Thursday, February 18, 2016

सच्चाई एवं सद् गुणों की ताकत

एक गाँव में संतोषी प्रवृत्ति का एक ब्रााहृण रहता था। जो कुछ उसे मिलता उसी से खुशी-खुशी वह अपना जीवन-यापन कर लेता था। एक बार उसे किसी यजमान ने दो दुबले-पतले बछड़े दान में दिए। उसकी देखरेख से जल्दी ही वे बछड़े ह्मष्ट-पुष्ट हो गए। एक दिन एक चोर की दृष्टि उन बछड़ों पर पड़ गई। उसने दोनों बछड़ों को चुराने की योजना बनाई। रात को पूरी तैयारी के साथ वह दबे पाँव ब्रााहृण के घर की ओर बढ़ने लगा। तभी अचानक उसका सामना एक पिशाच से हो गया। पिशाच को देखते ही चोर की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। हिम्मत जुटाकर चोर बोला-तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो? पिशाच ने कहा, मैं पिशाच हूँ और अपनी भूख मिटाने गाँव में आया हूँ। तुम पर नज़र पड़ी तो सोचा तुम्हीं को खा लूँ। यह सुनते ही चोर के होश उड़ गए। अचानक उसे एक उपाय सूझा। वो बोला-मुझे खाने में तुम्हें मज़ा नहीं आएगा क्योंकि में एक चोर हूँ। पिशाच ने कहा, तो तुम बताओ मैं किसे खाऊँ? चोर ने कहा, मैं एक भले ब्रााहृण के यहाँ चोरी करने जा रहा हूँ। तुम उसे खाओगे तो मज़ा आएगा। इस पर पिशाच तैयार हो गया और दोनों ब्रााहृण के घर पहुँचे। उस समय वह सो रहा था। उसे देखते ही पिशाच के मुँह में पानी आ गया। वो ब्रााहृण की ओर लपका तो चोर उसे रोकते हुए बोला-पहले मुझे अपना काम करने दो वरना ये जाग गया तो मैं बछड़े नहीं चुरा पाऊंगा। पिशाच ने कहा, लेकिन यदि चोरी करते समय बछड़े रंभाने लगे, तब भी तो यह जाग सकता है। इसलिए पहले मैं अपना काम करूँगा। इस तरह दोनों पहले मैं, पहले मैं कहकर झगड़ने लगे। इतने में ब्रााहृण की आँख खुल गई। वो तुरंत बोला-कौन हो तुम? इस पर दोनों हड़बड़ाकर एक-दूसरे की चुगली करने लगे। दोनों के आने का उद्देश्य जानते ही ब्रााहृण ने पहले तो बजरंगबली को याद किया। इससे पिशाच वहाँ से गायब हो गया इसके बाद वह सिरहाने रखी लाठी को लेकर चोर पर लपका। लेकिन वह उस पर वार करता इसके पहले ही चोर वहाँ से रफू-चक्र हो गया।
     दोस्तो, कहते हैं यदि आपके पास सच्चाई की ताकत है, सद्गुणों और संस्कारों की शक्ति है तो आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। फिर तो आपका बुरा चाहने वाले आपके विरोधी भी एक हो जाएँ तो भी घबराने की ज़रूरत नहीं। क्योंकि आपको नुकसान पहुँचाने से पहले ही उनमें फूट पड़ जाएगी और वे एक-दूसरे को ही निपटाने में लग जाएँगे। इसका कारण यह है कि इस तरह से होने वाले गठबंधनों की बुनियाद मज़बूत नहीं होती। वे आपके विरुद्ध किसी गलत उद्देश्य को लेकर एक हुए होते हैं जिनमें कि उनके अपने-अपने स्वार्थ जुड़े होते हैं। ऐसे में ये ऊपरी तौर पर तब तक एक दिखाई देते हैं जब तक कि इन्हें अपना काम बनता नहीं दिखता। लेकिन जैसे ही इन्हें काम बनने के आसार नज़र आते हैं तो ये खुद ही पहले फायदा उठाने की जुगत में लग जाते हैं। इससे इनकी दोस्ती की कलई खुल जाती है। असलियत खुलते ही ये जिसके विरूद्ध एक हुए थे उसे भूलकर आपस में ही भिड़ जाते हैं।
     लेकिन ऐसा तभी होता है जब गठबंधन किसी गलत उद्देश्य के लिए हो। इसके विपरीत यदि ऐसा गठबंधन किसी अच्छे उद्देश्य के लिए बनता है तब वह इतना मज़बूत होता है कि बड़े से बड़े तूफान भी उसे हिला नहीं पाते। तब ये मिलकर बड़ी से बड़ी ताकत को भी धूल चटा देते हैं। व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता के इस जमाने में इस तरह के गठबंधन आम बात है। क्योंकि इसके पीछे एक ही भावना काम करती है और वह है कि "दुश्मन का दुश्मन यानी हमारा दोस्त'। राजनीति के क्षेत्र में तो इसी फार्मूले के तहत कई गठबंधन बनते बिगड़ते रहते हैं।
     कहा भी गया है कि किसी बड़ी मछली का सामना करने के लिए छोटी मछलियों को तो एक होना ही पड़ता है। अपने बल पर वे यदि बड़ी मछली का मुकाबला करेंगी तो खुद का अस्तित्व ही मिटा देंगी।

No comments:

Post a Comment