Monday, February 1, 2016

पापी को नहीं उसके पाप को मारो..


     जापान के एक शहर में जेन आम (आश्रम) था। वहाँ वान्केई नाम के आचार्य अपने शिष्यों के साथ रहते थे। शिष्य वहाँ पर रहकर जीवन से जुड़े विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन लेते थे। उन्हीं में से एक शिष्य को चोरी करने की आदत थी। एक बार वह चोरी करते रंगे हाथों पकड़ा गया। शिष्य उसे आचार्य के सामने ले गए। एक शिष्य बोला- "आचार्य जी, इसे हमने चोरी करते हुए पकड़ा है। इसलिए यह आम में रहने का अधिकारी नहीं है। इसे निकाल दीजिए।' शिष्यों की बात सुनकर आचार्य बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए चले गए। इस पर सभी शिष्य हैरान रह गए। उनमें से एक शिष्य चोर से बोला- "आचार्य ने इसे तुम्हारी पहली गलती समझकर माफ कर दिया है। इसलिए अब कभी चोरी मत करना वरना अबकी बार तुम्हें माफी नहीं मिलेगी। तुम्हें आम से धक्के मारकर बाहर कर दिया जाएगा।'
     लेकिन वह शिष्य नहीं सुधरा और कुछ दिन बाद एक बार फिर चोरी करते पकड़ा गया। फिर से उसे आचार्य के सामने ले जाया गया। उनकोे इस बार पूरा भरोसा था कि आचार्य इस बार उसे माफ नहीं करेंगे। वान्केई ने इस बार भी कुछ नहीं कहा। चुप खड़े रहे। उनके मौन से शिष्यों के मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे। एक शिष्य से जब रहा नहीं गया तो वह बोल पड़ा- "आचार्य, यदि आपने इस चोर को आम से तत्काल बाहर नहीं किया तो हम सभी आम छोड़कर चले जाएँगे। हम एक चोर के साथ नहीं रह सकते।' सभी शिष्य उसकी बात से सहमत थे। यह देखकर आचार्य अपना मौन तोड़कर बोले- "तुम सभी समझदार हो और जानते हो कि अच्छा क्या है और बुरा क्या। इसलिए तुम कहीं पर भी जाकर शिक्षा ग्रहण कर सकते हो। लेकिन इसको तो अभी भी भले-बुरे का भेद समझना शेष है। यदि यह सब मैं इसे नहीं सिखाऊँगा तो कौन सिखाएगा? इसलिए अब यह आप पर निर्भर है कि आप क्या निर्णय लेते हैं। मैं तो इसे यहाँ से बाहर नहीं करूँगा बल्कि इसकी बुरी आदत को बाहर निकालने में इसका सहयोग करूँगा। सभी शिष्यों को बात समझ में आ गई।
     दोस्तो, जिसे यह पता है कि चोरी करना गलत बात है, उससे ज्यादा तो चोर को शिक्षित करने की आवश्यकता है। यदि आप उसे बाहर कर देंगे तो उसे सुधरने का मौका ही नहीं मिलेगा। तब तो उसकी चोरी करने की आदत कभी नहीं छूटेगी। कहा भी गया है कि गलती करने वाले को सुधरने का एक मौका ज़रूर देना चाहिए। हाँ, पर मौका देते समय उसे इस बात का अहसास अवश्य कराना चाहिए कि उसे एक अवसर दिया जा रहा है। जिससे वह यह जान ले कि अवसर देने वाले से कुछ भी छिपा नहीं है। यदि वह चुप है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह कुछ जानता नहीं। यह चुप्पी ही उसके लिए सुधरने का एक मौका है। यदि ऐसे में वह सच्चे दिल से निर्णय कर अपनी कारस्तानियों से बाज आ जाता है और दिल से सुधर जाता है तो इससे अच्छी बात क्या होगी। किसी राह या लाइन से भटके इंसान को लाइन पर लाने का यही तरीका सबसे श्रेष्ठ है। दंड तो उसे राह से और भी भटका देगा। फिर तो वह सुधरने की बजाय और भी बिगड़ता चला जाएगा।
     यदि आपकी संस्था में भी कोई ऐसा व्यक्ति है जो ऐसी गलती कर चुका है, या करता जा रहा है तो आप उसे एक बार भी समझाए या चेताए बिना अपनी संस्था से निकाल देते हैं तो यह गलत होगा। पहले आप पास बिठाकर उससे बात करें, उसे समझाएँ कि वह जो कर रहा है, वह गलत है और आप यह बात जानते हैं। फिर उसे एक अवसर दें। इस तरह आप किसी व्यक्ति को संस्था से बाहर करने के पहले उसे अवसर देते हैं कि वह अपने दुर्गुणों को निकाल बाहर करे। इसके बाद देखें कि क्या वह वास्तव में सुधर गया है या आपको दिखाने के लिए अभिनय कर रहा है। यदि उसे वास्तव में अपनी गलती का अहसास हो गया हो तो फिर आप मान लें कि आपके लिए उससे श्रेष्ठ कर्मचारी हो ही नहीं सकता, क्योंकि फिर तो उसके  मन में आपके लिए सम्मान की भावना भी उत्पन्न हो जाएगी। और वह संस्था के लिए पूरी निष्ठा से काम करेगा। हाँ, यदि मौका दिए जाने के बाद भी वह नहीं सुधरता और कुछ दिन ठहरकर फिर से अपना रूप दिखाने लगता है तो फिर वह आदतन बुरी प्रवृत्ति का है और ऐसे व्यक्ति को तो दंडित करना ही चाहिए। इसलिए बेहतर है कि मिले हुए मौके का फायदा उठाकर अपने आपको सुधार लिया जाए।

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