Wednesday, February 3, 2016

घृत पीकर व्रत रखने से नहीं होता फायदा


     राजा रंतिदेव के पास से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं लौटता था। एक बार देवताओं ने उनकी परीक्षा लेने का विचार किया। उस समय उनके राज्य में भयंकर सूखा पड़ा था। उन्होने अड़तालीस दिनों का कठोर उपवास किया। उपवास समाप्ति के दिन जब वे प्रसाद ग्रहण करने ही जा रहे थे कि एक ब्रााहृण उनके पास आया। उसने उनसे भोजन माँगा। उन्होने तुरंत भोजन का आधा हिस्सा उसे दे दिया। वह भोजन लेकर चला गया। इसके बाद रंतिदेव ने अपने हिस्से से कौर तोड़ा ही था कि एक किसान वहाँ आ गया। वह भी भूखा था। राजा ने बचे हुए भोजन का आधा हिस्सा उसे दे दिया। वह गया ही था कि एक व्यक्ति अपने कुत्तों के साथ आया और उनसे बोला- "राजन्! बड़ी कृपा होगी यदि खाने को कुछ मिल जाए।' राजा ने बचा हुआ सारा भोजन उसे दे दिया। सारा भोजन समाप्त होने के बाद भी रंतिदेव के चेहरे पर असीम शांति थी। अब उनके पास जल ही शेष था। उन्होने जल पीकर ही पारायण का विचार किया। लेकिन उनके पानी पीने से पहले ही एक चांडाल वहाँ आ गया। वह बहुत प्यासा था, उसने उनसे पानी माँगा। राजा ने बिना झिझके पानी का पात्र उसकी ओर बढ़ा दिया। इस पर वह बोला" आपका पात्र अपवित्र हो जाएगा और उपवास भी निष्फल हो जाएँगे।' राजा बोले-" मैने उपवास जनकल्याण की भावना से किया है। यदि मैं पानी खुद पी जाऊँगा तब निश्चित ही मेरा व्रत निष्फल हो जाएगा।' ऐसा कहकर उन्होने उसे सारा जल पिला दिया। राजा परीक्षा में खरे उतरे और देवताओं के आशीर्वाद से उनके राज्य में फिर से खुशहाली लौट आई।
     दोस्तो, इसे कहते हैं सच्चा उपवास, जिसमें सबके लिए सोचा जाता है, सिर्फ अपने लिए ही नहीं, क्योेंकि सबका कल्याण होगा तो आपका भी होगा ही। आखिर सभी में तो आप भी आ ही जाएँगे न। इसलिए आप दूसरों की सोचो, ऊपर वाला आपकी सोचेगा। यदि सिर्फ अपने भले के लिए व्रत करोगे तो वह कभी सफल नहीं होगा और अधिकतर होता भी नहीं है। फिर लोग कहते हैं कि इतने व्रत किए लेकिन क्या फायदा, फल तो मिला ही नहीं। कैसे मिलेगा फल जब व्रत स्वार्थ की भावना से किया जाएगा। वह व्रत तो अर्थहीन ही रहेगा न। जबकि सच्चा उपवास व्यक्ति को सभी इच्छाओं से मुक्ति दिलाता है।
     यह तभी संभव है जब व्यक्ति शारीरिक उपवास तक ही सीमित न रहे बल्कि वह मन और बुद्धि से भी उपवास करे। वैसे भी मन पर नियंत्रण रखे बिना व्रत किया ही नहीं जा सकता। ऐसे में व्यक्ति व्रत तो करता है, लेकिन उसका मन खाने की चीज़ों में ही रमा रहता है। ऐसे लोग फलाहार के नाम पर दिनभर कुछ न कुछ खाते रहते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसे लोग "करते तो व्रत है, लेकिन पीते घृत हैं।' ऐसा उपवास रखना न रखने के बराबर होता है, क्योंकि इस तरह तो व्यक्ति रोज के भोजन से भी ज्यादा मात्रा में खा जाता है।
       दूसरी ओर, व्रत रखने से कई फायदे होते हैं। इससे व्यक्ति का संयम बढ़ता है और इच्छा शक्ति यानी विल पॉवर का विकास होता है। साथ ही इससे व्यक्ति में सतर्कता और अनुशासन की भावना बढ़ती है, क्योंकि व्रत वाले दिन वह इस बात को लेकर सतर्क रहता है कि किसी कारण उसका व्रत न टूट जाए। यदि व्यक्ति नियमित उपवास रखता है तो वह उस नियम का कठोरता से पालन करता है। ऐसा व्यक्ति कार्यक्षेत्र में भी नियमों पर चलने वाला होता है। कहते हैं उपवास शुद्धि का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह शुद्धि शारीरिक भी होती है और मानसिक भी। स्वास्थ्य की दृष्टि से भी देखें तो व्रत रखने से व्यक्ति के पेट को एक दिन का आराम मिल जाता है। यानी एक तरह से पेट की सर्विसिंग हो जाती है। और वह ठीक से काम करने लगता है, जिससे अपच और गैस जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है। इसलिए हम सभी को व्रत अवश्य रखना चाहिए।
     अंत में, ऐसे में आपसे अनुरोध है कि आप यह व्रत लें कि आज से आप जब भी व्रत रखें तो रंतिदेव जैसी भावना आपके भीतर हो। तभी आपको उसका फल मिलेगा वरना तो नाम मात्र के व्रत करने से तो आपका उपवास निष्फल ही जाएगा। यदि आप सच्चे दिल से यह व्रत लेकर व्रत करेंगे तो यकीन मानिए, ईश्वर आपकी सभी मनोकामनाओं को अवश्य पूर्ण करेगा।

No comments:

Post a Comment