Thursday, February 25, 2016

बनिये का बेटा गिरे तो कुछ लेकर ही उठे!


एक बनिया अपने बेटे के साथ बाज़ार गया। बाज़ार से सामान खरीदकर वह लौट रहा था कि उसकी नज़र मिठाई की दुकान पर पड़ी। कड़ाही में ताजे-ताजे गुलाब जामुन देखकर उसके मुँह में पानी आ गया। मिठाई की दुकान से उसने एक मटकी में गुलाब जामुन बँधवा लिए और मटकी लड़के को पकड़ा दी। लड़के के पास और भी सामान था। वह उस सामान के साथ मटकी को भी उठाकर चल दिया। बाज़ार में बहुत भीड़ थी, इसलिए दोनों बाप-बेटे संभलते-संभलाते और बचते-बचाते बाज़ार से बाहर निकल आए। अब वे बेफिक्र होकर चलने लगे। अचानक लड़के को ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। उसकी मटकी फूट गई। गुलाब जामुन दूर-दूर तक बिखर गए। रास्ते से गुजरते लोग उसे उठाने के लिए दौड़े। बनिये ने उन्हें रोकते हुए कहा-आप लोग रहने दीजिए, वह अपने आप ही उठ खड़ा होगा। उसकी बात सनकर सभी हैरान रह गए, क्योंकि न तो वह खुद बेटे को उठा रहा था और न ही किसी को उसकी सहायता करने दे रहा था। साथ ही उसके चेहरे को देखकर लगता ही नहीं था कि उसे अपने सामान के बरबाद होने का ज़रा-सा भी दुःख है।
     तभी उसका बेटा उठा। उसने अपने कपड़े झाड़े और मुस्कराकर अपने पिता की ओर देखा। सभी लोग आश्चर्य से उन दोनों को देख रहे थे। इस बीच लड़के ने हाथ आगे बढ़ा दिया और अपने हाथ की मुट्ठी खोलकर पिता के सामने कर दी। मुट्ठी में एक अशरफी थी। उसे देखकर बनिये ने लड़के को सीने से लगा लिया और बोला-शाबास मेरे लाल, मैं जानता था कि बनिये का बेटा गिरा है तो कुछ लेकर ही उठेगा। ऐसे-वैसे तो वह उठ ही नहीं सकता। तूने मेरे विश्वास की लाज रख ली। मुझे तुझ पर गर्व है बेटा। असल में हुआ यह था कि चलते-चलते लड़के को रास्ते में एक अशरफी पड़ी दिखाई दी थी। उसने यह सोचकर कि किसी दूसरे की नज़र उस पर न पड़ जाए, उसे उठाने के लिए जल्दी करने के चक्कर में उसे ठोकर लगी और वह गिर पड़ा।
     दोस्तो, इसी को कहते हैं सकारात्मक नज़रिया। इस नज़रिये से नुकसान में भी कोई न कोई फायदा दिखाई देता है। यदि आप भी ऐसा ही नज़रिया रखते हैं तो उस नुकसान से कोई न कोई फायदा उठा ही लेंगे। यह मानी हुई बात है। इसलिए हम सभी को हर स्थिति में यह सोचना चाहिए कि जो हो रहा है, अच्छे के लिए ही हो रहा है। शायद इसमें भी कोई भला छुपा है। और भला छुपा भी होता है, बस देखने-समझने का फर्क होता है। वैसे भी कहते हैं कि वह व्यक्ति ज्यादा श्रेष्ठ है जो गिरकर उठता है। क्योंकि गिरकर वही व्यक्ति उठ सकता है जिसने कि गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी, जो घबराया नहीं, जो गिरा ज़रूर लेकिन उसका आत्मविश्वास नहीं डिगा। उसने गिरने को सीखने की प्रक्रिया का, अनुभव प्राप्ति का एक अवसर माना और उससे सबक सीखा। कहते हैं न कि हर ठोकर एक सबक सिखाती है। जो ठोकर खाकर सीख लेते हैं, वे गिरकर भी उठ जाते हैं। क्योंंकि उनके हाथ में अनुभव रूपी, सबक रूपी एक अशरफी जो लग जाती है। उस अशरफी के सहारे ही वे जीवन के अगले कदम आगे बढ़ाते हैं।
     जो लोग गिरने के बाद अफसोस मनाने बैठ जाते हैं यानी विपरीत परिस्थितियोंं से घबराकर आत्मविश्वास खो देते हैं, वे जब अपनी मुट्ठी खोलते हैं तो उसमें अशरफी की बजाय पत्थर का टुकड़ा निकलता है अर्थात उन्हें निराशा और तनावों का सामना करना पड़ता है। इसलिए बेहतर यही है कि हर स्थिति में अपने नज़रिये को सकारात्मक बनाकर रखें। इससे आप गिर-गिरकर भी उठते रहेंगे और एक दिन गिरि के शिखर पर यानी सफलता की चोटी पर पहुँच जाएँगे।

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