Monday, February 29, 2016

तो फिर आप भी हो जाएँगे अष्टभुजाधारी!


     मथुरा के कारागार में देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समय निकट था। कंस की बेचैनी बढ़ती जा रही थी क्योंकि देवकी की आठवीं संतान के हाथों कंस के अंत की आकाशवाणी हुई थी। अंततः कृष्ण के रूप में विष्णु अवतरित हुए। उनके पैदा हेाते ही कारागार के द्वार खुल गए। वसुदेव बच्चे को लेकर गोकुल में नंद के घर पहुँचे। वसुदेव ने कृष्ण को पालने में लिटाया और यशोदा की नवजात कन्या को लेकर कारागार में लौट आए। जब कंस को बालक के जन्म की सूचना मिली तो वह तुरंत कारागार पहुँचा और बोला- "देवकी, कहाँ है वह दुष्ट बालक? मैं उसके टुकड़े-टुकड़े कर दूँगा।' देवकी बोली-"भैया! यह तो कन्या है। यह तुम्हारा क्या नुकसान करेगी। लेकिन कंस पर तो भूत सवार था। आकाशवाणी उसके कानों में गूँज रही थी। उसने कन्या को टाँग से पकड़कर उठा लिया। लेकिन इसके पहले कि वह उसे मारता, कन्या हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई, और आठ भुजाओं वाली देवी योगमाया के रूप में बदल गई। देवी बोली-"मूर्ख कंस, तेरा काल तो कहीं और पैदा हो चुका है। यह कहकर वे अन्तध्र्यान हो गर्इं। इसके बाद कंस ने कृष्ण को मारने के काफी प्रयत्न किए लेकिन वह अपनी किस्मत के लिखे को बदल नहीं पाया और कृष्ण के हाथों मारा गया।
     दोस्तो, किस्मत के लिखे को इस तरह बदला भी नहीं जा सकता। यदि आपने बुरे कर्म किए हैं तो आपको उनका दंड भुगतना ही पड़ेगा। कंस के बुरे कर्म ही उसे भयभीत करते थे। उसे पता था कि जो अत्याचार वह करता है उसका एक दिन दंड अवश्य मिलेगा। इसलिए जब तक वह जीवित रहा आकाशवाणी उसके कानों में गूँजती रही। ऐसी ही स्थिति हर बुरे कर्म करने वाले की होती है। फिर भले ही वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो। वैसे भी हम जिन शक्तियों को असली शक्ति समझते हैं, वास्तव में वे मायावी शक्तियाँ होती हैं। जिनके अहंकार में व्यक्ति दुष्कर्म करता चला जाता है। अब पूछेंगे कि फिर असली शक्तियाँ कौन-सी हैं? असली शक्तियाँ हैं अष्ट शक्तियाँ। इनमें से पहली शक्ति है "सहनशक्ति, जिसके बल पर व्यक्ति हर परिस्थिति का धैर्य से सामना करता है। इसमें दूसरी शक्ति यानी कि "सामना करने की शक्ति' सहायक की भूमिका निभाती है। इससे व्यक्ति विचलित हुए बिना लक्ष्य प्राप्ति में लगा रहता है। तीसरी शक्ति है "सिकोड़ने और फैलाने की शक्ति ।' जिस प्रकार कछुआ अपने अंगों को जब चाहे फैला लेता है और सिकोड़ लेता है। वैसे ही इस शक्ति से युक्त व्यक्ति ज़रूरत पड़ने पर ही अपनी शक्तियों का उपयोग करता है। इसका एक पहलू यह भी है कि जब दिन विपरीत हों तो अपने आपको खोल में समेट लो और अनुकूल स्थिति में पुनः सक्रिय हो जाओ। चौथी शक्ति है "समाने की शक्ति।' यह शक्ति व्यक्ति को हमेशा सीखने के लिए प्रेरित करती है। वह अच्छी बातें सीखकर और देख-परखकर उन्हें अपने अन्दर समा लेता है। अच्छी आदतों को परखने के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता होती है। वही है पाँचवी शक्ति यानी "परखने की शक्ति।' इस शक्ति के बल पर व्यक्ति अच्छे-बुरे की पहचान कर ही निर्णय लेता है, जिसमें कि छठी शक्ति अर्थात् "निर्णय शक्ति' उसके काम आती है। यह शक्ति उचित-अनुचित के भेद को जानने की समझ प्रदान करती है। इसी के बल पर व्यक्ति में यह सोच विकसित होती है कि सहयोग की भावना से ही सफलता हासिल की जा सकती है। "सहयोग शक्ति' ही मनुष्य के भीतर मौजूद सातवीं शक्ति है, जिसके माध्यम से उसकेअंदर संगठन शक्ति और टीम भावना का विकास होता है। आठवीं शक्ति है " समेटने की शक्ति।' इस शक्ति को धारण करने वाला व्यक्ति मोह-माया में नहीं फँसता और हर परिस्थिति के लिए खुद को तैयार रखता है। तो ये हैं अष्ट शक्तियाँ, जिनके बल पर आप जीवन में आने वाली किसी भी कठिनाई का सामना आसानी से कर सकते हैं।

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