Sunday, February 21, 2016

जीवन जीने का ढंग


     एक बार प्रसिद्ध दार्शिनक सुकरात घूमते हुए एक नगर में पहुँचे। नगर के सभी गणमान्य नागरिकों से उनकी मुलाकात हुई। इन्हीं में से एक हँसमुख प्रवृत्ति के एक वृद्ध सज्जन के साथ उनकी घनिष्टता बढ़ गई। सुकरात ने उनसे हर तरह की बातें कीं। उन सज्जन ने भी सुकरात द्वारा पूछे गए हर प्रश्न का खुलकर जवाब दिया। सुकरात उनसे बोले-श्रीमान्! आपने अपना पिछला जीवन तो बहुत ही अच्छी तरह व्यतीत किया। जीवन की हर कठिनाई का सामना आपने बहुत ही समझदारी से किया। आपने जीवन उसी तरह जिया, जिस तरह एक इंसान को जीना चाहिए। लेकिन अब आप वृद्ध हो चुके हैं। इस अवस्था की परेशानियों का सामना आप किस तरह करते हैं।
     इस पर वृद्ध मुस्कराकर बोला-परेशानी किस बात की। अब तो मैं निÏश्चत होकर पहले से अधिक सुखी हूँ। क्योंकि मैने अपना सारा व्यवसाय अपने योग्य बच्चों को सौंप दिया है। वे उसे कैसे चला रहे हैं, इस बात की भी चिंता मुझे नहीं है। जब वे मुझसे किसी विषय पर सलाह लेने आते हैं तो मैं अपने अनुभवों के आधार पर उन्हें सलाह दे देता हूँ। यदि वे कोई भूल करने जा रहे हों तो मैं उसके दुष्परिणामों के बारे में चेता देता हूँ। अब वे मेरी सलाह पर अमल करते हैं या नहीं करते, यह सोचकर अपना दिमाग खराब करना मेरा काम नहीं। मानें तो ठीक, नहीं मानें तो और भी ठीक। क्योंकि ठोकर खाएँगे तो कुछ सीखेंगे ही। मैं तो उन्हें सलाह भी दे देता हूँ, जबकि मुझे तो सलाह देने वाला भी कोई नहीं था। मैने भी ठोकरें खा-खाकर ही सीखा था। इस तरह मैं उनके किसी भी काम में बाधा नहीं बनता। मुझे विश्वास है, वे जो करेंगे सोच-समझकर करेंगे। यदि वे ठोकर खाकर मेरे पास आते हैं तो मैं कभी यह नहीं कहता कि देखा, बुज़ुर्गों की बात न मानने का परिणाम। क्योंकि इसका अहसास तो उन्हें खुद ही होगा। मैं उन्हें एक और नेक सलाह देकर बिदा कर देता हूँ।
     सुकरात बोले-लेकिन आपको अपने बच्चों से कुछ तो अपेक्षाएँ होंगी ही। वृद्ध बोला- नहीं मैं उनसे किसी बात की अपेक्षा नहीं रखता। वे जैसा कहते हैं, कर देता हूँ। जैसा खिलाते हैं, खा लेता हूँ। जैसा पहनातें हैं, पहन लेता हूँ। व्यस्तताओं की वजह से यदि उनके पास मेरे लिए समय नहीं रहता तो भी मैं इसकी फिक्र नहीं करता। मैं उनकी मज़बूरी समझ सकता हूँ। आखिर मैं भी उनकी उम्र से गुज़र चुका हूँ। और वही सब कर चुका हूँ, जो वे आज कर रहे हैं। तब बुरा क्यों मानना? वैसे भी रोक-टोककर मैं अपना बुढ़ापा नहीं बिगाड़ना चाहता। मैं पोते-पोतियों के साथ खेलकर अपना मन बहला लेता हूँ। खैर, छोड़ो, आप तो मुझे सिखाएँ कि इस आयु में मैं और बेहतर तरीके से कैसे जी सकता हूँ।
     दोस्तों, जानते हैं सुकरात ने उन्हें क्या जवाब दिया होगा। सुकरात ने उन्हें कहा कि मैं आपको क्या बताऊँगा कि इस आयु में जीवन कैसे जिया जाए। वह तो आप अच्छी तरह जान-समझकर जी ही रहे हैं। बल्कि आज तो आपने मुझे भी वृद्धावस्था में सुखपूर्वक जीने का राज़ बता दिया है। वाकई यह सही बात भी है। हमें भी उन सज्जन से वृद्धावस्था में सुख से जीने का यह राज़ सीखना चाहिए। आपको हमेशा निÏश्चत होकर उत्साह और उमंग से जीवन जीना चाहिए। इससे उम्र बढ़ने व बाल पकने के बावजूद आप युवा बने रह सकते हैं। लेकिन समस्या यह है कि उम्र बढ़ने के साथ हमारे समाज में व्यक्ति का सोच भी बदलता जाता है। हम किसी अच्छी व उचित बात को सीखना ही नहीं चाहते। हमें लगता है कि हम तो दुनियाँ देख चुके हैं। अब हमें कोई क्या सिखाएगा। लेकिन यह गलत है। कहा गया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती। इसलिए हम उम्र के किसी भी पड़ाव में हों, हमें अच्छी बातें सीखकर अपनाते रहना चाहिए। वरना हमारी प्रगति रुक जाएगी। और जब प्रगति या वृद्धि रुक जाती है, तभी आदमी वृद्ध हो जाता है। इसलिए आपके मस्तक पर चाहे कितनी भी  झुर्रियाँ पड़ जाएँ, उनकी चिंता न करें। चिंता तो तब होनी चाहिए, जब मस्तिष्क में झुर्रियाँ पड़ने लगें। यानी विचार पुराने होंने लगें। क्योंकि हम नए दौर के नए विचारों को अपनाने के लिए तैयार नहीं होते। अतः कभी मत सोचो कि आप बूढ़े हो गए। बूढ़ा शरीर हुआ है, आप नहीं। अभी तो आपकी उम्र खेलने की है। आश्चर्य न करें। कहते हैं हर उम्र के अपने-अपने खिलौने होते हैं। वृद्धावस्था के खिलौने होते हैं आपके पोते-पोतियाँ। उनके साथ खूब हँसो, खेलो और मौज करो। वैसे यह बात हर दादा-दादी या नाना-नानी अच्छी तरह समझते हैं। हम तो सिर्फ याद दिला रहे हैं।
     अंत में, यहाँ हम बच्चों से भी कहना चाहेंगे कि वे अपने माता-पिता या पालकों की भावनाओं को समझना सीखें। वरना ऐसा न हो कि आपको भी वही सब भुगतना पड़े, जो आप अपने पालकों के साथ कर रहे हैं। क्योंकि हमारी वृद्धावस्था कैसी होगी, यह हमारी जवानी तय करती है। यानी जैसा हम जवानी में करते हैं, वैसा बुढ़ापे में भोगते हैं। इसलिए माँ-बाप की भावनाओं व विचारों को "जनरेशन गेप' का नाम देकर आप मुक्त नहीं हो सकते। इस गेप को यदि नहीं पाटोगे तो दोनों ही तनाव में रहोगे। और तनाव में तो आप नहीं रहना चाहेंगे। इसलिए बेहतर यही है दोनों एक-दूसरे को समझो और निÏश्चत होकर सुख पूर्वक आगे बढ़ो।

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