Saturday, February 27, 2016

न जलाएँ दिल किसी के जलते तेल से!


 बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव से बारात दूसरे गाँव को जा रही थी। दूसरा गाँव आने से पहले ही अँधेरा हो गया। अँधेरा होते देख बारात के साथ चल रहे मशालची ने मशाल जला दी और सबसे आगे चलने लगा। जब भी मशाल की रोशनी धीमी होते दिखती तो तेली उसमें तेल डाल देता। वैसे भी उसे दूल्हे के पिता का आदेश था कि रोशनी धीमी पड़ी तो तम्हारे पैसे काट लूँगा। इसलिए तेली का ध्यान हमेशा मशाल पर ही लगा रहता था।
     उधर, मशाल उठाए-उठाए जब मशालची का एक हाथ थक जाता तो वह दूसरे हाथ से मशाल पकड़ लेता था। अंततः बारात दूसरे गाँव पहुँच गई। मशालची ने भी राहत की साँस ली। लेकिन उसकी यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिक पाई। क्योंकि बारात को पहुँचने में पहले ही देर हो चुकी थी और फेरे का मुहूर्त हो चला था। इसलिए बारातियों ने आराम करने की बजाय बारात को लड़की वालों के द्वार पर ले जाना ही मुनासिब समझा और बारात फिर से चल दी। उसके साथ मशालची को भी चलना पड़ा। चलते-चलते वह सोचता जाता कि काश! मशाल का तेल खत्म हो जाए और यह बुझ जाए। इससे मुझे थोड़ी देर के लिए आराम मिल सकता है। लेकिन तेली के रहते ऐसा संभव न था, क्योंकि वह मशाल में तेल डालने का काम बड़ी सतर्कता से कर रहा था। जब भी वह मशाल में तेल डालता, मशालची जल-भुनकर राख हो जाता। वह मन ही मन तेली को खूब कोसता, गालियाँ देता। लेकिन जब उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया तो वह बड़बड़ाने लगा। उसकी बड़बड़ाहट सुन एक बाराती बोला-देखो भाइयो, तेली का तेल जले और मशालची का प्राण जले। अब समझ में आया कि मशाल के साथ मशालची भी जल रहा है, इसीलिए रोशनी दोगुना हो गई है। उसकी बात सुनकर सभी बाराती खिलखिलाकर हँस दिए और मशालची अपना-सा मुँह लेकर रह गया।
      दोस्तो, जानते हैं वह मशालची हँसी का पात्र क्यों बना? क्योंकि वह अपने काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पा रहा था और अपना गुस्सा किसी दूसरे पर उतार रहा था। लेकिन यह तो उसका रोज का काम था और निश्चित ही उसे पहले से पता होगा कि उसे कितनी देर मशाल थामे चलना पड़ सकता है। यदि वह मशालची अपनी थकान भूलकर धैर्यपूर्वक अपने काम को अंजाम देता तो निश्चित ही उसके प्रति बारातियों की सहानुभूति होती। लेकिन वह काम करने के साथ बड़बड़ाता भी जा रहा था, जिससे उसका किया-धरा सब बेकार हो गया। इसलिए कोई भी काम झुँझलाकर न करें। इससे सामने वाले का ध्यान आपके काम की बजाय आपके व्यवहार पर जाता है और जिस काम को आपने मेहनत से पूरा किया होता है, उसका श्रेय आपको नहीं मिल पाता।
     दूसरी ओर, आपको बहुत से लोग ऐसे मिल जाएँगे जो किसी और के द्वारा किए जाने वाले खर्च को देखकर परेशान होते रहते है। यानी गाँठ से किसी का जाता है और दम इनका सूखता है। यदि आप भी दूसरे के तेल को जलते देखकर जलने वाली प्रवृत्ति के हैं तो अपने आपको बदलने की कोशिश करें, क्योंकि इससे सामने वाले का नहीं, आपका ही नुकसान होता है। सामने वाले का तो केवल तेल जल रहा है यानी वह खर्च कर रहा है, लेकिन आप तो खुद को जला रहे हैं। यह जलन तब और बढ़ जाती है जब सामने वाला आपके कहने के बावजूद आपकी बात पर ध्यान न दे। ऐसे में आपको उसकी चिंता करना छोड़ देना चाहिए। लेकिन होता उलटा है। आप यह नहीं समझ पाते कि सामने वाला यदि जानते-बूझते तेल जला रहा है, पैसा फूँक रहा है, तो निश्चित ही इसमें उसका कोई भला छिपा होगा, उसे अधिक लाभ होने वाला होगा जैसे कि तेली को होने वाला था।
     इसी तरह कई बार व्यवसाय को गति देने के लिए किसी व्यवसायी को अधिक धन लगाना पड़ता है। तात्कालिक रूप से यह भले ही किसी को फिजूलखर्ची नज़र आए, लेकिन इसे दूरगामी परिणाम होते हैं। उसने जितना पैसा खर्च किया है, उससे कई गुना वापस मिल जाता है। यह बात खर्च करने वाला व्यक्ति ही जानता-समझता है। ऐसे में आप तनाव में रहें, यह कहाँ तक उचित है। यह तो तब भी जायज़ नहीं, जब सामने वाला वाकई में लुटा रहा हो। ऐसे में आप इतना कर सकते हैं कि उसे एक-दो बार आगाह कर दें। यदि वह तब भी न माने तो उसे भुगतने दें। आप क्यों जलें-भुनें। ठीक है न।

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