Saturday, February 20, 2016

नहीं की गलती तो जुबान क्यों नहीं खुलती


     द्वारिका में रहने वाला सत्राजित सूर्यदेव का उपासक था। उसकी उपासना से प्रसन्न होकर सूर्य एक दिन उसके सामने प्रकट हुए और अपने गले से उतारकर उसे स्यमन्तक मणि दे दी। उस मणि की विशेषता यह थी कि उसके प्रकाश से उसको धारण करने वाले का चेहरा सूर्य की तरह दमकने लगता था। साथ ही वह मणि प्रतिदिन आठ भार या लगभग सौ सेर स्वर्ण मोहरें धारणकर्ता को देती थी। मणि की दुर्लभता को देखते हुए एक दिन कृष्ण सत्राजित के पास गए और उससे मणि राजा उग्रसेन को सौपने का आग्रह किया ताकी वह सुरक्षित रहें।
     सत्राजित ने कृष्ण को मणि देने से मना कर दिया। एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेनजित मणि को पहनकर शिकार के लिए गया और खुद शेर का शिकार बन गया। चमकती मणि को देखकर शेर उसे उठाकर चल दिया। तभी रीछों के राजा जाम्बवान की नज़र उस पर पड़ी। उसने शेर को मारा और मणि ले जाकर अपने बेटे को दी। उधर सत्राजित को लगा कि निश्चित ही कृष्ण ने मणि प्राप्त करने के लिए मेरे भाई की हत्या कर दी होगी। उसने यह बात द्वारिका में फैला दी। अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कृष्ण नगरवासियों को साथ लेकर मणि की तलाश करने जंगल में गए।
     जंगल में उन्हें प्रसेनजित का शव मिला। उसके पास बने शेर के पदचिन्हों के सहारे वे शेर के शव तक और अंतत: जाम्बवान की गुफा तक पहुँच गए। गुफा में जाम्बवान का पुत्र उस मणि से खेल रहा था। कृष्ण ने उससे वह मणि मांगी तो वह डरकर रोनेे लगा। उसकी आवाज सुनकर जाम्बमान वहा पहुँचा और कृष्ण को शत्रु समझकर उस पर हमला कर दिया। दोनो में युध्द छिड़ गया।
     इक्कीस दिन तक युद्ध करने के बाद भी जब वह कृष्ण को पराजित न कर सका तो उसने हार मान ली और मणि उन्हें सौंप दी। बाद में कृष्ण ने द्वारिका लौटकर सत्राजित को बुलाकर भरे दरबार में मणि उसे सौंप दी। इससे वह अपने किए पर बहुत लज्जित हुआ और पश्चाताप के रूप में अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण के साथ कर दिया।
     दोस्तों, कई बार जीवन में ऐसा होता है कि आप बिना कुछ किए ही कलंक के भागी बन जाते हैं। जो गलती, जुर्म या अपराध आपने नहीं किया है, लोग उसके लिए आपकी तरफ उँगली उठाते हैं। ऐसे में आप अपने पक्ष में कोेई बात कहते हैं या सफाई देते हैं तो लोग उस पर विश्वास नहीं करते। तब आपको धैर्य से काम लेकर अपनी बेगुनाही साबित करने का प्रयत्न करना चाहिए, क्योंकि यदि आप कोशिश नहीं करेंगे तो जो लाँछन आपके ऊपर लगा है, लोग उस पर विश्वास करने लगेंगे और आपको माफ नहीं करेंगे। इसलिए ज़रूरी है कि जो कीचड़ आपकी ओर उछाला गया है, उसे आप खुद धोकर साफ करें। आप चुप होकर बैठ जाएँगे तो यह आत्महत्या होगी। ऐसे में श्रीकृष्ण जी ने जो तरीका अपनाया, वह सही है। क्योंकि कई बार लोग यह सोचकर चुप हो जाते हैं कि समय के साथ लोग सब कुछ भुला देंगे तो यह गलत है। लोग अच्छी बातें भूलते हैं, बुरी नहीं। वैसे भी ऐसा रूख तो वे अपनाते हैं, जो गलत होते हैं। जब आपने कुछ गलत किया ही नहीं है, आपका कोई गुनाह ही नहीं है, तो चुप्पी कैसी? परिस्थिति का सामना कर अपने-आपको निर्दोष साबित करने का प्रयत्न करें। जीत सत्य की ही होती हैं। जब लोगों को सत्य का पता चलता है तो वे अपने किए पर पछताते हैं। ऐसे में आपको उनके साथ शत्रु जैसा नहीं, मित्र जैसा व्यवहार करने चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसी स्थितियाँ बनती हैं कि आदमी न चाहकर भी यह मानने लगता है कि आपसे कोई गलती हुई। ऐसी गलतफहमी होना स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि आपको लेकर कोई गलतफहमी है तो उसे दूर करने की जिम्मेदारी आपकी ही है, किसी औरों की नहीं। क्योंकि आपके सिवाय कोई और नहीं जानता कि आप गलत हैं या सही। लोग तो सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करते हैं। उनके यकीन को आपको तोड़ना होगा।

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