Thursday, February 4, 2016

उल्टा चलने वाले को चलाओ उलटा


     शरद पूर्णिमा की कोजागरी कथा से मिलती-जुलती एक कथा है। एक बार एक व्यापारी को बहुत घाटा हुआ। देनदारी चुकाने के लिए उसे अपनी हवेली बेचना पड़ी और उसका परिवार छोटे से मकान में जाकर रहने लगा। व्यापारी की पत्नी इस सबके लिए अपने पति को दोषी मानती थी और गाहे-बगाहे उसे ताने भी मारती रहती थी। इसके चलते वह व्यापारी की कोई भी बात मानना तो दूर जो कुछ वह कहता, उससे बिलकुल उलटा ही करने लगी। उसकी इस आदत से व्यापारी की परेशानी और बढ़ गई। एक तो व्यापार का घाटा और दूसरा पत्नी का व्यवहार। पत्नी के आचरण ने उसे बुरी तरह तोड़ दिया और वह उदास रहने लगा। एक दिन उसका एक अभिन्न मित्र उससे मिलने आया। उसने व्यापारी से उदासी का कारण पूछा। जब उसने मित्र को इसका कारण बताया तो वह बोला-अरे, तुम इतनी-सी बात पर उदास बैठे हो। इसका तो बड़ा ही आसान-सा हल है। जल्दी बता। मित्र ने कहा-तुझे अपनी पत्नी से जो काम करवाना हो, उसे उसका उल्ट करने को कहना। तेरी समस्या हल हो जाएगी। व्यापारी ने ऐसा ही किया। जैसा व्यापारी कहता, विपरीत व्यवहार करने वाली पत्नी उसका उलटा करती। इस प्रकार वह अपनी पत्नी से अपने मनमाफिक काम करवाने लगा।
     दोस्तो, जब काम सीधी तरह से नहीं बनता तो उल्टी तरह से करना ही पड़ता है। आखिर काम तो करना है। ऐसे में कोई उल्टा चल रहा है तो उसकी वजह से काम रोककर, सिर पकड़कर तो नहीं बैठ सकते। तब कोई ऐसा तरीका ढूँढना चाहिए कि वह उल्टी खोपड़ी भी जैसा आप चाहते हैं, वैसा ही काम करने लगे। ऐसे में यदि वह आपके एकदम विपरीत चलता है, जैसा आप कहते है, उसका एकदम उलटा करता है तो आप खुद ही उससे उलटा करने को कहें ताकि वह सीधा काम करे। आप कहेंगे कि यह सब करने की ज़रूरत ही क्या? यदि किसी को हमारा व्यवहार पसंद नहीं है, उसकी हमसे पटती नहीं है तो उसे निकाल बाहर करो। आप सही कहते हैं। लेकिन यह बात किसी अधीनस्थ के लिए नहीं कही जा रही है। अधीनस्थ तो बेचारा ऐसी गुस्ताखी कर ही नहीं सकता। यह बात तो उस स्तर के व्यक्ति के लिए लागू होती है जिसका आप चाहकर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते। क्योंकि या तो वह व्यक्ति आपके समान स्तर का होगा या आपसे ऊँचे पद का यानी आपका बॉस या मालिक होगा। अब यदि ऐसा कोई व्यक्ति आपकी बात मानने को तैयार नहीं है तो आपको उल्टे तरीके से ही अपनी बात मनवानी पड़ेगी न। यदि आपको लगता है कि कुछ गलत हो रहा है तो आपको उसे सही बताना होगा जिससे ये उसे गलत करार दें। इससे आपका भी काम बन जाएगा और संस्था का भी भला होगा। हालांकि यह तरीका ठीक नहीं है लेकिन जब सीधी अँगुली से घी न निकले तो अँगुली टेड़ी करनी ही पड़ती है। नीति भी इसका विरोध नहीं करती बशर्ते आप सत्य की राह पर हों। यदि आप इस मंत्र का प्रयोग गलत उद्देश्य के लिए करेंगे तो आपको परिणाम भी भुगतने पड़ेंगे।

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