Friday, February 12, 2016

आपके खड़े रहने में है किसीका योगदान


     एक जंगल में दो घने वृक्ष थे। उनकी छाँव में जंगली जानवर विश्राम करते थे। उनमें अधिकतर शेर-चीते जैसे मांसाहारी जानवर होते थे। इन जानवरों द्वारा लाए गए शिकार को खा लेने के बाद बचे हुए मांस के टुकड़ों के सड़ने से बदबू फैलती थी। दोनों वृक्ष इस बदबू से परेशान हो चुके थे। एक दिन एक वृक्ष बोला- मित्र, इस दुर्गन्ध से मेरा दम घुटता है। दूसरा वृक्ष बोला- हाँ तुम सही कहते हो। अब यहाँ रहना दूभर हो गया है। लेकिन हम कहीं जा भी तो नहीं सकते, न ही कुछ कर सकते हैं। इस पर पहला वृक्ष बोला-कैसे कुछ नहीं कर सकते। मैं इन जानवरों को यहाँ बेठने ही नहीं दूँगा। दूसरा वृक्ष कहने लगा, अरे, ऐसा मत करना। जानते नहीं ये जंगली जानवर ही हमारे रक्षक हैं। तुम इन्हें ही भगा दोगे तो हम मारे जाएँगे। पहला वृक्ष बोला-क्या मूर्खतापूर्ण बात करते हो। इन जानवरों से हमारी कैसी सुरक्षा? उलटे हम ही इन्हें सुरक्षा और छाँव देते हैं। जब ये यहाँ आना छोड़ देंगे तो वातावरण कितना पवित्र हो जाएगा।
     इसके बाद जब भी रात में जानवर उस वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे होते, वह जोर-जोर से हिलने लगता। इससे डरावनी आवाज़ें पैदा होतीं, जिससे वहाँ सोए पशु डरकर भाग जाते। धीरे-धीरे जानवरों ने वहाँ आना बंद कर दिया। अपनी सफलता पर इतराकर पहला वृक्ष बोला-देखा मित्र, अब हम कितने आराम से रहते हैं। अब यहाँ कोई दुर्गन्ध और अशान्ति नहीं।
     इस तरह कई दिन बीत गए। एक बार एक ग्वाला अपनी गाय का पीछा करता हुआ वहां पहुँचा। वह बहुत डरा हुआ था कि कहीं कोई हिंसक जानवर हमला न कर दे। जब उसे वहाँ किसी जानवर के पैरों के निशान नहीं दिखे तो वह समझ गया कि अब यहाँ कोई हिंसक जानवर नहीं आता। वह तुरंत जाकर अपने गाँव वालों को बुला लाया। गाँव वाले वहाँ रहने की योजना बनाने लगे। इस पर दूसरा वृक्ष बोला-देखो, गाँव वाले यहाँ आकर रहेंगे। अब तो अपनी शामत आई समझो। इसलिए मैने तुम्हें जानवरों को भगाने से मना किया था। पहला वृक्ष कहने लगा- घबरा मत, मैं इन्हें भी डराकर भगा देता हूँ। और वह तेज़ी से हिलने लगा। इससे गाँव वाले डर गए। इस पर एक वृद्ध बोला-डरने की बात नहीं हवा चल रही है। हम इन पेड़ों को काट देंगे। जल्द ही उस जगह के सभी वृक्षों को काट दिया गया। इस तरह एक वृक्ष की मूर्खता का परिणाम सभी ने भुगता।
     दोस्तो, इसे कहते हैं सभी के साथ हिलमिलकर न रहने का नतीजा। उस वृक्ष ने अपने थोड़े से आराम के चक्कर में अपने साथ ही सभी का नुकसान कर डाला। ऐसा ही उन लोगों के साथ भी होता है, जो सोचते हैं कि उन्हें किसी की आवश्यकता नहीं। वे अपने अकेले के बल पर ज़िंदगी में सब कुछ हासिल कर सकते हैं। दूसरे की उपस्थिति उन्हे असहनीय लगती है। उन्हे लगता है कि वे उनके जीवन में अशान्ति पैदा करते हैं, उन्हे चैन से जीने नहीं देते। इसके चलते वे आसपास के लोगों से दूरी बना लेते हैं। बाद में जब वे विपत्ति में फँसते हैं तो उन्हे अहसास होता है कि उनके वजूद में उन लोगों का भी हाथ था, जिन्हे वे निरर्थक समझते थे। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और कोई सहयोग के लिए नहीं आता। इसलिए आप कितने ही बड़े आदमी क्यों न बन जाएँ, अपने आसपास के लोगों को निरर्थक न समझें। हर व्यक्ति का एक वजूद होता है और सभी एक दूसरे की प्रगति में सहायक होते हैं, सहायक बनते हैं। यदि आप किसी को कुछ दें रहें हों तो निश्चित ही वह भी आपको कुछ दे रहा होता है। हो सकता है प्रत्यक्ष रूप से यह आपको नजर नहीं आता हो, लेकिन आप अप्रत्यक्ष रूप से देखेंगे तो आपको अपने खड़े रहने में उसका भी योगदान दिखाई देगा। अब यदि इमारत यह दंभ भरे कि उसकी बुलंदी स्वयं उसकी वजह से है तो यह मूर्खता वाली  बात हुई न। इमारत को पता होना चाहिए कि उसकी बुलंदी टिकी है उस नींव पर, जो दिखाई भले ही न दे उसे अपने उपर थामे रहती है। जिस दिन इमारत नीव के बिना अपने वजूद के बारे में सोचेगी, उस दिन भरभराकर गिर पड़ेगी। तब उसे नींव का ध्यान भी आये तो किस काम का।
     इसलिए कभी किसी को महत्वहीन न समझें। हर एक व्यक्ति का अपना महत्व, अपनी भूमिका रहती है। सभी मिलकर किसी भी संस्था को सफलता की बुलंदियों तक पहुँचाते हैं। किसी को भी व्यर्थ समझोगे तो आप खुद ही अर्थहीन हो जाओगे।

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