Wednesday, February 17, 2016

मानोगे हरि इच्छा तो पूरी होगी हर इच्छा


     एक राजा का प्रधानमंत्री भद्रजित बहुत ही चरित्रवान व्यक्ति था। वह ऐसा कोई काम न तो खुद करता था और न ही किसी को करने देता था, जो नीतिसम्मत न हो। एक बार राजा ने उसे ऐसा कार्य करने को कहा, जो कि नीतिविरूद्ध था। भद्रजित ने राजा को समझाते हुए वह कार्य करने से मना कर दिया। जब राजा ने ज्यादा जोर डाला तो भद्रजित बोला-"राजन! मेरे रहते तो यह कार्य असंभव है।' इस बात से राजा के अहंकार को चोट पहुँची। उसने भद्रजित को सबक सिखाने का फैसला किया और बोला- "हम तुम्हें प्रधानमंत्री पद से हटाते हैं। अब तुम्हें अपनी हैसियत का पता चलेगा। और यह भी जानोगे कि हमारे आदेश की अवहेलना का नतीजा क्या होता है?'
     भद्रजित ने राजा की बात को बड़ी ही शांति से सुना और शालीनता के साथ उन्हें प्रणाम करते हुए बोला- "हरि इच्छा।' ऐसा कहकर वह दरबार से बाहर निकलने लगा तो राजा उसे टोकते हुए बोला- "यह हरि की नहीं, हमारी इच्छा है। हमने तुम्हें दर-दर की ठोकरें खाने के लिए दरबार से निकाला है।' इस पर भी भद्रजित विनम्रता का प्रदर्शन करता हुआ दरबार के बाहर चला गया। इसके बाद उसने अपने गाँव जाकर अपना जीवन लोगों की सेवा में लगा दिया। उसने शास्त्रों का अध्ययन किया और लोगों को सही राह दिखाने के लिए प्रवचन देना शुरू कर दिया। जल्दी ही दूर-दूर से लोग उससे सलाह-मशविरा करने के लिए आने लगे।
     इधर राजा को एक दिन उसकी याद आई। उसने सोचा कि अब तक तो भद्रजित की हालत दयनीय हो चुकी होगी। चलकर देखा जाए। राजा भेष बदलकर उसके गाँव पहुँचा। वहाँ भद्रजित के चारों ओर लोगों का हुजूम देखकर वह हैरान रह गया तभी भद्रजित की नज़र उस पर पड़ी। वह राजा को पहचान गया और उसने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। वह बोला- "राजन, यह सब आपकी ही कृपा से संभव हुआ। यदि आप मुझे पद से नहीं हटाते तो शायद मैं यह सब कभी नहीं कर पाता। इतना अच्छा अवसर देने के लिए मैं आपका ह्मदय से आभारी हूँ।'
     दोस्तो, इसे कहते हैं तकदीर का खेल। अपनी शक्तियों के घमंड में चूर उस राजा को यह गलतफहमी हो गई थी कि किसी का भी भविष्य बनाना या बिगाड़ना उसके हाथ में है। और बाद में उसकी गलतफहमी दूर हुई। इसलिए कहते हैं कि किसी व्यक्ति को कभी यह मुगालता नहीं पालना चाहिए कि उसके मातहत काम कर रहे लोगों का भविष्य उसके हाथ में है। वह चाहे जिसका भविष्य बना सकता है और चाहे जिसका बिगाड़ सकता है। ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा। बनाना-बिगाड़ना तो ऊपर वाले के हाथ में है। वैसे भी आदमी के साथ वही घटता है जो उसकी किस्मत में होता है। यानी सारा खेल भाग्य का है। आप तो सिर्फ निमित्त मात्र हैं और उस भाग्य के खेल के केवल एक पात्र भर होते हैं।
     इसलिए यदि आप किसी सच्चे व्यक्ति को, जिससे आपकी नहीं पटती, यह सोचकर नौकरी से निकालते हैं कि घर बैठेगा तो आटे-दाल का भाव समझ में आएगा तो यह आपकी भूल है। आप भले ही उसके लिए दरवाज़ा बंद कर दें, लेकिन उसके अच्छे कर्म, अच्छे विचार और उसका भाग्य उसके लिए बहुत-से नए दरवाज़े खोल देंगे। इसलिए कभी किसी सच्चे आदमी को न सताएँ, क्योंकि इसके परिणाम उसे नहीं, आपको भुगतने पड़ सकते हैं।
     दूसरी ओर, यदि आपने कभी कोई गलत काम नहीं किया है और अपना काम हमेशा ईमानदारी से करते हैं, लेकिन इसके बाद भी यदि आपको अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े, तो उस समय आपको भी भद्रजित की तरह धैर्य नहीं खोना चाहिए। क्योंकि जब आप गलत नहीं हैं तो आपके साथ गलत हो ही नहीं सकता है। यह बात मन में बैठा लें कि यदि आप सही हैं तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यदि बिगाड़ सकता है तो केवल आपका आत्मविश्वास। आप उसे कभी कमजोर न पड़ने दें और सोचें कि जो कुछ आपके साथ हो रहा है, वह आपके भले के लिए ही हो रहा है। आपको इसकी तात्कालिक पीड़ा भले ही हो, लेकिन कुछ समय बाद आपको पता चलेगा कि यह सब इसलिए हुआ, क्योंकि आपको किसी बड़े काम का बीड़ा उठाना था, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी नहीं था। कहा भी गया है की पीड़ा उठाने वालों को ही मिलता है बड़े काम का बीड़ा। इसलिए जो कुछ घट रहा है, उसे हरि इच्छा मानकर धैर्य के साथ अपने पथ पर आगे बढ़ते रहें ताकि आपकी हर इच्छा पूरी हो सके।

No comments:

Post a Comment