Tuesday, February 23, 2016

खुद ही खुद खाने वाले खाते है खुद को


     एक बार एक राज्य में भयंकर सूखा पड़ा। वहाँ रहने वाले पक्षियों के सामने भूखों मरनें की नौबत आ गई। चिड़ियाओं के एक दल के राजा ने सभा बुलाई और निर्णय हुआ कि सभी मिलकर भोजन की तलाश में किसी और राज्य में जाएँगे। दूसरे राज्य में पहुँच कर राजा बोला-सभी साथी अलग-अलग दिशाओं में जाकर भोजन की तलाश करें और शाम को यहीं आकर बताएँ। सभी पक्षी उड़ गए। उनमें से एक चिड़िया उड़कर राजमार्ग पर पहुँची, जहाँ से गुजरकर अनाज से लदी गाड़ियाँ महल में जाती थीं। उसने देखा कि सड़क पर बहुत से अनाज के दाने बिखरे पड़े हैं। उसे देखकर उसका मन खुशी से झूम उठा। उसके मन में तुरंत विचार आया कि ऐसी विकट स्थिति में वह किसी को इस बारे में नहीं बताएगी और रोज चुपके से आकर भरपेट दाने चुगेगी। तभी उसके मन में भय उत्पन्न हुआ कि यदि दल के किसी सदस्य ने उसे यहाँ देख लिया तो खैर नहीं। इस पर उसे एक उपाय सूझा। उसने निÏश्चत होकर भरपेट दाने चुगे। शाम को जब वह लौटी तो उसके साथियों ने पूछा-बहुत देर लगा दी तूने। क्या कुछ मिला? वह बोली-हाँ, मिला तो। यहाँ के राजमार्ग पर ढेर सारे दाने बिखरे पड़े रहते हैं। लेकिन वहाँ से गुजरने वाली  गाड़ियों से जान का खतरा बना रहता है। मैने दानों तक पहुँचने की कोशिश की और मुश्किल में पड़ गई। जैसे तैसे जान बचाकर आई हूँ। इसलिए उस ओर न जाना ही बेहतर होगा।
     उसकी बात सुनकर सभी ने उस ओर न जाने का फैसला किया। वह चिड़िया प्रतिदिन अकेली वहाँ पहुँच जाती और मजे से दाने चुगती। एक दिन वह दाने चुग रही थी, तभी बैलगाड़ी के आने की आवाज सुनाई दी। उसने सोचा कि अभी गाड़ी को आने में समय लगेगा, तब तक और खाया जाए। लेकिन वह गाड़ी तेज गति से आ रही थी। इसके पहले कि वह सँभलती, गाड़ी उसे कुचलते हुए निकल गई। उधर रात होने पर जब वह नहीं लौटी तो सबको चिंता हुई। राजा के आदेश पर उसकी खोज शुरू हुई और पता चलने पर राजा को सूचित किया गया। राजा तुरंत घटनास्थल पर पहुँचा। उसे देखते ही वह समझ गया कि उसका स्वार्थ उसे ले डूबा।
     दोस्तों, इसे कहते हैं आप ही आप खाने की प्रवृत्ति का नतीजा। इस प्रवृत्ति के लोग कोई भी चीज दूसरों के साथ बाँटना नहीं चाहते। भले ही वह इनकी जरूरतों से इतनी ज्यादा क्यों न हो कि वे दूसरों के साथ बाँटे तो भी कम न पड़े। फिर भी मजाल है कि उसकी भनक भी किसी को लग जाए। इस प्रवृत्ति के लोगों को यह अहसास ही नहीं होता कि ऐसा करके वे किसी और का नहीं, खुद का ही नुकसान करते हैं। क्योंकि यह खुद खाने की आदत धीरे-धीरे इनको खुद को खाने लगती है। यानी जब वे लोगों को ऐसे व्यक्ति की सच्चाई के बारे में पता चलता है तो वे उससे दूरी बना लेते हैं। ऐसे में जब उस पर मुसीबत आती है तो कोई उसकी सहायता करना तो दूर, उससे हमदर्दी भी नहीं दिखाता। इस तरह छोटे मोटे तात्कालिक लाभ के लोभ में वह आगे के बड़े लाभ से अपने को वंचित कर लेता है। आज के प्रतियोगी दौर में, जब हर व्यक्ति में एक दूसरे से आगे चलने की होड़ मची है, ऐसे में यह प्रवृत्ति ज्यादा बढ़ती जा रहीं है। विपनन से जुड़े लोग इस मामले में सबसे आगे रहते हैं। उन्हे तो बस अपने-अपने टारगेट पूरे करने होते हैं। उन्हें टीम के टारगेट से कोई मतलब नहीं होता। उन्हें लगता है यदि वे अपना टारगेट पूरा कर लेंगे तो दूसरों से आगे बढ़ जाएँगे। निश्चित ही ऐसी सोच टीम भावना के विरूद्ध है।
      यदि आप भी किसी टीम के सदस्य हैं और उस चिड़िया की प्रवृत्ति के हैं तो हो सकता है कि एक दो बार कोई बड़ी सफलता आपके हाथ लग जाए, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होगा। ज्यादातर तो आपको अपने साथियों की सहायता की जरूरत पड़ेगी ही। ऐसे में यदि आप उनकी सहायता नहीं करेंगे तो जरूरत पड़ने पर वे भी आपके काम क्यों आएँगे? तब वही होगा जो उस चिड़िया के साथ हुआ। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब गाड़ी ऊपर से निकल जाएगी यानी आप अपने टारगेट पूरे न करने के कारण संस्था से बाहर हो जाएँगे। इससे बेहतर यही है कि मिल-जुलकर रहें और हिल-मिलकर काम करें। ऐसे में यदि कोई गाड़ी आपकी ओर बढ़ रही होगी तो आपका साथी आपको चेता देगा और आप बच जाएँगे ।

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