Wednesday, February 24, 2016

निज भाषा में ही छिपा है उन्नति का मंत्र


     एक बार अकबर के दरबार में एक अजनबी आया जो कि कई भाषाओं का ज्ञाता था। वह बोला," जहाँपनाह, मैं आपके दरबारियों को चुनौती देता हूँ कि वे बताएँ कि मैं किस जगह से आया हूँ और मेरी मातृभाषा क्या है?' तभी मैं मानूँगा कि यह दरबार वाकई विद्वानों से भरा है।' अकबर ने चुनौती स्वीकार कर ली और दरबार में मौजूद अलग-अलग भाषाओं के विद्वान उसकी मातृभाषा का पता लगाने की कोशिश करने लगे। लेकिन वे सभी असफल रहे क्योंकि उस अजनबी की सभी भाषाओं पर गहरी पकड़ थी। दरबार का उपहास न उड़े इसके लिए अकबर ने बीरबल को बुलाकर कहा- "बीरबल, अब इस समस्या का तुम ही हल खोजो।' बीरबल बोले- "हुज़ूर, आप मुझे कुछ दिन का समय दें। मैं जल्द ही इस बात का पता लगा लूँगा।' इसके बाद बीरबल अपने काम में जुट गए। काफी सोच विचार कर एक दिन, रात को वे अपने नौकर के साथ दबे पाँव अजनबी के कक्ष तक पहुंचे। उस समय वह सोया हुआ था। बीरबल ने अपने नौकर से उसके मुँह पर एक लोटा पानी डालने को कहा। नौकर ने वैसा ही किया और उसके ऊपर पानी डालकर छिप गया। इस पर वह हड़बड़ाकर उठ बैठा और बड़बड़ाने लगा। जब उसे आसपास कोई नहीं दिखा तो मुँह पोंछकर दोबारा सो गया।
     अगले दिन दरबार में बीरबल बोले-"हुज़ूर! यह अजनबी गुजरात से आया है और इसकी मातृभाषा गुजराती है।' अकबर बोले," क्यों अजनबी, क्या बीरबल सही कह रहे हैं?' अजनबी ने कहा-बिल्कुल सही कहा बीरबल ने, हुज़ूर! लेकिन मैं जानना चाहूंगा कि बीरबल को यह बात पता कैसे चली, जबकि उन्होने मुझसे तो बात तक नहीं की।' इस पर बीरबल ने सभी को रात की घटना के बारे में बताया और बोले- "परेशानी, गुस्से, और हैरानी की स्थिति में व्यक्ति अपनी मातृभाषा का ही इस्तेमाल करता है। मुँह पर पानी पड़ने के बाद ये गुस्से में गुजराती में बड़बड़ा रहे थे।'
    दोस्तो, सही पकड़ा बीरबल ने। कुछ बातें, कुछ भाव ऐसे होते हैं, जिन्हें आप अपनी ही भाषा में अच्छी तरह व्यक्त कर सकते हैं। फिर भले ही आपको कितनी ही भाषाएँ क्यों न आती हों। यानी कुछ विचार या भावनाएँ जितने अच्छे व प्रभावी तरीके से मातृभाषा में रखे जा सकते हैं, अभिव्यक्त किए जा सकते हैं, उतने किसी और भाषा में नहीं। इसका कारण यह है कि मातृभाषा का सीधे संबंध आपके दिल से होता है। और आप अपने दिल की बात किसी दूसरी भाषा में व्यक्त करेंगे तो वह उतनी प्रभावी होगी ही नहीं कि सामने वाले के दिल को छू जाए। इसीलिए मातृभाषा को लोगों को आपस में जोड़ने के लिए सबसे बड़ा माध्मय माना गया है। क्योंकि यह लोगों के बीच की दूरियाँ कम कर उन्हें निकट लाती है। इसकी वजह से लोग भावनात्मक रूप से एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं।
     एक जमाना था जब लोग अँगरेज़ी में बात करने वालों को अधिक तवज्जो देते थे, लेकिन संचार क्रांति के इस युग में धीरे-धीरे लोगों का सोच बदल रहा है। अब यह बात समझ में आने लगी है कि अधिकतर लोगों तक बात उनकी ही भाषा में पहुँचाई जा सकती है। यह कारण है कि आज हर जानकारी हिन्दी और स्थानीय भाषाओं में भी उपलब्ध कराई जा रही है।  मोबाइल पर एसएमएस करना हो या कम्प्यूटर पर ई-मेल या चैट, हर जगह मातृभाषा का ही बोलबाला है। यह सब इस बात का प्रतीक है कि हमारा देश भाषा के क्षेत्र में भी दुनियाँ में अपनी अलग पहचान बनाता जा रहा है। हर साल एन्साइक्लोपीडिया ब्रिाटेनिका में शामिल होते हिन्दी के कई शब्द इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं।
     इस सबके बाद भी हिन्दी माध्यमों में पढ़े हुए अधिकतर लोग आज भी अपने मन में हिन्दी को लेकर ग्रंथि पालकर रखते हैं कि बिना अँगरेज़ी सीखे वे कुछ नहीं कर पाएँगे, आगे नहीं बढ़ पाएँगे। ऐसे लोगों से आज हम कहना चाहेंगे कि वे आज से ही अपनी ऐसी सोच बदल दें। क्योंकि आपकी प्रगति में भाषा कभी आड़े आ ही नहीं सकती। आप तो बस पूरे आत्मविश्वास से लक्ष्य प्राप्ति में जुट जाएँ। आप देखेंगे कि आपकी हिन्दी ने ही आपके माथे पर सफलता की बिन्दी या तिलक लगवा दी है। यानी कुल मिलाकर कह सकते हैं निजभाषा में ही उन्नति का मंत्र छिपा होता है।

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