Tuesday, February 16, 2016

समय पर ही मिलते हैं गुठलियों के आम


     एक नगर में बहुत विशाल बाग था। वहाँ पर आम के कई वृक्ष थे जो मौसम आने पर फलों से लद जाते थे। इन फलों को देखकर नगर में रहने वाला बंदरों का एक समूह बाग में आकर आम खाने का प्रयास करता था। इसमें वे सफल भी होते थे लेकिन इसकी उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ती थी। दरअसल माली बड़ी ही चौकसी से बाग की रखवाली करता था। यदि कोई बंदर बाग में प्रवेश करता तो वह उस पर हमला कर देता। इससे बंदरों को चोट लगती और वे चिल्लाते हुए भाग जाते। लेकिन आमों का लालच उन्हें फिर खींच लाता और पूरे मौसम यही भागदौड़ मारपीट चलती रहती।
     इन सबसे तंग आकर एक दिन बंदरों के सरदार ने अपने समूह की बैठक बुलाई। वह बोला-आमों के लिए यह बार-बार मार खाना मुझे रास नहीं आता। यह हमारे कुल की मर्यादा के विरूद्ध है। इस जिल्लत भरी ज़िंदगी से पीछा छुड़ाने के लिए मुझे एक तरकीब सूझी है। क्यों न हम खुद आम के वृक्ष लगाएँ। जब उन पर आम लगेंगे तो हम निÏश्चत होकर सुख से खाएँगे। तब कोई हमें मारेगा नहीं, कोई हमें रोकेगा नहीं। सरदार की बात सभी बंदरों को पसंद आई और वे इसके लिए तैयार हो गए। इसके लिए ज़मीन की तलाश की गई जहाँ पर कि आम के वृक्ष लगाए जा सकें। और फिर वहाँ पर ज़मीन खोदकर उन्होने आमों की गुठलियाँ दबा दीं। इसके  बाद पानी देकर वहीं बैठ गए। एक दिन बैठे रहे, दो दिन बैठे रहे, लेकिन थे तो आखिर बंदर। तीसरे दिन उन्होने ज़मीन खोदकर यह देखना शुरु कर दिया कि गुठलियों में आम लगे हैं या नहीं।
     दोस्तो, अब उन बंदरों को कौन समझाए कि गुठलियों में आम नहीं लगते। गुठलियों से तो अंकुरित होकर एक नन्हा-सा पौधा निकलता है जो धीरे-धीरे एक विशाल वृक्ष का आकार लेता जाता है और एक निश्चित समय के बाद ही उस पर आम लगने शुरु होते हैं। यानी अगर आप अपने द्वारा रोपी गई गुठली से उत्पन्न आम खाना चाहते हैं तो धैर्य के साथ इंतजार करें। समय आने पर आपको ढेर सारे आम खाने को मिलेंगे। लेकिन बहुत से लोग उन बंदरों की तरह अधीर होते हैं। इन्हें हर समय जल्दी रहती है। इन्हें हर चीज़ चुटकियों में चाहिए कि ये चुटकी बजाएँ और इनकी मनचाही चीज़ इनके सामने हाज़िर हो जाए।
     ऐसी सोच वाले लोगों से हम कहना चाहेंगे कि हर चीज़ को पूरा होने में एक निश्चित समय लगता है। जैसे कि यदि आपने कोई नया काम शूरु किया है और आप सोचें कि पहले दिन से ही आपका काम चल निकले, तो ऐसा नहीं होता। किसी भी नए काम या व्यवसाय को स्थापित  होने में समय लगता ही है। इसलिए अधीरता दिखाने की बजाय धैर्यपूर्वक अपने प्रयत्न जारी रखना चाहिए, उसे स्थापित करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करनी चाहिए। समय आने पर आपको आपकी मेहनत का फल अवश्य मिलेगा और आप निÏश्चत होकर खुशी-खुशी अपनी सफलता का आनंद उठा पाएँगे। इसके साथ ही, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो तेज़ी से सफलता हासिल करना चाहते हैं। लेकिन कहते हैं कि दौड़ने के लिए ज़रूरी है कि पहले चलना सीखा जाए। यदि आप सीधे दौड़ने की सोचोगे तो धड़ाम से गिरोगे। इसी प्रकार किसी व्यवसाय को शुरु करने के बाद यह नहीं सोचना चहिए कि आज शुरु किया है, कल दौड़ने लगे। नहीं, पहले उसे धीरे-धीरे चलाओ, फिर दौड़ाओ।
     कई बार आपने देखा होगा कि बहुत से लोग तेज़ी से व्यावसायिक सफलता प्राप्त करते हुए नज़र आते हैं। उनको देखकर लगता है कि अब इन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। वे अपने प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे भी निकल जाते हैं, लेकिन एक दिन अचानक हम देखते हैं कि उनका तो दिवाला ही पिट गया। यह इसी कारण होता है कि उन्होने एकदम से दौड़ने की कोशिश की और हुआ भी वही, कि गिर पड़े। व्यवसाय में वे ही लंबी रेस के घोड़े साबित होते हैं जो धीरे-धीरे अपनी जड़ें मज़बूत कर आगे बढ़ते हैं। कहते हैं न कि जो आराम-आराम से चलता है, वही सही-सलामत पहुँचता है। इसलिए यदि आप छलाँग लगाना चाहते हैं तो इतनी लंबी ही लगाएँ, जितनी कि लाँघ पाएँ वरना अधिक के चक्कर में आपका क्या अंजाम होगा, यह बताने की ज़रूरत नहीं।

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