर्भ मंत्र का ज्ञाता था। इस मंत्र का ग्रह-नक्षत्रों की विशेष युति में जप करने पर आसमान से रत्नों की बारिश होने लगती है।
    शिष्य चला गया। इधर पेड़ से बँधे पंडित की हालत धीरे-धीरे बिगड़ने लगी। अचानक उसकी नज़र आकाश में पड़ी। तारों को देखकर वह जान गया कि वह शुभ घड़ी आ रही है, जब वह वैदर्भ मंत्र का प्रयोग कर सकता है। उसने यह बात डाकुओं को यह सोचकर बता दी कि वे खुश होकर उसे छोड़ देंगे। सरदार ने उसे मंत्र का जप करने की इज़ाज़ दे दी। पंडित पास ही की नदी में नहा-धोकर मंत्र का जप करने लगा। जब पूर्ण होते ही आसमान से रत्नों की बारिश होने लगी सभी डकैत रत्नों पर झपट पड़े। तभी वहाँ डाकुओं के दूसरे गिरोह ने हमला कर सभी को पकड़ लिया। पहले गिरोह का सरदार बोला- "हम तो भाई-भाई हैं। हमें क्यों पकड़ते हो। ये रत्न तो हमें इस पंडित की वजह से प्राप्त हुए हैं। तुम भी इसके माध्यम से ढेरों रत्न प्राप्त कर सकते हो।' दूसरे सरदार ने पहले सरदार की बात पर विश्वास कर पंडित को छोड़कर सभी को मुक्त कर दिया। इसके बाद उसने पंडित से रत्नों की बारिश करने को कहा। पंडित बोला-"यह विशेष नक्षत्र के उदयकाल में ही संभव है। यह समय अब एक साल बाद ही आएगा।' यह सुनकर सरदार को गुस्सा आ गया। उसे लगा कि उसे मूर्ख बनाया गया है। उसने पंडित की खूब धुनाई की और उठाकर ज़मीन पर पटक दिया। अपने शिष्य की सलाह न मानने का अफसोस करते हुए पंडित ने प्राण त्याग दिए।
     दोस्तो, इसीलिए कहते हैं कि छोटों की सलाह को भी नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, क्योंकि कई बार छोटे भी बड़े पते की बात कहते हैं ऐसी बात जो कि आपके ज़ेहन में आई ही नहीं होगी। ऐसा अकसर होता है कि जो बात आप नहीं सोच पाते वे आपसे छोटे सोच जाते हैं। अब इसमें आप अहंकार के कारण उनकी बात को न मानें या उनका मज़ाक उड़ाएँ तो अंत में आपका ही मज़ाक बन सकता है, क्योंकि उनके कहे अनुसार ही घटना घट गई है या उनकी कही बात सही निकल गई तो नुकसान तो आपका ही होगा। इसलिए कभी यह मत सोचो कि सलाह किसने दी। यह देखो कि जो सलाह दी गई है, वह कितनी सही है। यदि सही सलाह है तो उसे अमल में ले आएँ। यकीन मानिए कई बार छोटों की सलाह से बड़े-बड़े काम बन जाते हैं। यदि आप सोचते हैं कि वरिष्ठ व्यक्ति ही ज़्यादा बुद्धिमान होता है तो यह ज़रूरी नहीं। बुद्धिमत्ता का उम्र से नहीं, दिमाग से संबंध होता है। इसलिए छोटों की सलाह लेने में कभी खुद को छोटा न समझें। यदि आप उनकी बातों का आंकलन करके निर्णय लेंगे तो फायदे में ही रहेंगे।
     दूसरी ओर, कुछ काम ऐसे होते हैं जिनको शुरू करने का एक उचित समय होता है। समय निकलने के बाद उस काम को करने का कोई मतलब नहीं होता। इसलिए यदि आप कुछ करने की सोच रहे हैं तो पहले देख लें कि समय अनुकूल है कि नहीं। यदि है तो फिर हाथ आए अवसर  का लाभ उठाएँ। क्योंकि यदि अवसर निकल गया तो फिर आप चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएँगे। कहते हैं न कि जब हवा अनुकूल हो तभी अपने जहाज़ के पाल खोलना चाहिए। तब उस हवा की सहायता से आप अपने जहाज़ को आसानी से गंतव्य तक ले जा सकते हैं। इसके विपरीत यदि हवा प्रतिकूल होगी तो आपका जहाज़ आगे बढ़ने की अपेक्षा डूब भी सकता है। इसलिए शुभ अवसर आने पर देर नहीं करनी चाहिए। ऐसे में देर घातक ही सिद्ध होती है।

1 comment: