Sunday, February 28, 2016

ओह! न जाने क्या- क्या कराए ये मोह!!


     एक बूढ़ा व्यापारी हर वक्त परेशान रहता था क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन वह दुकान पर बड़बड़ा रहा था कि इस जीने से तो मौत आ जाए तो अच्छा। उसकी बात वहाँ से गुज़रते एक साधु ने सुन ली। वह व्यापारी से बोला-बड़े दुःखी नज़र आते हो। मेरे पास एक सिद्ध विद्या है, जिससे मैं तुम्हें सीधे स्वर्ग ले जा सकता हूँ, तुम मेरे साथ चले चलो। व्यापारी ने कहा-यदि आप मुझे सुखी देखना चाहते हैं तो मुझे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दें। उसके बाद मैं आपके साथ चला चलूंगा।
     साधू उसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देकर चला गया। कुछ समय बाद व्यापारी के घर बेटे ने जन्म लिया। इसके कुछ समय बाद साधु उसे लेने आ गया। व्यापारी बोला-बेटे के बड़े होने पर उसे अपना व्यापार सौंप दूँ, फिर निÏश्चत होकर चलूँगा। बेटा बड़ा होकर व्यापार सँभालने लगा। साधु फिर आया, लेकिन व्यापारी कई वर्ष पहले मर चुका था। साधु को योग बल से पता चला कि व्यापारी अपने ही घर में बैल के रूप में जन्म ले चुका है। साधु ने उससे चलने को कहा तो वह बोला- मैं अपने अनुभवहीन बेटे का सामान ठीक से तो ढो रहा हूँ। दूसरा बैल पता नहीं ये सब करे न करे। इसलिए कुछ समय और दे दो।
     कुछ वर्ष बाद साधु पुनः आया तो उसे पता चला कि बोझ ढोते-ढोते बैल मर गया। बेटा बड़ा व्यापारी बन चुका था जिसके पास अब कई लॉरियाँ थीं। साधु ने फिर पता लगाया कि व्यापारी कुत्ता बनकर अपने घर की रखवाली कर रहा है। साधु ने उसे चलने को कहा तो वह बोला-अरे भाई, मेरे बेटे के धन की सुरक्षा कौन करेगा? साधु फिर चला गया। जब वह लौटा तो कुत्ता भी मर चुका था, लेकिन घर मे सुरक्षा इतनी थी कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। अब व्यापारी मेंढक के रूप में जन्म लेकर घर की नाली में रहता था। इस बार साधु को देखते ही वह बोल पड़ा-चलो भागो यहाँ से, मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ स्वर्ग वर्ग। वहाँ मैं किसका मुँह देखूँगा? यहाँ कम से कम अपने पोते-पोती को देखकर तो खुश होता रहता हूँ।
     ओह, क्या-क्या न कराए ये मोह। व्यक्ति इस मोह के जाल में ऐसा फँसा रहता है कि भले ही कितने ही दुःख, कितनी ही पीड़ाएँ क्यों न उठानी पड़े, वह अपना मोह त्याग नहीं पाता। इसके कारण उसे अहसास ही नहीं होता कि वह जीवन में न जाने क्या-क्या खो चुका है और क्या-क्या आगे खो देगा। यदि आप आज ज़िंदगी की दौड़ में अपने आपको पिछड़ा महसूस करते हैं या आपको लगता है कि आप बहुत कुछ कर सकते थे, लेकिन नहीं कर पाए या फिर सब कुछ होने के बाद भी आप अपने आपको असहाय, दुःखी या तनावग्रस्त महसूस करते हैं, तो एक बार सोचकर देखें कि आप भी तो किसी मोहजाल में नहीं फँसे? वह मोह किसी व्यक्ति से भी हो सकता है, संस्था से भी हो सकता है, वस्तु से भी हो सकता है, जगह से भी हो सकता है। मतलब यह कि किसी भी चीज़ से हो सकता है। यदि मोह इसके पीछे है तो आपकी समस्या का हल यही है कि जितनी जल्दी हो सके आप इससे निजात पाएँ। वैसे भी पांच प्रमुख विकारों में इसकी गिनती होती है। इसलिए जब तक यह विकार आप पर हावी है, तब तक तो आपकी हवा गुल ही रहेगी यानी आप परेशान रहेंगे। कभी यह आपको रूलाएगा, कभी तड़पाएगा। वह इसलिए कि मोह में फँसा व्यक्ति सामने वाले के लिए सोचता रहता है, करता रहता है लेकिन सामने वाला उसकी भावनाओं की कद्र ही नहीं करता।
     अब यह तो कोई बात नहीं हुई न कि आप किसी के लिए मरे जा रहे हैं, करे जा रहे हैं और वह इसे समझ ही नहीं रहा है। ऐसे एक तरफा मोह का एक न एक दिन अंत होता ही है और यह अंत होता है मोहभंग के रूप में। तब आपको अहसास होता है कि मोह-माया में फँसकर आप अपना कितना नुकसान कर चुके हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और आपके पास पछताने के सिवाय कोई चारा नहीं होता।
     हम यहां यह नहीं कह रहे कि आप दूसरों के लिए अपनी भावनाएँ ही खत्म कर दें। नहीं, फिर तो आपका व्यक्तित्व ही खत्म हो जाएगा। भावनाएँ रखें लेकिन एक सीमा तक। मोहपाश में न खुद फँसें और न किसी को फँसाएँ। आप ऐसा कर पाए तो आपकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी बाधा हट जाएगी और आप हमेशा तटस्थ भाव से चीज़ों को लेंगे और सोचेेंगे। इस तरह मोह त्यागने के बाद तो मोहतरम, आप ही आप होंगे।

No comments:

Post a Comment