Monday, February 8, 2016

अलग हटकर करें, अलग हटाकर नहीं


     एक नगर में धर्मबुद्धि व पापबुद्धि नामक दो मित्र रहते थे। दोनों अपने नाम के अनुसार ही विचार और आचरण वाले थे। एक बार पापबुद्धि ने धर्मबुद्धि से कहा-"मित्र! मैं जीवन में कुछ हटकर करना चाहता हूँ। इसके लिए बहुत से धन की आवश्यकता होगी। क्यों न हम दोनों किसी दूसरे नगर में जाकर धन कमाएँ।' धर्मबुद्धि इसके लिए तैयार हो गया। दोनों धन कमाने दूसरे नगर गए और वहाँ मेहनत करके बहुत धन कमाया। एक दिन दोनों ने अपने नगर लौटने का फैंसला किया।
     लौटते समय रास्ते में पापबुद्धि के मन में पाप उत्पन्न हो गया। उसने सोचा कि ऐसा क्या किया जाए कि यह सारा धन मेरा हो जाए। वह धर्मबुद्धि को रास्ते से हटाने की तरकीब सोचने लगा। वह बोला-" मित्र! नगर में हमेशा धन के चोरी होने का खतरा बना रहेगा, क्यों न हम इस धन को किसी वृक्ष के नीचे गाड़ दें।' धर्मबुद्धि इसके लिए तैयार हो गया। धन को एक वृक्ष के नीचे गाड़कर दोनों चले गए। बाद में पापबुद्धि ने आकर सारा धन निकाल लिया। कुछ दिन बाद वह धर्मबुद्धि के पास जाकर बोला- "मुझे कुछ धन की आवश्यकता है, चलो चलकर निकाल लाएँ।' दोनों वहाँ पहुँचे, लेकिन वहाँ धन होता तो मिलता। इससे पहले कि धर्मबुद्धि कुछ कहता पापबुद्धि ने उस पर ही चोरी का आरोप मढ़ दिया। इससे मामले ने तूल पकड़ लिया और बात न्यायाधीश के पास तक जा पहुँची। न्यायाधीश ने जब दोनों से पूछताछ की तो पता चला कि चोरी का कोई गवाह ही नहीं है। इस पर धर्मबुद्धि बोला- "श्रीमान्! हमने जिस वृक्ष के नीचे धन गाड़ा था, उस पर वन देवता का निवास है। वही गवाही देंगे।' उसकी बात सुनकर पापबुद्धि चकरा गया। उसने सोचा-वृक्ष कैसे गवाही देगा। फिर उसकी बुद्धि तेज़ी से चली। अगले दिन न्यायाधीश के वहाँ पहुँचने से पहले ही उसने वृक्ष की खोह में अपने पिता को समझा-बुझाकर बैठा दिया। न्यायाधीश ने वहाँ पहुँचकर जब पेड़ से चोरी के बारे में पूछा तो वहाँ बैठे पापबुद्धि के पिता ने धर्मबुद्धि को चोरी का दोषी बताया। न्यायाधीश को शक हुआ और उसने उस पेड़ के चारों तरफ आग लगवा दी। कुछ ही देर में आग की लपटों से घिरा पापबुद्धि का पिता चिल्लाता हुआ बाहर निकला। पाप बुद्धि की पोल खुल गई। उसे पकड़कर कारागार में डाल दिया गया। दोस्त को रास्ते से हटाने के चक्र में पापबुद्धि खुद ही रास्ते से हट गया।
     दोस्तो, कहते हैं यदि व्यक्ति को अपनी अलग पहचान बनानी है तो उसे कुछ हटकर  करना चाहिए या यूँ कहें कि कुछ हटकर करने वाले ही अपनी अलग पहचान बना पाते हैं। वो कहते हैं कि धारा के साथ बहने वालों को कोई नहीं पूछता, क्योंकि धारा के साथ बहने में अनोखा क्या है? कोई भी बह सकता है। दुनियाँ में तो वे ही अपना नाम करते हैं या कमाते हैं, जो धारा के विरूद्ध बहते हैं, क्योंकि धारा के विरूद्ध बहना आसान नहीं होता। और जो आसान काम नहीं करता, शान तो उसी की बढ़ती है। यह बात भी सही है कि ऐसा करने वालों को बहुत-सी तकलीफों का सामना करना पड़ता है। लेकिन इन तकलीफों से गुज़रकर जब सफलता आपके हाथ लगती है तो फिर जो रिलीफ मिलता है उसकी तो बात ही क्या। फिर तो आप ही आप होते हैं। सबकी नज़र आप पर होती है। अचानक आप हीरो बन जाते हैं। इसलिए आपको जो काम दिया गया है या आप जो काम कर रहे हैं, उसे परंपरागत तरीके से करने की बजाय कुछ अलग हटकर करके दिखाएँ। यदि आप ऐसा करते हैं तो आपकी भी अपने लोगों के बीच में अलग पहचान बन जाएगी। तो फिर जो करें हटकर करें।
     यहाँ एक बात हम ज़रूर कहना चाहेंगे कि हटकर करने का मतलब यह नहीं है कि आप लोगों को हटाकर सफलता की सोचें। यदि आप अपने साथियों को अलग हटाकर करने की सोचेंगे तो पापबुद्धि की तरह खुद ही हट जाएँगे। यानी सफल नहीं हो पाएँगे और यदि हो भी गए तो कोई पूछने वाला नहीं होगा। ऐसे में कुछ करके भी आप कुछ नहीं कर पाएँगे। कुछ पाकर भी कुछ नहीं पा सकेंगे। इसलिए आज से प्रण करें कि आप हमेशा कुछ अलग हटकर करेंगे, लेकिन किसी को हटाकर नहीं। यदि आप ऐसा करेंगे तभी लोग आपसे सटकर खड़े रहेंगे, हटकर नहीं।

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